पेट्रोल-डीजल के भाव में हो सकती है बड़ी बढ़ोतरी, 3 साल की सबसे बड़ी ऊंचाई पर पहुंचा कच्चा तेल
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। जो लोग पेट्रोल-डीजल के दाम में गिरावट की उम्मीद लगाए बैठे हैं, उनके लिए बुरी खबर है. वैश्विक बाजार में पिछले 5 दिन से जिस तेजी से कच्चे तेल की कीमतें चढ़ रही हैं, उसे देखते हुए घरेलू बाजार में तेल के भाव गिरने की गुंजाइश कम है. दाम घटने की कौन कहे, अब तो बढ़ने के ही ज्यादा संकेत मिल रहे हैं. सोमवार को कच्चे तेल की कीमतें (brent ब्रेंट) साल 2018 के बाद अपने चरम पर रहीं. इसकी रफ्तार 80 डॉलर प्रति बैरल दाम छूने की ओर अग्रसर है.
कहा जा रहा है कि कोविड के लॉकडाउन और जगह-जगह लगीं पाबंदियां खत्म होने के बाद गाड़ियां सड़कों पर उतर चुकी हैं. लोग तेलों का खूब इस्तेमाल कर रहे. लिहाजा, मांग बढ़ी है लेकिन तेल के कुएं उस हिसाब से कच्चा तेल नहीं उगल रहे. इससे मांग और आपूर्ति के दरमियान एक बड़ा फर्क आया है जिसने कीमतों में आग लगा दी है.
लगातार तेजी बरकरार
'रॉयटर्स' की एक रिपोर्ट कहती है कि लंदन में 0900 बजे (जीएमटी) प्रति बैरल कच्चे तेल की कीमत 79.24 अमेरिकी डॉलर थी और यह पिछले दिन से तकरीबन 1.5 परसेंट की तेजी देखी गई. पिछले तीन हफ्तों से कच्चे तेल में लगातार बढ़ोतरी जारी है. अरमेरिकी में भी कमोबेस यही हाल है जहां पिछले दिन की तुलना में 1.5 परसेंट वृद्धि के साथ कच्चे तेल के दाम 75.05 डॉलर देखे गए. इस साल जुलाई के बाद यह सबसे ज्यादा भाव है.
क्या कहता है गोल्डमैन सैक्स का अनुमान
गोल्डमैन सैक्स का एक अनुमान बताता है कि इस साल के अंत तक ब्रेंट का भाव 90 डॉलर को छू सकता है. पूरी दुनिया में कोरोना के डेल्टा वेरिएंट में नरमी आने के बाद लोगों की गतिविधियां तेज हुई हैं और तेल की मांग तेजी से बढ़ रही है. इसी तरह अभी हाल में अमेरिका में आए तूफान आईडा की तबाही से भी तेल सप्लाई पर गंभीर असर देखा जा रहा है. गोल्डमैन ने अपने अनुमान में कहा है, जितनी उम्मीद की जा रही थी, उससे कहीं ज्यादा मांग और सप्लाई में अंतर है. डेल्टा वेरिएंट की जद में आने के बाद दुनिया में इस तेजी से रिकवरी देखी जाएगी, ऐसा किसी ने सोचा भी नहीं था. आने वाले समय में सप्लाई में और भी कमी देखी जा सकती है.
ओपेक ने खड़े किए हाथ
दूसरी तरफ तेल उत्पादन करने वाले देशों का संगठन ओपेक पहले ही हाथ खड़े कर चुका है. उसका कहना है कि ऐसे नाजुक वक्त में कच्चे तेल की सप्लाई बढ़ा लेना, उसके बूते से बाहर है. ओपेक का रोना है कि तेल के कुएं या सप्लाई के इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश कम हो गया है और इंफ्रा का मेंटीनेंस बेहद धीमी गति से चल रहा है. ऐसे में सप्लाई बढ़ाने की संभावना कम है. मैक्सिको की खाड़ी में भी हलचल है जिस वजह से सप्लाई में कठिनाई आ रही है. अमेरिकी बाजार के साथ यूरोप का भी लगभग यही हाल है.
भारत में क्या है स्थिति
तेलों के दाम बढ़ने के पीछे एक वजह यह भी बताई जा रही है कि पूरी दुनिया में जिस तरह से प्राकृतिक गैसों के दाम बढ़े हैं, उससे बाजार में एक अफवाह उड़ गई कि लोग अब वैकल्पिक ईंधन का सहारा ले सकते हैं. इस अफवाह ने भी तेल का खेल खराब कर दिया है. जहां तक बात भारत की है तो पिछले तीन महीने का रिकॉर्ड देखें तो अगस्त में आयात सबसे ज्यादा बढ़ा है. जुलाई के बाद आयात में यह बड़ी तेजी देखी गई है क्योंकि तेलों की बढ़ती मांग को देखते हुए रिफाइनर्स ने बड़ी मात्रा में तेल इकट्ठा कर लिए.