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भारतीय परिवारों की वित्तीय बचत जीडीपी की तुलना में 2022-23 में घटकर 50 साल के निचले स्तर 5.1 फीसदी पर आ गई है। रुपये में यह बचत 13.77 लाख करोड़ है। आरबीआई आंकड़ों के मुताबिक, 2021-22 में परिवारों की वित्तीय बचत 7.2 फीसदी या 16.96 लाख करोड़ रुपये थी। कोरोना के दौरान 2020-21 में यह 11.5 फीसदी (22.8 लाख करोड़) और 2019-20 में 8.1 फीसदी पर थी।
आंकड़े बताते हैं कि इस अवधि में भारतीय परिवारों पर वित्तीय देनदारियों का बोझ भी बढ़ा है। 2022-23 में परिवारों की वित्तीय देनदारियां जीडीपी की तुलना में बढ़कर 5.8 फीसदी पर पहुंच गई, जबकि 2021-22 में यह आंकड़ा 3.8 फीसदी रहा था। इसका मतलब यह है कि खपत का कुछ हिस्सा कर्ज के जरिये पूरा किया जा रहा था।
देनदारियों में आजादी के बाद दूसरी सर्वाधिक वृद्धि
2022-23 में वित्तीय देनदारियों की वृद्धि दर आजादी के बाद दूसरी बार सबसे अधिक है। इससे पहले यह केवल 2006-07 में बढ़ी थी। उस समय देनदारियों की वृद्धि दर 6.7% थी। वित्तीय देनदारियों के संदर्भ में घरेलू कर्ज भी 2022-23 में जीडीपी का 37.6% था, जो उसके पहले के वर्ष में 36.9 फीसदी रहा था। कोरोना काल में बचत इसलिए ज्यादा रही क्योंकि उस दौरान लोगों ने अपने खर्च में कटौती की थी।
वाणिज्यिक बैंकों की उधारी 54 फीसदी बढ़ी
आरबीआई के मुताबिक, 2022-23 में वाणिज्यिक बैंकों की उधारी में सालाना आधार पर 54 फीसदी की बढ़त दर्ज की गई। इस अवधि में जीडीपी की तुलना में लोगों की वित्तीय संपत्ति 10.9% रही। 2021-22 में यह 11 फीसदी से अधिक रही थी। आंकड़ों के मुताबिक, निजी खर्च से आर्थिक वृद्धि को मिलने वाला समर्थन अनुमान से कमजोर हो सकता है, भले ही निजी पूंजीगत खर्च चक्र में देरी होती दिख रही हो।
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