भारत में इस साल 5जी स्पेक्ट्रम की नीलामी और आवंटन होना है। लेकिन इससे पहले सैटकॉम इंडस्ट्री एसोसिएशन (SIA-India) ने चिंता जाहिर करने हुए कहा कि अपकमिंग 5जी नीलामी के लिए सैटेलाइट बैंड के बंटवारे से भारत को 184.6 बिलियन डॉलर (करीब 13.6 लाख करोड़ रुपये) का नुकसान होगा। इसका मतलब है कि भारतीय नागरिकों को हाई-डिमांड, एडवांस्ड सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सर्विस नहीं मिलेगी। साथ ही देश को सालाना तौर पर भारतीय अर्थव्यवस्ता को भारी नुकसान होगा। रिपोर्ट के मुताबिक भारत को साल 2030 भारत की जीडीपी को करीब 13.6 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होगा।
जुलाई 2022 में हो सकती है नीलामी
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्पेक्ट्रम के आंवटन के लिए तर्कसंकत योजनाएं बनायी जानी चाहिए। जिससे जरूरत के हिसाब से स्पेक्ट्रम की नीलामी की जाएं। यह स्पेक्ट्रम के अधिकतम उपयोग की बेस्ट प्रैक्टिस हो सकती है। स्पेक्ट्रम आपूर्ति और मांग को बैलेंस रखकर स्पेक्ट्रम बैंड की नीलामी की योजाना पर काम करना चाहिए। SIA-India के महानिदेशन अनिल प्रकाश ने कहा कि 5जी स्पेक्ट्रम को भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) और दूरसंचार विभाग (DoT) की तरफ से मार्च 2022 में नीलामी की जा सकती है। मतलब अगर योजना के अनुसार चीजें होती हैं, तो देश में जुलाई-अगस्त में 5जी की नीलामी हो सकती है।
एसआईए-इंडिया के अनुसार, अकेले 3.6-3.67 गीगाहर्ट्ज़ बैंड में सी-बैंड स्पेक्ट्रम के नुकसान का असर पूरे देश में महसूस किया जाएगा। सैटेलाइट ब्रॉडबैंड पहले से ही इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसे में एसआईए-इंडिया 5जी/आईएमटी नीलामी में एमएम वेव स्पेक्ट्रम को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 24.25-27.5 गीगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम तक सीमित करने का आग्रह किया है।तीन निजी मोबाइल नेटवर्क ऑपरेटरों (एमएनओ) के साथ बाजार का 90 प्रतिशत हिस्सा है। उनमें से प्रत्येक राज्य के स्वामित्व वाले एमएनओ के लिए 30-60 मेगाहर्ट्ज छोड़कर 80-90 मेगाहर्ट्ज रिजर्व किया जाएगा।