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कृषि कार्य में महिलाएं भी शामिल, फिर किसान 'भाईयों' के साथ 'बहनों' का क्यों नहीं होता जिक्र?

Gulabi
15 Oct 2021 10:18 AM GMT
कृषि कार्य में महिलाएं भी शामिल, फिर किसान भाईयों के साथ बहनों का क्यों नहीं होता जिक्र?
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युनाइटेड नेशन के खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार

कृषि क्षेत्र में खेत की बुआई से लेकर फसल कटाई व इसके बाद तक की सारी गतिविधियों में आप कदम-कदम पर महिला किसानों (Women Farmers) के योगदान को देख सकते हैं. युनाइटेड नेशन के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, भारतीय कृषि में महिलाओं का योगदान लगभग 32 प्रतिशत है. इसके बावजूद वो इस क्षेत्र में अपने वजूद को लेकर संघर्ष कर रही हैं. न तो महिला किसान फ्रेंडली मशीनें बन रही हैं न तो मंडियों में उनके लिए कोई इंतजाम है. इस क्षेत्र की सफलता की कहानियों में वो किसी जिक्र से बाहर ही रही हैं. यहां तक कि महिला किसानों के सशक्तिकरण पर होने वाले खर्च में सरकार ने रिकॉर्ड छह गुना की कमी कर दी है.


राष्ट्रीय महिला किसान दिवस पर समझिए कि ऐसा क्यों है? क्या इसलिए कि खेती में काम करने के बावजूद ज्यादातर जमीन पर स्वामित्व (women land ownership) पुरुषों का ही है. चाहे खेती करने वाली महिला किसानों का मसला हो या फिर महिला कृषि वैज्ञानिकों का, उनके योगदान को कहीं रेखांकित नहीं किया जा रहा. खेत-खलिहान से जुड़े ज्यादातर सरकारी संस्थानों पर भी पुरुषों का ही कब्जा है. अब तक सरकारों ने 'किसान भाई' के साथ 'किसान बहन' भी कहना नहीं सीखा है.

खेती में महिलाओं की भूमिका बढ़ी
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) से पीएचडी कर रहीं कृषि वैज्ञानिक मृणालिनी मनोहर कहती हैं, "जब से रोजगार के लिए पुरुषों का शहरों की ओर पलायन बढ़ा है तब से खेती में महिलाओं की भूमिका और मजबूत हुई है. जॉब के लिए पुरुष तो शहरों की ओर चले गए, गांवों में खेती का जिम्मा औरतों ने उठा लिया.

फेमिनाइजेशन ऑफ एग्रीकल्चर की बात करें तो यह सबसे ज्यादा बिहार में है. यहां एग्रीकल्चर में जो वर्कफोर्स लगी हुई है उसमें 50 फीसदी महिलाएं हैं. कृषि क्षेत्र में जो औरतें काम कर रही हैं उनमें से 70 फीसदी ऐसे परिवारों से हैं जिनमें रोजगार के लिए पुरुषों का गांव से शहरों में पलायन हुआ है. ऐसे में कृषि क्षेत्र में औरतों के योगदान को रेखांकित करके किसान भाईयों के साथ किसान बहनों वाले शब्द को भी जगह देने जरूरत है."

क्या मामला माइंडसेट का है?
नीति आयोग की कृषि सलाहकार डॉ. नीलम पटेल कहती हैं, " खेती में सबसे ज्यादा महिलाएं काम करती हैं लेकिन उनका नाम नहीं होता, क्योंकि पूरी कृषि व्यवस्था का ही माइंडसेट पुरुष प्रधान है. यह पुरुष वर्चस्व वाला काम माना जाता है. खेती-किसानी की जितनी भी सफलता है उसमें सोशल ऑडिट नहीं होता था, जिसकी वजह से पता नहीं चलता था कि महिलाओं का क्या योगदान है. अब जाकर कुछ स्कीमों में महिलाओं के लिए प्रोत्साहन की शुरुआत हुई है."
खेती में महिला मजदूरों की संख्या 6 करोड़ से अधिक है

वुमेन फ्रेंडली नहीं है मार्केटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर
वैकुंठ मेहता नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कॉपरेटिव मैनेजमेंट (Vamnicom) की डायरेक्टर डॉ. हेमा यादव कहती हैं, "मंडियों में महिलाएं काम करती हुई मिल जाएंगी लेकिन आज तक मार्केटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर वूमेन फ्रेंडली नहीं बनाया गया. उनमें महिलाओं के लिए अलग टॉयलेट तक नहीं है. अलग बैठने की जगह नहीं है. इसलिए उन्हें मंडियों में काम करते हुए कठिनाई का सामना करना पड़ता है. अब एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटियों (APMC) के नए डिजाइन की जरूरत है, जिसमें महिलाओं के लिए भी जगह हो."

