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एक ओर भारत ने जहां गैर-बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगाकर भले ही दुनिया के लिए परेशानी पैदा कर दी हो वहीं दूसरी ओर इस बार भारत में चावल का बुआई क्षेत्र पिछले साल से बढ़ गया है. लेकिन चिंता दालों को लेकर पैदा हो गई है. आंकड़े बता रहे हैं कि पिछले साल के मुकाबले इस साल अब तक दालों की बुआई कम हुई है. पिछले साल जहां दालों की बुआई 109.15 लाख हेक्टेयर में की गई थी. इस साल दालों की बुआई अब तक मात्र 98.84 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है. इससे आशंका पैदा हो गई है कि क्या देश में दालें महंगी हो जाएंगी.
चावल की कितनी हुई है बुआई
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इस साल चावल की बुआई 237.58 लाख हेक्टेयर में हुई है, जबकि पिछले साल ये बुआई 233.25 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी. अगर पिछले साल के मुकाबले आंकड़ों पर नजर डालें तो इस साल लगभग 3 लाख हेक्टेयर ज्यादा खेती पर चावल पैदा हुआ है. इसका मतलब ये है कि चावल की पैदावार बंपर होने वाली है. चावल को ही लेकर हाल ही में भारत सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए गैर-बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगा दी थी. सरकार ने ये कदम दामों में हो रहे इजाफे को देखते हुए उठाया था.
दालों की कितनी हुई बुआई ?
वहीं अगर दालों की बुआई पर नजर डालें तो पिछले साल पूरे देश में 109.15 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में दालों की बुआई हुई थी जबकि इस साल ये अभी तक 96.84 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है. इनमें अरहर, उरद, मूंग, और कुल्थी जैसी दूसरी दालें शामिल हैं. इन सभी दालों के बुआई क्षेत्र में कमी देखने को मिली है. पिछले साल दालों की बुआई ज्यादा हुई थी. उसका नतीजा ये हुआ था कि दालों के दामों पर पूरे साल नियंत्रण लगा रहा.
क्या रहा है मोटे अनाज का हाल?
इस साल मोदी सरकार मोटे अन्न को ज्यादा बढ़ावा देने के लिए काफी प्रयास कर रही है. सरकार की ओर से मोटे अनाज को श्री अन्न का नाम दिया गया है. अगर इसकी पैदावार पर नजर डालें तो इस साल अब तक 145.76 लाख हेक्टेयर में इसकी बुआई की जा चुकी है. जबकि पिछले साल इसकी बुआई 143.48 लाख हेक्टेयर में की गई थी. श्री अन्न की कैटेगिरी में ज्वार, बाजरा, रागी, छोटा अनाज मक्का जैसी फसलें शामिल होती हैं. वहीं तेल से जुड़ी फसलों की बुआई में भी इजाफा हुआ है. पिछले साल जहां 161.67 लाख हेक्टेयर में इसकी बुआई की गई थी, वहीं इस साल इसकी बुआई 171.02 लाख हेक्टेयर में की गई है. वहीं सुगरकेन की बुआई में 6 प्रतिशत का इजाफा देखने को मिला है जबकि कॉटन क्राप में मामूली कमी देखने को मिली है.
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