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SEBI लाया नए नियम, अब 'अल्गो ट्रेडिंग' को रेगुलेट करने की तैयारी, पढ़ें काम की जानकरी

Gulabi
14 Dec 2021 8:33 AM GMT
SEBI लाया नए नियम, अब अल्गो ट्रेडिंग को रेगुलेट करने की तैयारी, पढ़ें काम की जानकरी
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SEBI लाया नए नियम
अल्गो ट्रेडिंग का नाम भले नया हो, लेकिन ट्रेडिंग के कद्रदान इसका फायदा बहुत पहले से उठा रहे हैं. सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया या SEBI अब इसे रेगुलेट करने की तैयारी में है. एक आंकड़ा बताता है कि भारत में होने वाली ट्रेडिंग का तकरीबन 50 फीसदी हिस्सा अल्गो ट्रेडिंग से ही संपन्न हो रहा है. ऐसे में सेबी की निगाह पड़ना लाजिमी है. दरअसल, अल्गो ट्रेडिंग का मतलब अल्गोरिदम से जुड़ा है जो पूरी तरह से कंप्यूटर से जरिये पूरा किया जाता है. अल्गो ट्रेडिंग में भी यही काम होता है. इसमें कंप्यूटर के जरिये ही स्टॉक की खरीद-बेच की जाती है. इसका दूसरा नाम ऑटोमेटेड या प्रोग्राम्ड ट्रेडिंग भी है. आइए इस नए प्रकार की ट्रेडिंग के बारे में जानते हैं.
अल्गो ट्रेडिंग कंप्यूटर प्रोग्राम के माध्यम से की जाती है. कंप्यूटर में पहले से पैरामीटर्स, स्टॉक खरीद-बिक्री के निर्देश, मार्केट का पैटर्न और शर्तें फीड की गई रहती हैं. बस आपको स्टॉक खरीदने या बेचने के लिए कंप्यूटर का बटन दबाना होता है और काम पूरा हो जाता है. भारत में अल्गो ट्रेडिंग का दौर 2008 में ही शुरू हो गया था, लेकिन इसका फायदा वे ही लोग उठाते रहे हैं जो कंप्यूटर और प्रोग्रामिंग में दक्ष हों. रिटेल में स्टॉक खरीदने-बेचने का काम लोगों ने कुछ ही साल पहले शुरू किया है.
कैसे होती है अल्गो ट्रेडिंग
अल्गो ट्रेडिंग शुरू करने के पीछे मकसद ये था कि ट्रेडिंग में समय बचे और अधिक तेजी से बिजनेस हो. अगर आप खुद किसी स्टॉक को सेलेक्ट करें और खरीदें या बेचें तो उसमें अधिक समय लगेगा जबकि कंप्यूटर यह काम कुछ ही सेकंड में पूरा कर देता है. अल्गो ट्रेडिंग में कोई ब्रोकर कंप्यूटर प्रोग्राम के जरिये शेयर पहले ही सेलेक्ट कर लेता है और बाजार खुलते ही ट्रेडिंग शुरू हो जाती है. अल्गो ट्रेडिंग का लिंक स्टॉक एक्सचेंज के सर्वर से जुड़ा होता है. इसलिए ट्रेडिंग की हर जानकारी स्टॉक एक्सचेंज के साथ अपडेट होती रहती है.
अल्गो से ट्रेडिंग पूरी होने के पहले रिटेल ट्रेडर का या तो अपने ब्रोकर को फोन करना होता है या ब्रोकर के ऑफिस में जाना होता है. अल्गो ट्रेडिंग में ही मोबाइल ट्रेडिंग का प्रोसेस भी आता है जिसमें मोबाइल के जरिये स्टॉक खरीदे या बेचे जाते हैं. इसमें मोबाइल ऐप के द्वारा ऑर्डर दिए जाते हैं. अल्गो ट्रेडिंग का एक एडवांस्ड वर्जन भी है जिसमें बिना किसी इंसानी दखलंदाजी के काम होता है.
सेबी की क्यों लगी निगाह
सेबी ही स्टॉक एक्सचेंज का रेगुलेटर है और यही सभी ब्रोकर टर्मिनल को मॉनिटर करता है. लेकिन ट्रेडर्स के अल्गो प्रोग्राम के लिए एक्सचेंज की कोई मंजूरी नहीं चाहिए होती है. अल्गो की मॉनिटरिंग के लिए कोई रूल भी नहीं है. लेकिन सेबी को अब यह लगता है कि बिना रेगुलेशन वाले अल्गो से मार्केट या स्टॉक एक्सचेंज को खतरा हो सकता है.
बिना रेगुलेशन वाले अल्गो से मार्केट में छेड़छाड़ की भी आशंका है. यह भी हो सकता है कि जिन अल्गो की मॉनिटरिंग नहीं होती, वे ग्राहकों को भारी मुनाफा या रिटर्न का झांसा देकर फंसा दें. ट्रेडिंग फेल होने पर ग्राहकों का भारी नुकसान हो सकता है. 2015 में ऐसा एक विवाद हो चुका है जिसमें पता चला कि एनएसई ने कुछ चुनिंदा अल्गो ट्रेडर्स को बिजनेस में तरजीह दी थी. इन वजहों को देखते हुए सेबी अल्गो ट्रेडिंग को रेगुलेट करने की तैयारी में है.
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