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Sayunkt Kisan Morcha: आंदोलन के दौरान कुछ बड़े नेताओं ने सरकार को लिखी थी चिट्ठी, पढ़ें पूरी खबर

Gulabi Jagat
12 July 2022 4:01 PM GMT
Sayunkt Kisan Morcha: आंदोलन के दौरान कुछ बड़े नेताओं ने सरकार को लिखी थी चिट्ठी, पढ़ें पूरी खबर
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किसानों द्वारा तीन कृषि कानूनों का विरोध देश के इतिहास में सबसे लंबे आंदोलन के तौर पर दर्ज हो गया है. सरकार को ये कानून वापस लेने पड़े. लेकिन इस आंदोलन को लीड करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा में अब फूट पड़ गई है. मोर्चा का आरोप है कि एक ओर जब देश में किसान सड़कों पर आंदोलन कर रहे थे और सरकार से वार्ता की जा रही थी, तो वही दूसरी तरफ किसान आंदोलन (Farmers Protest) में शामिल कुछ नेता सरकार को चिट्ठी लिखकर अलग से बातचीत कर रहे थे. बाद में कई नेताओं ने चुनाव भी लड़ा. इस बारे में मोर्चा ने मंगलवार को दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके चुनाव लड़ने वाले नेताओं से किनारा करने का एलान किया.
मोर्चा के नेताओं ने कहा कि आंदोलन खत्म होने के बाद कुछ किसान नेता राजनीति में कूद गए थे. जिससे संगठन की साख को झटका लगा है. मोर्चा ने कहा कि संगठन को बिना विश्वास में लिए आंदोलन के दौरान कुछ नेताओं द्वारा सरकार को चिट्ठी लिखकर किसानों के विश्वास को तोड़ने का कार्य किया गया. कुछ किसान नेताओं द्वारा सरकार को एक चिट्ठी लिखी गई है जिसमें 1 कानून को रद्द करवाने, 1 कानून को राज्य सरकार पर छोड़ने, 1 कानून के ऊपर कमेटी बनाने और MSP की गारंटी कानून पर कमेटी बनाने की बात थी. फिर पता चला कि सरकार और कुछ चुनिंदा किसान नेताओं के बीच इस मसले पर सहमति बन गई है. प्रेस कांफ्रेंस में शिवकुमार कक्का, रिषिपाल अंबावता, बलदेव सिंह और अभिमन्यु कोहाट आदि मौजूद रहे.
सरकार को चिट्ठी लिखने पर उठाए थे सवाल
प्रेस कांफ्रेंस में किसान नेताओं ने कहा किचिट्ठी प्रकरण सामने आने के बाद एक वरिष्ठ किसान नेता ने पंजाब की 16 संगठनों की बैठक में चिट्ठी के सवाल को उठाया. शुरुआत में किसी ने जवाब नहीं दिया लेकिन बाद में जोर डालने पर किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने बताया कि अलग-अलग स्तर पर सरकार से बातचीत चल रही है. जिसमें मुख्य तौर पर उनके साथ किसान नेता हरमीत कदियां, बूटा सिंह बृजगिल और कुलवंत संधू शामिल हैं. चिट्ठी लिखने की पुष्टि करते हुए योगेंद्र यादव ने 30 नवम्बर को कोआर्डिनेशन कमेटी की बैठक में बताया कि 13 सितंबर को किसान नेता बलबीर राजेवाल के फ्लैट पर एक मीटिंग बुलाई गई थी जिसमें 21 व्यक्तियों को शामिल किया गया था और अलग-अलग स्तर पर केंद्र सरकार के साथ जारी बातचीत के बारे में 21 व्यक्तियों को अवगत कराया गया.
