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Business व्यवसाय: सोना खरीदना या गोल्ड में निवेश भारतीय लोगों की पहली पसंद है। सोने का आयात करने के मामले में भी भारत दुनिया के शीर्ष देशों में शुमार है। लेकिन, गोल्ड के आयात में बड़े पैमाने पर पैसा विदेश चला जाता है। ऐसे में सरकार ने डिजिटल गोल्ड (Digital Gold) को बढ़ावा देने की रणनीति अपनाई और नवंबर 2015 में सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB) की शुरुआत की। यह फिजिकल गोल्ड (Physical Gold) खरीदने के बजाय उस पर निवेश का एक सुरक्षित और सरल ऑप्शन है। इस बॉन्ड में निवेशक को सोने की कीमतों में हुई वृद्धि के साथ ब्याज का लाभ भी मिलता है। इसका मतलब है कि निवेशकों को दोहरा लाभ होता है। अब इस साल नवंबर में गोल्ड बॉन्ड की पहली सीरीज मैच्योर होने वाली है। 8 साल के बाद बॉन्ड के मैच्योर होने से निवेशक मालामाल होंगे, लेकिन सरकार के लिए यह घाटे का सौदा बन रहा है। इससे सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ने का अंदेशा है।
सरकार को कैसे होगा घाटा
सरकार को उम्मीद थी कि एसजीबी में उन्हें रिटर्न पर ज्यादा पैसा खर्च नहीं करना पड़ेगा। इसकी एक ही सूरत थी कि सोने का भाव धीरे-धीरे और लंबी अवधि में बढ़े। लेकिन, साल 2015 के बाद से सोने की कीमतों में भारी उछाल आया है। 2016 में सोने की कीमतों में 8.65 फीसदी की तेजी आई थी। इसी तरह 2019 में सोना की कीमत में 12 फीसदी और 2020 साल में 38 फीसदी का उछाल आया। इसे ऐसे समझिए कि जहां 2016 में सोने की कीमत 28,623 रुपये प्रति 10 ग्राम थी, जो 2024 में चढ़कर 71,510 रुपये के पार पहुंच गई।
सरकार को देनी होगी भारी रकम
साल 2015 में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने एसजीबी पहली सीरीज में 2684 रुपये प्रति ग्राम के हिसाब से बॉन्ड जारी किया था। इस सीरीज के जरिये सरकार ने करीब 245 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि जुटाई थी। जिन निवेशकों ने 8 साल तक बॉन्ड को अपने पास रखा, उनके लिए रिडेम्पशन प्राइस (Redemption Price) यानी भुनाने वाली कीमत 6,132 रुपये प्रति ग्राम हो गई। बॉन्ड की कीमतों में तेजी आने की वजह से सरकार निवेशकों को करीब 560 करोड़ रुपये चुकाएगी। इसके अलावा लगभग 49 करोड़ रुपये ब्याज भी देना होगा।
सरकार के सामने खड़ी हैं कई परेशानियां
सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड पर सरकार निवेशकों को नियमित रूप से ब्याज का भुगतान करती है। हालांकि यह ब्याज दर सिर्फ 2.5 फीसदी है, लेकिन जब लाखों निवेशक इसमें निवेश करते हैं, तो यह ब्याज भुगतान सरकार के खजाने पर बड़ा बोझ डाल सकता है। ब्याज का यह बोझ समय के साथ बढ़ता जाता है, खासकर जब सोने की कीमतों में तेजी होती है। अगर बड़ी संख्या में निवेशक एकसाथ अपना बॉन्ड भुनाने आते हैं, तो सरकार के लिए नकदी प्रवाह बनाए रखना मुश्किल हो सकता है। इसके कारण सरकार को अपनी अन्य योजनाओं और वित्तीय प्राथमिकताओं में कटौती करनी पड़ सकती है। अगर बाजार में ब्याज दरें बढ़ती हैं, तो निवेशक सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड के मुकाबले अन्य अधिक लाभदायक साधनों में निवेश करना पसंद कर सकते हैं। इससे सरकार को नए बॉन्ड जारी करने में दिक्कत हो सकती है और मौजूदा बॉन्डों की ब्याज दर बढ़ानी पड़ सकती है, जिससे वित्तीय बोझ और बढ़ सकता है।
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