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कर्नाटक के सफल किसान, उन्नत तकनीक से करते हैं खेती और कमाते लाखों रुपए

Shiddhant Shriwas
30 Sep 2021 6:51 AM GMT
कर्नाटक के सफल किसान, उन्नत तकनीक से करते हैं खेती और कमाते लाखों रुपए
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बीएसएनएल में नौकरी मिल तो गई. लेकिन उन्हें इस काम में संतुष्टि नहीं मिली. उनके पास खेती करने का विकल्प था और उन्होंने पूर्वजों से विरासत में मिली कृषि भूमि को विकसित करने का बीड़ा उठाया.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कृषि को सफल बनाने के लिए पूरी लगन और मेहनत से काम करना पड़ता है तब जाकर इसमें सफलता मिलती है. इसके अलावा नये प्रयोग और नयी तकनीक को अपनाने से पैदावार बढ़ती है और उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार आता है. कर्नाटक के रट्टाडी गांव के एक युवा किसान सतीश हेगड़े इसी मंत्र को अपना कर सफलता हासिल की है. उन्होंने साबित कर दिया की अगर कड़ी मेहनत और आत्मविश्वास के साथ ईमानदारी से प्रयास किया जाए तो बंजर भूमि को भी सोने में बदला जा सकता है.

उन्नत तकनीक से करते हैं खेती
एकीकृत खेती और संगठित खेती का मिश्रण हेगड़े के खेती के मॉडल की अनूठी विशेषताएं हैं. उनके कृषि फार्म में विभिन्न प्रकार की कृषि फसलें और तकनीक अपनायी जाती हैं. खेती के पारंपरिक और आधुनिक दोनों तरीकों को यहां देखा जा सकता है. मुख्य रूप से सुपारी की खेती में उनका प्रयोग दिखाई देता है. यहां सुपारी के पेड़ों की कई नस्लें देखी जा सकती हैं. मीठे पानी में मछली पालन करने का उनका सफल प्रयास भी उल्लेखनीय है क्योंकि यह पश्चिमी घाट क्षेत्र में एक अनूठा प्रयोग है. शायद दूरदर्शी सोच शक्ति और बहु-प्रतिभाशाली व्यक्तित्व एक सफल किसान के विशेष गुण हैं.
4,000 से अधिक सुपारी के पेड़
सतीश हेगड़े की भूमि में 4,000 से अधिक सुपारी के पेड़, 350 से अधिक नारियल के पेड़ के अलावा अन्य फसलों जैसे केला, काजू के पेड़ हैं. वह डेयरी का काम भी करते हैं और देशी नस्ल की मुर्गी पालन करते हैं. सतीश हेगड़े ने पीयू की शिक्षा पूरी की और इलेक्ट्रिकल में डिप्लोमा पूरा किया. इसके बाद उन्हें बीएसएनएल में नौकरी मिल गई. लेकिन उन्हें इस काम में संतुष्टि नहीं मिली. उनके पास खेती करने का विकल्प था और उन्होंने पूर्वजों से विरासत में मिली कृषि भूमि को विकसित करने का बीड़ा उठाया. जब मजदूरों की कमी होती थी तो वह खुद सुबह से शाम तक मेहनत करते थे इस तरह से वो सुपारी के बागान का विस्तार करता चले गये. उन्होंने अमासेबेल कालसंका के तल पर एक बंजर भूमि की तरह एक क्षेत्र खरीदा और ठोस प्रयासों के साथ, भूमि को खेती के लिए अत्यधिक उपयुक्त भूमि में परिवर्तित कर दिया.
बंजर जमीन को बनाया उपजाऊ
नई अधिग्रहीत भूमि में उन्होंने विट्टल, मोहित नगर, इंटर मोहित और इंटर सी प्रजाति के सुपारी के पौधे लगाए. प्रचुर मात्रा में जैविक खाद उपलब्ध कराने के अलावा, उन्होंने अपने अध्ययन के माध्यम से प्राप्त अनुभव का उपयोग वृक्षारोपण की खेती के लिए किया. चार साल के भीतर, एक मजबूत, हरा और उपजाऊ खेत वहां उभरा. दाजीवर्ल्ड वेबसाइट के मुताबिक उन्होंने पपीते की खेती भी की. पपीते की रेड लेडी और ताइवान प्रजाति को उगाने में उनकी सफलता अब इतिहास बन गई है.
खेती में एक नया मुकाम हासिल किया
2004 में, धर्मस्थल ग्रामीण विकास परियोजना (DRDP) के मार्गदर्शन में, उन्होंने पहली बार रट्टाडी में अमासेबेल क्षेत्र में प्रगतिबंधु स्वयं सहायता समूह की शुरुआत की, हेगड़े प्रगतिबंधु स्वयं सहायता समाज के माध्यम से श्रम योजनाओं के आदान-प्रदान के माध्यम से, उन्होंने खेती में एक नया मुकाम हासिल किया. उन्होंने डीआरडीपी से वित्तीय सहायता प्राप्त की और इसका सर्वोत्तम उपयोग किया.
मिले कई पुरस्कार
उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें 2015 में धर्मस्थल से कृषि पुरस्कार, 2017 में कुंडापुर तालुक का सर्वश्रेष्ठ कृषक पुरस्कार और सबलाडी शीनप्पा शेट्टी पुरस्कार – 2018 दिया गया. उन्होंने 2015-17 के दौरान डीआरडीपी के कुंडापुर तालुक केंद्रीय समाज के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया. वह एक उत्साही युवा किसान हैं जो कृषि के बारे में जानकारी देने के लिए विभिन्न स्थानों पर जाते हैं.


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