माइक्रो ब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म ट्विटर एक बार फिर विवादों में है. पिछले करीब छह साल की अवधि में यूजर के आंकड़े गोपनीय न रख सकने की वजह से Twitter को 15 करोड़ डॉलर का जुर्माना देना पड़ेगा. इसके साथ ही ट्विटर यूजर के आंकड़ों की सुरक्षा के लिए नए मानक भी तैयार करेगा. न्याय विभाग और संघीय व्यापार आयोग ने बुधवार को ट्विटर के साथ वाद निपटारे की घोषणा की. रेगुलेटर्स का आरोप है कि ट्विटर ने उपयोगकर्ताओं को धोखे में रखते हुए 2011 के एफटीसी आदेश का उल्लंघन किया कि वह उनकी गैर-सार्वजनिक संपर्क जानकारी की गोपनीयता को सुरक्षित रखता है.
अमेरिकी सरकार ने आरोप लगाया कि मई 2013 से सितंबर 2019 तक, ट्विटर ने यूजर को बताया कि वह अकाउंट की सुरक्षा के लिए उनके फोन नंबर और ईमेल का पता इकट्ठा कर रहा था. लेकिन कंपनी यह खुलासा करने में विफल रही कि वह इस सूचना का उपयोग कंपनियों को प्लेटफॉर्म पर यूजर्स को टारगेटेड ऑनलाइन विज्ञापन भेजने में सक्षम बनाने के लिए भी करेगी. रेगुलेटर्स ने बुधवार को दायर एक संघीय मुकदमे में यह भी आरोप लगाया कि ट्विटर ने झूठा दावा किया कि उसने यूरोपीय संघ और स्विट्जरलैंड के साथ अमेरिकी गोपनीयता समझौतों का अनुपालन (compliance) किया है
अमेरिकी अटॉर्नी स्टेफनी हिंड्स ने कहा, 'सोशल मीडिया पर अपनी निजी जानकारी साझा करने वाले यूजरों को यह जानने का अधिकार है कि क्या उस जानकारी का उपयोग विज्ञापनदाताओं को ग्राहकों को लक्षित करने में मदद करने के लिए किया जा रहा है.'
पिछले 20 साल में फेसबुक, ट्विटर, वॉट्सएप और इंस्टाग्राम जैसे टॉप-10 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर 19 अरब एक्टिव यूजर्स हो चुके हैं. यानी 8 अरब की आबादी वाली दुनिया में औसतन हर इंसान 2 से ज्यादा प्लेटफॉर्म पर मौजूद है. इसका सबसे बड़ा नुकसान ये है कि फेक न्यूज और हेट स्पीच फैलने की रफ्तार भी कई गुना बढ़ गई है.
रायटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोनाकाल में सोशल मीडिया पर फेक न्यूज 900% तक बढ़ गईं. फेसबुक पर मार्च और अप्रैल 2020 में हर महीने 4-5 करोड़ गलत सूचनाओं वाली पोस्ट की गईं और ट्विटर पर 15-20 लाख अकाउंट सिर्फ फेक न्यूज फैलाते रहे. यही नहीं, यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिल्वेनिया की स्टडी कहती है, 30 मिनट से ज्यादा सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वाले 'अकेलेपन' की समस्या का भी शिकार हो रहे हैं.