खेती में कब मिलेगा बराबरी का दर्जा?
महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली डॉ. जगमति सांगवान के मुताबिक धान की खेती से लेकर चाय बागानों तक में वो हर जगह महिलाएं पुरुषों से अधिक काम करते हुए दिखाई देती हैं. लेकिन नाम पुरुषों का होता है क्योंकि जमीन महिलाओं के नाम नहीं होती. देश में करीब 90 फीसदी मामलों में खेती योग्य जमीन विरासत के जरिए ही महिला के नाम स्थानांतरित की जाती है. इसलिए सरकार खेती की हर योजना में महिलाओं के लिए पुरुषों से अधिक छूट या पैसा दे तो उनके नाम जमीन का स्वामित्व बढ़ सकता है.

कृषि क्षेत्र में महिलाओं का योगदान
युनाइटेड नेशन के खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार, भारतीय कृषि में महिलाओं का योगदान लगभग 32 प्रतिशत है. जबकि कुछ राज्‍यों (पूर्वोत्‍तर तथा केरल) में कृषि एवं ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था में महिलाओं का योगदान पुरूषों के मुकाबले कहीं अधिक है.

करीब 48 प्रतिशत महिलाएं कृषि संबंधी रोजगार में शामिल हैं. जबकि 7.5 करोड़ महिलाएं दूध उत्‍पादन और पशुधन प्रबंधन में उल्‍लेखनीय भूमिका निभा रही हैं. वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में महिला किसानों की संख्या 3,60,45,846 थी. जबकि खेती में महिला मजदूरों की संख्या 6,15,91,353 थी.

खेती योग्य जमीन पर अधिकार
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि स्कीम का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि ज्यादातर राज्यों में महिलाओं के नाम औसतन 23-25 फीसदी ही खेती योग्य जमीन है. पंजाब में बहुत कम है. लेकिन मेघालय, मणिपुर और नागालैंड में महिलाओं के नाम 50 फीसदी से अधिक खेती है.

सशक्तिकरण परियोजना का ये है हाल
महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना के तहत 2020-21 के दौरान 23 राज्यों में एक भी रुपये का बजट नहीं भेजा गया है. यह ग्रामीण विकास मंत्रालय की स्कीम है जिसे 2011 में शुरू किया गया था. पिछले दो साल में ही इसके तहत रिलीज धनराशि में छह गुना की कमी देखी गई है. इस तरह महिला किसानों की तरक्की कैसे होगी?

किस राज्य को कितना पैसा मिला?
इस योजना के तहत पिछले साल यानी 2020-21 में राज्यों को सिर्फ 11.20 करोड़ रुपये जारी किए गए, जबकि 2018-19 में यह रकम 65.60 करोड़ थी. बीते साल केंद्र सरकार ने इस स्कीम के तहत अरुणाचल प्रदेश को 4.12, झारखंड को 3.49, नागालैंड को 2.35, उत्तराखंड को 0.67 और पुदुचेरी को 0.57 करोड़ रुपये जारी किए हैं.
क्यों नहीं बनती वुमेन फ्रेंडली कृषि मशीनरी.

कुछ योजनाओं में पुरुषों के मुकाबले अधिक मदद: मंत्री
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुताबिक महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना एक मांग आधारित कार्यक्रम है. इसमें हर साल राज्यवार आवंटन का कोई प्रावधान नहीं है. कृषि क्षेत्र में महिला किसानों की भागीदारी बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार कई उपाय कर रही है. कुछ योजनाओं में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को अधिक मदद दी जा रही है.

-कृषि क्लिनिक एवं एग्री बिजनेस केंद्र नामक योजना के तहत लिए गए बैंक लोन पर सब्सिडी पुरुषों के लिए 36 फीसदी जबकि महिलाओं के लिए 44 फीसदी है.

-इंटीग्रेटेड स्कीम ऑफ एग्रीकल्चर मार्केटिंग के तहत स्टोरेज इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट में पुरुष किसानों को 25 फीसदी की तुलना में महिलाओं के लिए 33.33 फीसदी तक की सीमा तक सहायता दी जाती है.

-कृषि मशीनीकरण में मशीनों की खरीद पर महिलाओं को 10 फीसदी ज्यादा आर्थिक सहायता मिल रही है.

-राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत पौध संरक्षण एवं आधुनिक इक्यूपमेंट्स के लिए पुरुषों की अपेक्षा 10 फीसदी अधिक आर्थिक मदद दी जा रही है.

कब से मनाया जा रहा महिला किसान दिवस
कृषि क्षेत्र (Agriculture Sector) में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी को बढ़ाने के मकसद से वर्ष 2016 में कृषि मंत्रालय ने हर साल 15 अक्टूबर को महिला किसान दिवस मनाने का फैसला लिया था. कृषि में महिलाओं की भागीदारी को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने 1996 में भुवनेश्वर में केंद्रीय कृषिरत महिला संस्थान की स्थापना कर दी थी.
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