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गुजरात का ये किसान विदेश भेजता है अपना उत्पाद
प्राकृतिक खेती एक ऐसी विधा है जो बंजर जमीन में भी हरियाली ला सकती है. कच्छ के एक सफल किसान ने इस बात को सही साबित कर दिया है. उन्होंने अपने फार्म में लगभग हर उस फसल से पैदावार ली है, जिसे कच्छ की मिट्टी में उगाना कठिन है. चुनौतियों को स्वीकार करते हुए उन्होंने प्राकृतिक पद्धति को अपना कर सफलता की नई कहानी लिख दी है.
आज वे अपने फार्म में स्ट्रॉबेरी, खारेक, ड्रैगन फ्रूट, अनार, आम, केला और सब्जी का उत्पादन कर रहे हैं. 1200 एकड़ में फैला उनका दायरा कामयाबी की कहानी खुद बयां कर रहा है. हरेश भाई ठक्कर ने एक एकड़ में 50 खारेक के पौधे लगाए हैं. पैदावार अच्छी मिले इसके लिए वे हर छोटी लेकिन जरूरी बातों का ध्यान रखते हैं.
तमाम फल और सब्जियों की कर रहे खेती
वे बताते हैं कि खारेक के प्रत्येक पौधों को 900 वर्ग फीट जगह की जरूरत होती है और करीब 3 साल बाद पैदावार मिलने लगती है. हालांकि पहली बार सिर्फ 15 से 20 किलो उत्पादन होता है. दूसरी बार यानी पौधे लगाने के चार साल बाद 50 किलो पैदावार मिलती है. लेकिन जैसे-जैसे समय बढ़ता है पैदावार की मात्रा बढ़ती जाती है और 6 से 7 साल में एक पेड़ से 200 किलो से अधिक उत्पादन होने लगता है. हर साल उत्पादन बढ़ता जाता है लेकिन लागत में ज्यादा बढ़ोतरी नहीं होती.
हरेश भाई ठक्कर डीडी किसान से बताते हैं कि हम आज आम, ड्रैगन फ्रूट, खारेक, स्ट्रॉबेरी और कच्छ में होने वाले सारे फलों की खेती कर रहे हैं. साथ ही सभी तरह की सब्जियों का उत्पादन भी होता है.
उत्पाद विदेश भेजकर कर रहे ज्यादा कमाई
हरेश भाई बताते हैं कि कुछ फसलों को नेट हाउस में उगाया जा रहा है. वे फसल विविधीकरण पर खासा जोर देते हैं और मानते हैं कि इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति में इजाफा होता है. फिलहाल वो सब्जी फसलों में ब्रोकोली, शिमला मिर्च, टमाटर और खीरा की खेती कर रहे हैं.
उनकी पैदावार की मांग सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है. बीते दो साल से वे खारेक की सप्लाई बांग्लादेश को कर रहे हैं. उनका कहना है कि जब से एपीएमसी को खत्म किया गया है, तब से किसानों के पास अपने उत्पाद को देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी बेचने का अवसर मिल गया है. हम जहां चाहें, वहां फसल बेच सकते हैं. वे कहते हैं कि हमें विदेश में माल भेजने पर ज्यादा आमदनी होती है.
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