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कोरबा: कुछ साल पहले हीरासाय के पास गाय, बैल और भैंस तो थे, लेकिन उनकी आमदनी सिर्फ दूध बेचने से एक सीमा के भीतर ही थी। मवेशियों के गोबर का उपयोग खाद और कण्डे बनाने तक ही सीमित था। वह चाहकर भी अपनी आमदनी बढ़ा नहीं सकता था। कुछ ऐसी ही पशुपालक भारती पेन्दों थी। घर में गाय थी, लेकिन आमदनी का जरिया कुछ नहीं था। गोबर को साफ करना ही दिनचर्या थी। प्रदेश में जब गोधन न्याय योजना प्रारंभ हुआ तो इन्होंने भी अपना नाम पशुपालक के रूप में पंजीकृत कराया। ये दोनों रोजाना गोबर संग्रहित किया करते थे और इसे गौठान के माध्यम से बेचने लगे। कुछ दिन बाद गोबर बेचकर उन्होंने इतनी राशि जोड़ ली कि बाइक, स्कूटी खरीदने के साथ अन्य जरूरी कार्यों में भी गोबर बेचकर जुटाई गई राशि एक बड़ा सहारा बन गया। पशु रखकर भी कुछ रूपये नहीं आमदनी अर्जित नहीं कर पाने वाले हीरासाय और भारती की आमदनी अब गोबर बेचने से बढ़ गई है।

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