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अनुपात 10-20% रहा है, जिसमें कुछ 20-30% तक रहे हैं.”
वित्तीय कंपनियों की आर्थिक स्थिति में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने लाभांश भुगतान को बैलेंस शीट मापदंडों से जोड़ने का फैसला लिया है. इसके तहत अब गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के बोर्ड्स को पर्यवेक्षण के दौरान आरबीआई के नियम के तहत लाभांश को मंजूरी देने से पहले डिटेल्स को खातों में नोट करना होगा. नियामक द्वारा निर्धारित नए लाभांश वितरण मानदंड मुख्य निवेश कंपनियों सहित सभी वित्त कंपनियों पर लागू होंगे. इससे एनबीएफसीज को डिविडेंट पे-आउट का लाभ मिलेगा. इसमें 50% अधिकतम लाभांश भुगतान का लाभ ले सकते हैं. जबकि मुख्य निवेश कंपनियों और प्राथमिक डीलरशिप फर्मों के लिए 60% के उच्च भुगतान की अनुमति दी गई है.
यह नियम वित्त वर्ष 2022 से लागू होगी. अभी तक एनबीएफसी कोई लाभांश कैप नहीं रखती है. वह सार्वजनिक धन स्वीकार नहीं करती है और न ही कोई ग्राहक इंटरफेस है. हालांकि, सभी वित्त कंपनियों को रिजर्व फंड के रखरखाव के संबंध में आरबीआई के नियमों का पालन करना होगा.
बैलेंस शीट थ्रेशोल्ड के तहत एनबीएफसी को लाभांश का भुगतान करने के लिए पिछले तीन वित्तीय वर्षों में से प्रत्येक के लिए निर्धारित नियामक पूंजी आवश्यकता को पूरा करना होगा. साथ ही, पिछले तीन वर्षों में से प्रत्येक में (एनपीए) अनुपात 6% से कम रखना होगा, जिसमें वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर लाभांश घोषित किया जा सके.
संशोधित मानदंड इक्विटी शेयरों के साथ-साथ परिवर्तनीय पूंजी पर मिलने वाले लाभांश के लिए भी लागू होगा. यदि किसी विशेष अवधि के लिए शुद्ध लाभ का अधिक विवरण है, तो भुगतान अनुपात की गणना करने से पहले ओवरस्टेटमेंट की सीमा को कम किया जाना चाहिए.
पहले के मुकाबले संशोधित एवं अंतिम दिशानिर्देशों ने लाभांश भुगतान की प्रक्रिया को आसान बना दिया है. इस बारे में आईसीआरए की वीपी और सेक्टर हेड, मनुश्री सागर का कहना है, "पिछले तीन वर्षों में, अधिकांश संस्थाओं के लिए लाभांश भुगतान अनुपात 10-20% रहा है, जिसमें कुछ 20-30% तक रहे हैं."
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