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गणित लगाया जाता है कि देश में खाने के तेल का रेट घटाना है, तो विदेशों से आने वाले पाम तेल पर आयात शुल्क कम कर दिया जाए. आयात शुल्क कम होगा तो इंपोर्टेड तेल की लागत घटेगी और ग्राहकों तक भी कम लागत में तेल उपलब्ध हो पाएगा, लेकिन क्या यह गणित हर बार सही बैठता है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क।
देश में हर साल जितना खाने का तेल चाहिए होता है, उसका लगभग 60 फीसदी हिस्सा आयात करना पड़ता है और जो तेल आयात होता है उसमें भी 60 फीसदी से ज्यादा पाम ऑयल होता है. ऐसे में गणित लगाया जाता है कि देश में खाने के तेल का रेट घटाना है, तो विदेशों से आने वाले पाम तेल पर आयात शुल्क कम कर दिया जाए. आयात शुल्क कम होगा तो इंपोर्टेड तेल की लागत घटेगी और ग्राहकों तक भी कम लागत में तेल उपलब्ध हो पाएगा, लेकिन क्या यह गणित हर बार सही बैठता है. आइए इस बारे में डिटेल में जानते हैं.
इस बात को जानने के लिए हमें पिछले दिनों में पाम ऑयल पर इंपोर्ट ड्यूटी में हुई कटौती के बाद कीमतों पर पड़े असर को देखना होगा. देश में जो पाम ऑयल आयात होता है, उसमें अधिकतर हिस्सेदारी क्रूड पाम ऑयल की होती है और क्रूड पाम ऑयल को इंपोर्ट करके घरेलू इंडस्ट्री उसको रिफाइन करती है और फिर पैकिंग करके मार्केट में बेचती है.
सरकार ने सितंबर में घटाया था आयात शुल्क
सरकार ने इसी साल 11 सितंबर को क्रूड पाम ऑयल पर आयात शुल्क 30.25 फीसदी से घटाकर 24.75 प्रतिशत किया था, उम्मीद थी कि अगले 9-10 दिन में ग्राहकों को मिलने वाले रिफाइंड पाम ऑयल के दाम घटेंगे. लेकिन 11 सितंबर को दिल्ली में दाम 134 रुपए किलो था और 20 सितंबर को भी यही दाम था. इसके बाद 14 अक्टूबर को सरकार ने फिर क्रूड पाम तेल पर आयात शुल्क 24.75 फीसदी से घटाकर 8.25 फीसदी कर दिया. इतनी बड़ी कटौती के बाद उम्मीद थी कि अगले 9-10 दिन में रेट कम हो जाएंगे. लेकिन दाम घटने के बजाय उल्टा बढ़ गए, 14 अक्टूबर को दिल्ली में भाव 129 रुपए प्रति किलो था जो 23 अक्टूबर को बढ़कर 133 रुपए हो गया.
इस बार तो सरकार ने क्रूड पाम ऑयल की जगह सीधे रिफाइंड पाम तेल पर ही आयात शुल्क 17.5 प्रतिशत से घटाकर 12.5 प्रतिशत कर दिया है. जिस दिन सरकार ने रेट घटाया है उस दिन दिल्ली में भाव 134 रुपए किलो था और पिछला ट्रेंड देखकर लग नहीं रहा कि कीमतों में कमी आएगी.
आखिर क्यों कम नहीं हो रही कीमतें?
दरअसल, इंडोनेशिया और मलेशिया सबसे बड़े पाम ऑयल उत्पादक देश हैं और हमारे देश को भी जरूरत पूरा करने के लिए इन्हीं देशों से पाम तेल आयात करना पड़ता है. इंडस्ट्री के जानकार कहते हैं कि भारत में जैसे ही इंपोर्ट ड्यूटी घटती है, तो इंडोनेशिया और मलेशिया में ऐसा संदेश जाता है कि भारत में मांग बढ़ जाएगी. इसी संभावना से वहां पर तेल के दाम बढ़ना शुरू हो जाते हैं, एक बार वहां रेट बढ़ गया तो फिर बढ़े हुए दाम पर ही इंपोर्ट करना पड़ेगा. ऐसे में इंपोर्ट ड्यूटी घटाने से जो लाभ मिलना चाहिए वह नहीं मिल पाता क्योंकि पहले ही दाम बढ़ जाते हैं. सरकार ने रिफाइंड पाम तेल पर आयात शुल्क कम किया है, लेकिन रिफाइंड पाम तेल को लेकर एक और पेंच है.
अभी तक आयात होने वाले कुल पाम तेल में रिफाइंड तेल की हिस्सेदारी बहुत कम है, लेकिन इंडस्ट्री को डर है कि रिफाइंड तेल पर इंपोर्ट ड्यूटी घटने से उसका आयात बढ़ेगा. और क्रूड तेल का आयात घट जाएगा. जो रिफाइंड तेल आएगा वह सस्ता ही मिलेगा, इसकी गारंटी नहीं है.
तेल तिलहन उद्योग के संगठन सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट अतुल चतुर्वेदी मानते हैं कि अभी तक हर महीने सिर्फ 50 हजार टन रिफाइंड पाम तेल आयात हो रहा था. लेकिन, आयात शुल्क घटने से यह आंकड़ा 2.5 लाख टन तक पहुंच सकता है. इससे तेल रिफाइनिंग का काम करने वाली घरेलू इंडस्ट्री को नुकसान होगा और इंडोनेशिया और मलेशिया की इंडस्ट्री को फायदा होगा.
इंपोर्ट ड्यूटी कम करने का दांव चल नहीं रहा है. बीते एक साल में पैक्ड पाम ऑयल कीमतों में 15-16 फीसदी की बढ़ोतरी देखने को मिली है. वहीं, दूसरे खाद्य तेलों के दाम तो और भी ज्यादा बढ़े हैं. सरकारी आंकड़ों को देखें नवंबर 2020 के मुकाबले नवंबर 2021 में तेल और फैट की महंगाई दर 29 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ी है.
खाने के तेलों में यह महंगाई देश में तिलहन की रिकॉर्ड उपज के बावजूद बढ़ी है, लेकिन इस तिलहन से उतना ही तेल पैदा होता है जो खाने के तेल की हमारी जरूरत को 40 प्रतिशत तक ही पूरा कर पाए. इसके अलावा बाकी 60 प्रतिशत के लिए हमें विदेशी खाने के तेल पर ही निर्भर रहना पड़ रहा है.
खाने के तेल की कीमतें काबू में रह सकें, यह तभी संभव होगा जब देश अपनी जरूरत को पूरा करने लायक उत्पादन कर सकेगा और यह तभी हो पाएगा जब देश का तिलहन उत्पादन मौजूदा स्तर से दोगुना से ज्यादा बढ़े.
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