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Tata Sons AGM: रतन टाटा और साइरस मिस्त्री के बीच जारी है

Kajal Dubey
1 Sep 2022 5:43 PM GMT
Tata Sons AGM: रतन टाटा और साइरस मिस्त्री के बीच जारी है
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देश के सबसे बड़े औद्योगिक घराने टाटा ग्रुप (Tata Group) की होल्डिंग कंपनी टाटा संस (Tata Sons) की मंगलवार को एजीएम हुई।
देश के सबसे बड़े औद्योगिक घराने टाटा ग्रुप (Tata Group) की होल्डिंग कंपनी टाटा संस (Tata Sons) की मंगलवार को एजीएम हुई। इसमें एक बार फिर साइरस मिस्त्री (Cyrus Mistry) के के अगुवाई वाले शापूरजी पलौंजी ग्रुप (SP Group) और टाटा ग्रुप में टकराव दिखाई दिया। इस मीटिंग में टाटा संस ने चेयरमैन की नियुक्ति से संबंधित नियम में बदलाव को मंजूरी दी। लेकिन एसपी ग्रुप ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया। एसपी ग्रुप की टाटा संस में 18.4 फीसदी हिस्सेदारी है और यह कंपनी का सबसे बड़ा माइनोरिटी स्टेकहोल्डर है। मीटिंग में एसपी ग्रुप ने ज्यादा डिविडेंड देने की मांग उठाई। इतना ही नहीं उसने दो डायरेक्टर्स की नियुक्ति का विरोध किया और एक डायरेक्टर की फिर से नियुक्ति के मामले में वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया।
पलौंजी मिस्त्री के बेटे साइरस मिस्त्री को साल 2012 में रतन टाटा (Ratan Tata) की जगह टाटा संस का चेयरमैन बनाया गया था। लेकिन चार साल बाद 2016 में उन्हें अचानक पद से हटा दिया गया था। तभी से उनकी टाटा समूह के साथ ठनी हुई थी। टाटा समूह ने टाटा संस में एसपी ग्रुप की हिस्सेदारी खुद खरीदने का प्रस्ताव दिया था, जिसके लिए मिस्त्री परिवार तैयार नहीं था। यह मामला कोर्ट में भी पहुंचा था जिसने टाटा के पक्ष में फैसला दिया था। एसपी ग्रुप पर भारी कर्ज है और उसने टाटा संस के कुछ शेयरों को गिरवी रखा है।
मिस्त्री विवाद में टाटा ग्रुप की साख को बट्टा लगा था। यही वजह है कि भविष्य में ऐसे विवादों से बचने के लिए टाटा ग्रुप ने पक्का इंतजाम कर दिया है। मंगलवार को हुई एजीएम में कंपनी के आर्टिकल ऑफ एसोसिएशन की धारा 118 में बदलाव को मंजूरी दी गई। इसके मुताबिक अब कोई व्यक्ति एक साथ टाटा संस और टाटा ट्रस्ट्स का चेयरमैन नहीं बन सकता है। जानकारों का कहना है कि इससे भविष्य में मिस्त्री जैसे विवाद से बचने में मदद मिलेगी। इससे यह सुनिश्चित होगा कि ग्रुप में किसी एक व्यक्ति का दबदबा नहीं रहेगा और ग्रुप प्रोफेशनल तरीके से काम कर सकेगा।
लेकिन एसपी ग्रुप ने इससे जुड़े प्रस्ताव पर वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया। इससे जुड़े प्रस्ताव को पारित करने के लिए 75 फीसदी शेयरहोल्डर्स की मंजूरी की जरूरत थी। टाटा संस में टाटा ट्रस्ट्स, टाटा ग्रुप की कंपनियों और उनसे जुड़ी कंपनियों की 75 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी है। यही वजह है कि यह प्रस्ताव मैज्योरिटी वोट्स से पारित हो गया।
न्यूज़ क्रेडिट : खुलासा इन
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