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- दवाओं के उत्पादन में...
भरत झुनझुनवाला : वर्ष 1970 में भारत के दवा बाजार का दो तिहाई हिस्सा बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों के हाथ में था। बाद में भारत ने प्रोडक्ट पेटेंट को निरस्त कर दिया। परिणामस्वरूप पेटेंट की गई दवाओं को अन्य तकनीक से उत्पादन करने की भारतीय दवा कंपनियों को छूट मिल गई। फिर भारत में दवा का उत्पादन तेजी से बढ़ा। इससे भारत के दवा बाजार पर भारतीय कंपनियां प्रभावी हो गईं। साथ-साथ दवा उत्पादन करने के लिए जिस कच्चे माल यानी एपीआइ (एक्टिव फार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट) की जरूरत थी, उसका भी 99 प्रतिशत हिस्सा देश में बनाया जाने लगा। आज भी भारत के दवा बाजार में भारतीय कंपनियां प्रभावी हैं, लेकिन एपीआइ की चाल बदल गई है। साल 1991 के बाद विदेश व्यापार को सरल करने का परिणाम यह हुआ कि 2019 में एपीआइ का 70 प्रतिशत आयात होने लगा। फिलहाल तैयार दवा में भारतीय कंपनियों का दबदबा जारी है, लेकिन एपीआइ के मामले में हम बाजार से बाहर हो गए हैं। चिंता यह है कि हमारी यह उपलब्धि भी खिसकने को है। तैयार दवाओं में भी अगले छह वर्षों में चीन प्रवेश कर सकता है। साफ है आगे बड़ा खतरा है।