x
स्पेक्ट्रम नीलामी की प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है
स्पेक्ट्रम नीलामी की प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है. जियो ने 488.35 मेगा हर्ट्ज का एयरवेब्स खरीदा जो 800, 1800 और 2300 मेगा हर्ट्ज बैंड के लिए है. इसके लिए उसने कुल 57122 करोड़ रुपए खर्च किए. एयरटेल ने 18699 करोड़ रुपए के 355.45 MHz स्पेक्ट्रम का अधिग्रहण किया है. वोडाफोन आइडिया ने 1993 करोड़ रुपए में 11.80 MHz of airwaves खरीदा है. इस तरह कुल 855.7 मेगा हर्ट्ज एयरवेब्स की बिक्री की गई और इसके जरिए सरकार को 77814 करोड़ रुपए मिले.
यहां हर किसी के मन में एक सवाल उठ रहा है कि आखिरकार रिलायंस ने इतना ज्यादा स्पेक्ट्रम क्यों खरीदा, उसकी भविष्य की क्या योजना है? Credit Suisse की रिपोर्ट के मुताबिक,
स्पेक्ट्रम के मामले में जियो अपने कॉम्पिटिटर से पीछे है. उसके सब्सक्राइबर्स लगातार बढ़ रहे हैं और लिमिटेड स्पेक्ट्रम होने के कारण नेटवर्क कमजोर हो रहा है. पिछले कुछ समय से जियो के नेटवर्क में समस्याएं आ रही हैं जिसके कारण यूजर्स एयरटेल की तरफ रुख कर रहे हैं.
स्पेक्ट्रम मामले में जियो से आगे एयरटेल
रिपोर्ट के मुताबिक, इतने बड़े पैमाने पर स्पेक्ट्रम खरीदने के बावजूद तीनों टेलिकॉम कंपनियों में जियो के पास सबसे कम स्पेक्ट्रम है. नई खरीद के बाद जियो के पास कुल 1717 MHz, एयरटेल के पास 2107 MHz और वोडाफोन आइडिया के पास 1768 MHz स्पेक्ट्रम है. दिसंबर में जियो के कंज्यूमर की संख्या 40.87 करोड़ थी. ऐसे में जानकारों का कहना है कि जियो स्पेक्ट्रम मार्केट और सब्सक्रइबर मार्केट शेयर के बीच अंतर को कम करना चाहता है.
अगले 18 वर्षों में किया जाएगा भुगतान
बता दें कि रिलायंस जियो ने सभी 22 सर्किलों में स्पेक्ट्रम खरीदा है. इस खरीद के बाद रिलायंस जियो के पास कुल 1717 मेगा हर्ट्ज (अपलिंक+डाउनलिंक) हो जाएगा जो पहले के मुकाबले 55 फीसदी अधिक है. स्पेक्ट्रम की खरीद से रिलायंस जियो को और मजबूती मिलने की उम्मीद है. टेलिकॉम कंपनियों द्वारा स्पेक्ट्रम की कीमतों का भुगतान अगले 18 वर्षों में किया जाएगा. प्रतिद्वंदियों के मुकाबले रिलायंस जियो मजबूत स्थिती में है क्योंकि जियो के पास औसतन 15.5 वर्षों के लिए स्पेक्ट्रम उपलब्ध है.
Next Story