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मनुष्य की इस चीज के आगे धन-दौलत भी है तुक्ष्य, इसके लिए पत्नी का भी कर देना चाहिए त्याग
भारत के महान दार्शनिक आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों के माध्यम मानव और समाज के कल्याण की कई बातें बताई हैं। उन्होंने नीतियों के माध्यम से व्यक्ति को सफल जीवन जीने का रास्ता बताया है। चाणक्य नीति ने नीति शास्त्र के पहले अध्याय के छठे श्लोक में बताया कि एक व्यक्ति के लिए सबसे जरूरी चीज क्या है? क्योंकि इसी के माध्यम से वह सांसारिक भोगों से छुटकारा पा सकता है।
आचार्य चाणक्य ने इस श्लोक के माध्यम से बताया है कि अगर स्त्री और धन में किसी एक चीज को चुनना हैं तो आप किस चीज को चुनेंगे। वहीं अगर आत्मा की बात आती है तो आप उसके आगे किस चीजों को रखते हैं। क्योंकि यह एक चीज आपको परमात्मा से मिलाने का एक जरिया है।
श्लोक
आपदर्थे धनं रक्षेत् दारान् रक्षेद्धनैरपि।
आत्मानं सततं रक्षेद् दारैरपि धनैरपि॥
व्यक्ति को आने वाली मुसीबतों से निपटने के लिए धन इकट्ठा करना चाहिए। लेकिन जब स्त्री की सुरक्षा की बात आए तो धन-सम्पदा का त्याग कर देना चाहिए। लेकिन जब आत्मा की सुरक्षा की बात आती है तो उसे धन और पत्नी दोनो को तुक्ष्य समझना चाहिए।
आचार्य चाणक्य के मतानुसार जो व्यक्ति बुद्धिमान होता है वह विपत्ति के समय सबसे पहले अपने धन को सुरक्षित करता है, जिससे आने वाले समय में उसे खाना, वस्त्र के साथ अन्य जरूरत आसानी से पूरी कर सके। लेकिन जब स्त्री की रक्षा की बात आए तो धन का मोह भी त्याग देना चाहिए। क्योंकि एक स्त्री की सुरक्षा करना सबसे बड़ा काम है। क्योंकि एक महिला का कद धन से कई गुना ऊंचा है। वह घर की लाज होने के साथ सुख-दुख के साथी होती है। लेकिन जब बात आत्मा की बचाने की आए तो सबसे धन और स्त्री का भी त्याग कर देना चाहिए। क्योंकि किसी मनुष्य के जीने के लिए सच्ची आत्मा का होना बहुत ही जरूरी है। यानी जब अध्यात्म, तप या फिर मोक्ष की बात आए तो हर चीज को छोड़कर इस राह में चल देने वाला व्यक्ति की उत्तम और सच्चा पुरुष कहलाता है। क्योंकि आत्मा ही एक ऐसी चीज है जो व्यक्ति को परमात्मा से जोड़ती है।