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खास तौर पर जो देश कोरोना महामारी के बाद धीरे धीरे उबरने लगे थे उन्हें ज्यादा झटके उठाने पड़ सकते हैं।
विश्व बैंक के बाद अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने भी वर्ष 2022 के लिए भारत के विकास दर अनुमान को घटा दिया है। मंगलवार को आइएमएफ की तरफ से जारी रिपोर्ट में इस वर्ष के लिए भारत की इकोनोमी में 8.2 फीसद की वृद्धि दर होने का अनुमान लगाया है। पहले 9 फीसद वृद्धि दर का अनुमान था। हालांकि नए आकलन में वृद्धि दर की रफ्तार घटने के बावजूद भारतीय इकोनोमी चीन के मुकाबले तकरीबन दोगुनी रफ्तार से आगे बढ़ेगी। आइएमएफ ने इस वर्ष चीन की इकोनोमी की वृद्धि दर 4.4 फीसद रहने की बात कही है। वैश्विक इकोनोमी की वृद्धि दर अनुमान को भी आइएमएफ ने 6.1 फीसद से घटा कर 3.6 फीसद कर दिया है।
विश्व बैंक ने भी पिछले हफ्ते भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर अपने अनुमानों को घटा दिया था। आइएमएफ की रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2023 में भारत की विकास दर घट कर 6.9 फीसद पर आ जाएगी। जबकि वर्ष 2021 में देश की विकास दर 8.9 फीसद रही थी। दो अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की तरफ से विकास दर अनुमान घटाने का साफ मतलब है कि यूक्रेन-रूस युद्ध का दुनिया भर में बहुत ही उल्टा असर होने वाला है। आइएमएफ ने यह बात भी कही है। इसने यूक्रेन-रूस के अलावा खाद्य उत्पादों की कीमतों में भारी वृद्धि को भी एक बड़ी वजह बताया है। अगर विकास दर अनुमान में गिरावट के लिहाज से देखें तो आइएमएफ ने जापान और भारत के लिए ही इतनी ज्यादा गिरावट की बात कही है। इन दोनो देशों की इकोनोमी में पेट्रो उत्पादों का बड़ा हिस्सा है और इसके लिए ये अधिकांश तौर पर आयात पर निर्भर है। अब जबकि क्रूड की कीमतें काफी बढ़ गई हैं तो इनकी विकास दर प्रभावित होने की संभावना बन गई है। कई घरेलू एजेंसियों ने भी भारत की विकास दर के अनुमान को कम किया है।
अगर चीन से तुलना करें तो आइएमएफ के अनुमान के सही रहने की स्थिति में भारत आर्थिक मोर्चे पर चीन के मुकाबले इतनी तेजी से कभी आगे नहीं बढ़ा है। आइएमएफ का मानना है कि वर्ष 2021 में 8.1 फीसद की विकास दर हासिल करने वाला चीन वर्ष 2022 में सिर्फ 4.4 फीसद की वृद्धि दर ही हासिल कर सकेगा। वर्ष 2023 में यह घट कर 5.1 फीसद रह जाएगा। आइएमएफ ने कहा है कि यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद जो हालात बने हैं उसका असर दूर दराज के देशों पर भी होने वाला है। विभिन्न तरह के उत्पादों व कच्चे मालों की कीमतों का असर हर तरह के देश पर होगा। खास तौर पर जो देश कोरोना महामारी के बाद धीरे धीरे उबरने लगे थे उन्हें ज्यादा झटके उठाने पड़ सकते हैं।
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