एसकेएम और देश के किसानों के साथ विश्वासघात
आरोप लगाया गया कि 13 सितम्बर की बैठक में बुलाये गए 21 नेताओं को छांटने का कार्य एक सोची-समझी रणनीति के तहत डॉ दर्शनपाल द्वारा किया गया. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इन तमाम नेताओं ने ऊपर किये गए कार्यों को करने से पहले मोर्चा की बैठक में कोई मंजूरी नहीं ली और मोर्चा व देश के किसानों को अंधेरे में रखकर आंदोलन को समाप्त करने की साजिश रची जो देश के किसानों के साथ बड़ा विश्वासघात था.
संयुक्त किसान मोर्चा का नया फैसला
मोर्चा की आगामी बैठक में चिट्ठी लिखने के आरोपियों को न बुलाया जाए और चिट्ठी लिखने के मुद्दे पर चर्चा की जाए और यदि मीटिंग में उन्हें बुलाया भी जाता है तो विस्तृत चर्चा के बाद जिन लोगों पर चिट्ठी लिखने का दोष साबित हो जाये, उन्हें फिर फैसला लेते समय वोट डालने का अधिकार न दिया जाए. चुनावी राजनीति में भाग लेने वाले नेताओं को आगामी बैठक में न बुलाया जाए.आगामी बैठक में लखीमपुर खीरी वाले प्रकरण पर कोई बड़ा फैसला लिया जाए.
बैठकों के बाहर होने लगे फैसले
इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए पहले 20 जून और फिर 28 जून को एक चिट्ठी मोर्चा की कोआर्डिनेशन कमेटी को भेजी गई, लेकिन उस कमेटी ने हमारे इन मुद्दों को अनसुना कर दिया. कोआर्डिनेशन कमेटी की बैठक में उस कमेटी के 2 सदस्यों ( जगजीत सिंह दल्लेवाल जी व शिव कुमार कक्काजी) ने हमारी मांगों को बार-बार प्रमुखता से उठाया लेकिन बहुमत के आधार पर उनकी बातों को अनसुना कर दिया गया. यहां पर सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मोर्चा की कोआर्डिनेशन कमेटी और बड़ी बैठक में हमेशा सर्वसम्मति से निर्णय लिए जाने की परंपरा थी लेकिन अचानक से अब बहुमत के आधार पर फैसले लिए जाने लगे जो मोर्चा की मूलभावना के खिलाफ है.
तो क्या आंदोलन समाप्ति पर नहीं बनी थी सहमति
जब 19 नवम्बर को देश के प्रधानमंत्री ने टीवी पर आकर घोषणा की कि वे तीनों कृषि कानून वापस ले रहे हैं, उसके बाद सरकार को चोरी-छुपे चिट्ठी लिखने में शामिल किसान नेताओं ने जल्द से जल्द आंदोलन समाप्त करने का प्रयास करते हुए अपने-अपने संगठनों की ट्रॉलियों को वापस भेजने लगे. उन्होंने बिना सलाह मशवरा किए अपने तंबू उखाड़ना शुरू कर दिया. हमारे साथियों ने एमएसपी के मुद्दे पर आंदोलन जारी रखने का आह्वान किया. लेकिन मोर्चा की एकता को बनाए रखने के लिए बड़े भारी मन से हमें यह निर्णय लेना पड़ा कि आंदोलन स्थगित किया जाए.
संयुक्त किसान मोर्चा के आगे के मुद्दे
लखीमपुर खीरी के किसान भाइयों को न्याय दिलवाया जाए.
एमएसपी गारंटी कानून बनाया जाए.
किसानों की पूर्ण कर्ज़मुक्ति और स्वामीनाथन आयोग के C2+50% फॉर्मूले के अनुसार एमएसपी दिया जाए.
आंदोलन के सभी केसों को खत्म किया जाए.
डब्ल्यूटीओ से भारत बाहर आये, आज तक किये गए सभी मुक्त व्यापार समझौतों पर रोक लगाई जाए. वर्तमान में नए मुक्त व्यापार समझौतों पर हो रही चर्चाओं पर रोक लगाई जाए.
Gulabi Jagat

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