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जिस बच्चे को स्कूल ने निकाला था बहार, आज है 5,000 से ज्यादा ट्रकों का है मालिक, पढ़े पूरी कहनी

Neha Dani
16 Nov 2020 8:30 AM GMT
जिस बच्चे को स्कूल ने निकाला था बहार, आज है 5,000 से ज्यादा ट्रकों का है मालिक, पढ़े पूरी कहनी
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उस लड़के का दिमाग तो तेज था, लेकिन पढ़ाई पल्ले नहीं पड़ती थी।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| उस लड़के का दिमाग तो तेज था, लेकिन पढ़ाई पल्ले नहीं पड़ती थी। अनगिनत बातें दिमाग में चलती रहतीं। दिमाग को अवकाश ही नहीं था कि वह किताबों पर टिके। पढ़ाई के लिए बमुश्किल किताबें जुटती थीं, घर में भी किसी का ध्यान उसकी पढ़ाई पर नहीं रहता। माहौल ही अलग था, पीने-खाने, लड़ने-फटकारने का दौर जारी रहता था।

अब रहने दो, पढ़ाई तुमसे नहीं होगी

स्कूलों में शिक्षकों ने भी बहुत कोशिश की, लेकिन लड़का पढ़ाई पर जमने को तैयार नहीं था। चूंकि स्कूल जाना अनिवार्यता थी, इसलिए किसी तरह से पढ़ाई नाम भर के लिए चल रही थी। बीच-बीच में पढ़ाई कुछ सुधरती लगती थी, लेकिन फिर वही फिसड्डी ढर्रा लौट आता था। कभी लगता, पढ़ाई और स्कूल एक सजा है, जिसे उम्र के इस पड़ाव पर भुगतना ही पडे़गा। धीरे-धीरे करते वह लड़का 16 साल का हो गया, अब वह ऐसा बच्चा नहीं रहा, जिसे प्यार से बार-बार समझाकर मौका दिया जाए। एक दिन वह भी आया, जब स्कूल में शिक्षक ने कह दिया, 'तुम अब रहने दो, पढ़ाई तुमसे नहीं होगी'।

पिता की बदजुबानी भारी पड़ रही थी

उस लड़के को झटका लगा। पढ़ाई में भले मन नहीं लगता हो, लेकिन स्कूल एक सहारा तो है। जब वही नहीं रहेगा, तब क्या होगा? जैसे पहले स्कूल से साथ मिलता रहा, ठीक वैसे ही आगे भी मिलता रहे, तो स्कूल का दौर कट ही जाएगा, लेकिन स्कूल वाले मानने को तैयार नहीं हुए। स्कूल छूट गया। 17 की उम्र लगने वाली थी। परिवार वालों को खास फर्क नहीं पड़ा। ट्रक ड्राइवर पिता की बदजुबानी भारी पड़ती थी और मां भी नशा करने-लड़ने-झगड़ने में पीछे नहीं थीं। बहुत मुश्किल था, जिंदगी को फिर पटरी पर लाना। कोई समझाने वाला नहीं था। फुटबॉल का शौक था, लेकिन उससे जिंदगी तो नहीं चलेगी। एक स्कूल ने निकाल दिया है, तो दूसरा भी प्रवेश नहीं देगा, फिर पढ़ाई की तो कोई गुंजाइश नहीं रही। तो फिर क्या किया जाए?

ठान लिया कि किसी तरह ट्रक मालिक बनना है

बहुत सोच-विचारकर उस लड़के ने अपने अनुकूल एक काम चुना। पिता की तरह ही ट्रक चलाने का काम। ट्रक चलाते पिता की उम्र कट रही थी, क्या उसकी भी ऐसे ही कट जाएगी, यह चिंता साथ-साथ चल रही थी। उसने ठान लिया कि किसी तरह से ट्रक मालिक बनना है। वह वक्त भी जल्द आया, कर्ज लेकर 19 की उम्र में लिंडसे फॉक्स ट्रक मालिक बन गए। उन्होंने साबित कर दिया कि बुरी से बुरी स्थिति में भी सौभाग्य के स्रोत मौजूद होते हैं। उन्हें पहचानना और मजबूती से थामना पड़ता है। वह तेजी से बढ़ते गए, जिंदगी संवरती चलती गई। बहुत जल्दी ही लोग उन्हें पहचानने लगे। एक-एक करके ट्रकों की संख्या बढ़ती चली गई।

दस से ज्यादा देशों में वह अपनी सेवाएं

1960 में लिंडसे ने अपना पहला डिपो खोला, जिसमें उनके लाल, पीले और काले ट्रक खडे़ होने लगे। साल 1961 में लिंडसे ने महसूस किया कि उन्हें और तेजी से आगे बढ़ने के लिए खुद ट्रक चलाना बंद कर देना चाहिए और अपने व्यवसाय पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने छह ड्राइवर रख लिए और अपना व्यापार फैलाना शुरू कर दिया। वह ज्यादा पढ़ न सके, लेकिन उनका बात-व्यवहार इतना अच्छा था कि उनसे शुरू के दौर में जुड़ी अनेक कंपनियां आज भी जुड़ी हुई हैं। बड़ी-बड़ी कंपनियों से वह कुछ समय के लिए ही सही छोटा काम लेते थे और बेहतर सेवा से अपनी छाप छोड़ते थे। जब उनकी उम्र 30 हुई, तब उनके काफिले में 60 ट्रक शामिल हो चुके थे। आज उनके काफिले में 5,000 से ज्यादा ट्रक हैं और दस से ज्यादा देशों में वह अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

ऑस्ट्रेलिया की सबसे बड़ी ट्रांसपोर्ट कंपनी

ऑस्ट्रेलिया की सबसे बड़ी ट्रांसपोर्ट कंपनी का यह मालिक दुनिया के अमीरों में शुमार है। उनका अच्छा व्यवहार कंपनी के काम में भी दिखता है। किसी भी ड्राइवर कर्मचारी के खून में अगर किसी भी प्रकार का नशा मिल जाए, तो उसके लिए उनकी कंपनी के दरवाजे बंद हो जाते हैं। लिंडसे अक्सर कहते हैं, व्यक्तिगत रिश्ते हमेशा ही अच्छे व्यवसाय की कुंजी होते हैं। आप नेटवर्किंग खरीद सकते हैं, दोस्ती नहीं खरीद सकते। यदि आप मानते हैं कि आप कुछ अलग कर सकते हैं, तो आप कुछ अलग कर देंगे। अपने आप पर, अपने परिवार और अपने समुदाय पर विश्वास कीजिए, जीत आपकी होगी।

जिस बच्चे को मेलबर्न हाईस्कूल ने अयोग्य मानकर निकाल दिया था, वह अब इतना बड़ा हो गया है कि स्कूल को भी उस पर गर्व है। स्कूल में उसे खास मेहमान बनाकर बुलाया जाता है। परिवहन व्यवसाय की दुनिया में अब उन्हें कौन नहीं जानता, लेकिन वह अपने स्कूली दिनों को याद करते हुए कहते हैं, मेरे पिता एक ट्रक ड्राइवर थे। बस यहीं से शुरुआत हुई और अकादमिक रूप से मैं स्कूल में बहुत खराब था। मेरे चचेरे भाई का नाम सम्मान के साथ बोर्ड पर लिखा जाता था, जबकि मैं मेलबर्न हाई स्कूल में अपने डेस्क पर अपना नाम उकेरता था।

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