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स्ट्रॉबेरी की खेती से जुड़ी टिप्स, जाने कैसे और कब करें

Bhumika Sahu
2 Feb 2022 5:45 AM GMT
स्ट्रॉबेरी की खेती से जुड़ी टिप्स, जाने कैसे और कब करें
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Strawberry Farming-सामान्य तौर पर स्ट्रॉबेरी की बुवाई सितंबर और अक्टूबर में की जाती है. लेकिन ठंडी जगहों पर इसे फरवरी और मार्च में भी बोया जा सकता है. वहीं पॉली हाउस में या संरक्षित विधि से खेती करने वाले किसान अन्य महीनों में भी बुवाई करते हैं.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। स्ट्रॉबेरी की खेती ठंडे जलवायु में की जाती है. इसका पौधा कुछ ही महीनों में फल देने लायक हो जाता है. भारत में स्ट्रॉबेरी (Strawberry Farming) की खेती कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के ऊपरी हिस्सों में की जाती है. इसे पहाड़ी और ठंडे इलाकों में बोया जाता है. इन राज्यों के अलावा महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश समेत कई अन्य राज्यों में भी किसान (Farmer) अब स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं. सामान्य तौर पर स्ट्रॉबेरी की बुवाई सितंबर और अक्टूबर में की जाती है. लेकिन ठंडी जगहों पर इसे फरवरी और मार्च में भी बोया जा सकता है. वहीं पॉली हाउस (Playhouse) में या संरक्षित विधि से खेती करने वाले किसान अन्य महीनों में भी बुवाई करते हैं. स्ट्रॉबेरी की बुवाई से पहले की तैयारी बहुत जरूरी है. खेत की मिट्टी पर विशेष काम करना पड़ा है. कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, खेती की मिट्टी को बारिक करने के बाद क्यारियां बनाई जाती है. क्यारियों की चौड़ाई डेढ़ मीटर और लंबाई 3 मीटर के आसपास रखी जाती है.

इसे जमीन से 15 सेंटी मीटर ऊंचा बनाया जाता है. इन्हीं क्यारियों पर स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाए जाते हैं. पौध से पौध की दूरी और कतार से कतार की दूरी 30 सेंटी मीटर रखने की सलाह दी जाती है. वहीं 1 कतार में लगभग 30 पौधे लगाए जाएंगे.
रोपई के बाद किसान भाई इस बात का ध्यान रखें कि पौधों पर फूल आने पर मल्चिंग जरूर करें. मल्चिंग काले रंग की 50 माइक्रोन मोटाई वाली पॉलीथीन से करनी चाहिए. इससे खर-पतवार पर नियंत्रण हो जाता है और फल सड़ने से बच जाते हैं. मल्चिंग करने से पैदावार में भी बढ़ोतरी होती है और मिट्टी में नमी भी थोड़ी ज्यादा देर तक बरकरार रहती है.
पहाड़ी इलाकों में बरसात होने पर स्ट्रॉबेरी के पौधों को पॉलीथीन से ढकने की सलाह दी जाती है. इससे फलों के गलने की समस्या नहीं होगी. अगर आप इन बातों का ध्यान रखते हुए स्ट्रॉबेरी की खेती करते हैं तो यह आपके लिए काफी लाभकारी साबित हो सकता है.
स्ट्रॉबेरी की खेती से जुड़ी टिप्स
कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि पूरी दुनिया में स्ट्रॉबेरी की अलग-अलग 600 किस्में मौजूद हैं. हालांकि भारत में व्यावासायिक खेती करने वाले किसान कमारोसा, चांडलर, ओफ्रा, ब्लैक मोर, स्वीड चार्ली, एलिस्ता और फेयर फॉक्स जैसी किस्मों का इस्तेमाल करते हैं. भारत के मौसम के लिहास से ये किस्में सही रहती हैं.
स्ट्रॉबेरी की खेती से पहले सितंबर के पहले सप्ताह में किसानों को 3-4 बार रोटर से जुताई करा देना चाहिए. फिर गोबर का खाद खेत में डाल देने से किसानों को लाभ मिलता है. किसान रासायनिक काद का इस्तेमाल भी कर सकते हैं.
ये सब करने के बाद खेत में बेड बनाना पड़ता है. बेड़ की चौड़ाई एक से दो फीट के बीच होती है और एक दूसरे से इतनी ही दूरी रखी जाती है. पौध लगाने के लिए प्लास्टिक मल्चिंग की जाती है और इसमें एक तय दूरी पर छेद कर दिया जाता है.
पौध लगाने के बाद ड्रिप या स्प्रिकंलर से सिंचाई कर देनी चाहिए. इसके बाद समय-समय पर नमी को ध्यान में रखते हुए सिंचाई करना जरूरी है.
स्ट्रॉबेरी से अच्छी पैदावार हासिल करने के लिए खाद बहुत जरूरी है. आप मिट्टी और स्ट्रॉबेरी की किस्म के आधार पर खाद दे सकते हैं. इसके लिए कृषि वैज्ञानिक से सलाल ले लेनी चाहिए.
पौध लगाने के डेढ़ महीने बाद स्ट्रॉबेरी से फल आने लगता है और यह सिलसिला चार महीने तक चलता है. फल का रंग आधे से अधिक लाल हो जाए तो इसकी तुड़ाई कर देनी चाहिए.


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