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सरसों की ये प्रजाति खाने-कमाने दोनों के लिए बेहतरीन

Gulabi
28 Sep 2021 1:58 PM GMT
सरसों की ये प्रजाति खाने-कमाने दोनों के लिए बेहतरीन
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सरसों की प्रजाति

मार्केट में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से डबल दाम मिलने की वजह से अगर आप सरसों की बुवाई करने के लिए सोच रहे हैं तो एक बार पूसा डबल जीरो मस्टर्ड-31 के बारे में जरूर जान लीजिए. अपनी गुणवत्ता की वजह से यह स्वास्थ्य के लिए सबसे बेहतर किस्म जाती है. यह किसानों की कमाई और खाने वालों के स्वास्थ्य दोनों नजरिए से बेहतर किस्म है. इस वक्त देश में सरसों की औसत पैदावार प्रति हेक्टेयर सिर्फ 15 क्विंटल है. लेकिन पूसा की नई किस्म 24-25 क्विंटल तक हो सकती है. इसकी बुवाई का यह उचित समय है. किसान भाई 15 अक्टूबर तक यह काम पूरा कर लें. लेकिन उससे पहले इसकी खासियत जान लें.


क्यों खास है इस प्रजाति के सरसों का तेल?
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के निदेशक डॉ. अशोक कुमार सिंह ने टीवी-9 डिजिटल से बातचीत में बताया कि 'पूसा मस्टर्ड-31' खूबियों से भरपूर एक प्रजाति है. इसे 'डबल जीरो सरसों' (उन्नत किस्म) भी कहा जाता है. सरसों के तेल में आमतौर पर 42 फीसदी फैटी एसिड होता है. इसे हम इरुसिक एसिड (Erucic acid) कहते हैं. यह स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होता है. खासतौर पर हृदय संबंधी बीमारियां पैदा करता है. जबकि 31 के तेल में इरुसिक एसिड 2 फीसदी से भी कम है. इसे जीरो एसिड माना जाता है.


पोल्ट्री में हो सकता है इसकी खली का इस्तेमाल
इसी तरह इसमें ग्लूकोसिनोलेट की मात्रा 30 माइक्रोमोल से कम होने की वजह से इसकी खली का इस्तेमाल पोल्ट्री भी किया जा सकता है. जबकि पोल्ट्री में सामान्य सरसों की खली का इस्तेमाल नहीं होता. ग्लूकोसिनोलेट एक सल्फर कंपाउंड होता है. इसलिए इसका इस्तेमाल उन पशुओं के भोजन के रूप में नहीं किया जाता जो जुगाली नहीं करते. क्योंकि इससे उनके अंदर घेंघा रोग हो जाता है.

आत्मनिर्भर होगा देश
अशोक सिंह का कहना है कि केंद्र सरकार ने सरसों की खेती को बढ़ाकर खाद्य तेलों का आयात कम करने के लिए मस्टर्ड मिशन शुरू किया है. क्योंकि हम कुल प्रोडक्शन, बुआई क्षेत्र और प्रति हेक्टेयर औसत उत्पादन में दुनिया के कई देशों से पीछे हैं. ऐसे में किसान भाईयों के लिए यही अच्छा है कि वे ज्यादा उपज देने वाली नई प्रजातियों का चुनाव करें. खासतौर पर 'डबल जीरो' सरसों. इससे अब खाद्य तेलों के मामले में आत्मनिर्भर होंगे.

किन क्षेत्रों के लिए अच्छी है यह किस्म
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) में सहायक महानिदेशक (बीज) डॉ. डीके यादव ने बताया कि पूसा मस्टर्ड डबल जीरो-31 (Pusa Mustard-31) की अच्छी खेती पंजाब, दिल्ली, पश्चिम यूपी एवं हरियाणा में हो सकती है. दूसरे क्षेत्रों में बुवाई करने पर पैदावार घट सकती है. लेकिन क्वालिटी वही रहेगी. पूर्वांचल एवं बिहार के लिए पूसा मस्टर्ड-25, 26, 27 एवं 28 ज्यादा बेहतर है.

खाद्य तेलों की मांग-आपूर्ति में अंतर
सरसों के उत्पादन में हम दुनिया में तीसरे नंबर पर हैं. जबकि एरिया के मामले में चीन के बाद दूसरे पर. भारत में सालाना 25 मिलियन टन खाद्य तेल की जरूरत है, जबकि हम अभी 10.5 मिलियन टन का उत्पादन कर रहे हैं. खाद्य तेलों में सरसों का योगदान करीब 28 फीसदी है. यह सोयाबीन के बाद दूसरी सबसे महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है.

सरसों उत्पादन का अनुमान
कृषि मंत्रालय ने साल 2020-21 के लिए मुख्‍य फसलों के उत्‍पादन का जो चौथा अग्रिम अनुमान जारी किया है उसके मुताबिक रेपसीड एवं सरसों का उत्पादन 10.11 मिलियन टन होने का अनुमान है. साल 2005-06 में इसका उत्पादन सिर्फ 81.31 लाख टन था.

आगे की योजना
इसका उत्पादन बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार ने मस्टर्ड मिशन शुरू किया है. अब तक देश के 60 लाख हेक्टेयर में इसकी खेती होती थी. सरकार की योजना लगभग 9 मिलियन हेक्टेयर भूमि को सरसों की खेती के तहत लाने और 2025-26 तक इसके उत्पादन को लगभग 17 मिलियन टन तक बढ़ाने की है. सरकार का फोकस ऐसे प्रदेशों में है जहां सरसों की खेती लायक स्थितियां मौजूद हैं लेकिन वहां पर किसानों का रुझान इस तरफ नहीं है.

किस प्रदेश में सबसे ज्यादा उत्पादन
फिलहाल, कुल सरसों उत्पादन का 40.82 फीसदी अकेले राजस्थान पैदा करता है. दूसरे नंबर पर हरियाणा है जहां देश की करीब 13.33 फीसदी सरसों पैदा होती है. इसके उत्पादन में मध्य प्रदेश में की हिस्सेदारी 11.76, यूपी की 11.40 और पश्चिम बंगाल की 8.64 फीसदी है.

सरसों उत्पादकता और भारत
कृषि मंत्रालय से जुड़े आर्थिक एवं सांख्यिकी निदेशालय के एक स्टेटस पेपर का आंकड़ा दुनिया में सरसों के मामले में हमारी स्थिति को साफ करता है. इसके मुताबिक साल 2015-16 में जब सरसों का विश्व औसत 2010 किलोग्राम था, तब भारत का औसत सिर्फ 1184 किलो था.

सरसों का सबसे बड़ा उत्पादक कनाडा प्रति हेक्टेयर 2210 किलोग्राम का उत्पादन कर रहा था. यूक्रेन 2500 किलो पैदा कर रहा था. यूरोपीय यूनियन के चार देशों फ्रांस, जर्मनी, पोलैंड और इंग्लैंड को मिलाकर औसतन 3640 किलो पैदावार थी.


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