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Apple और Samsung जैसे फोन जल्दी रिपेयर नहीं करती कंपनियां, क्या आपको पता है इसका कारण?

Gulabi
15 March 2021 10:17 AM GMT
Apple और Samsung जैसे फोन जल्दी रिपेयर नहीं करती कंपनियां, क्या आपको पता है इसका कारण?
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एपल और दूसरी बड़ी टेक कंपनियां आज कल ऐसे स्मार्टफोन्स बना रही हैं जिसे

एपल और दूसरी बड़ी टेक कंपनियां आज कल ऐसे स्मार्टफोन्स बना रही हैं जिसे थर्ड पार्टी रिपेयर कंपनियों के जरिए ठीक करना बेहद मुश्किल होता जा रहा है. इन स्मार्टफोन्स के डिजाइन और कॉम्पोनेंट्स को इस तरह से बनाया जा रहा है जिससे कोई और रिपेयर सेंटर न तो आपके फोन को खोल सकता है और न ही उनके पार्ट्स को बदल सकता है. इसमें प्रोसेसर को सोल्डरिंग करना और फ्लैश मेमोरी को मदरबोर्ड के साथ जोड़ना शामिल है.

इन कॉम्पोनेंट्स को ग्लू और नॉन स्टैंडर्ड पेंटेलोब स्क्रू सो जोड़ा जाता है जिससे इनका रिप्लेसमेंट आसान न हो और थर्ड पार्टी रिपेयर कंपनी फोन में कोई बदलाव न कर पाए. ऑस्ट्रेलिया के राइट टू रिपेयर इंक्वाइरी में अब तक कई सब्मिशन आ चुके हैं जिसमें टेक मैन्युफैक्चरर्स को ये कहा गया है कि वो मार्केट रिपेयर की अनुमति दें और ऐसा प्रोडक्ट बनाएं जिसे थर्ड कंपनियां भी आसानी से ठी कर सके सके.
क्या है राइट टू रिपेयर
राइट टू रिपेयर ग्राहकों को ये अधिकार देता है कि वो कम कीमत में इन स्मार्टफोन्स को बनवा सकें और वो भी थर्ड पार्टी से. इसमें आपको स्मार्टफोन कंपनी के सर्विस सेंटर में जाने की जरूरत नहीं पड़ती बल्कि आप अपने मन मुताबिक किसी भी रिपेयर कंपनी को चुन सकते हैं. लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि एपल नहीं चाहता कि आप अपना आईफोन और मैकबुक खुद से रिपेयर करें या किसी और को दें. कंपनी पर पहले भी ये आरोप लग चुके हैं कि उसने पुराने बैटरी वाले आईफोन्स को जानबूझकर धीमा किया था.
राइट टू रिपेयर के खिलाफ कई टेक कंपनियां हो सकती हैं क्योंकि सभी को पता है कि अगर यूजर्स उनके सर्विस सेंटर नहीं आते हैं और बाहर ही अपना फोन बनवाते हैं तो कंपनियों को रेवेन्यू और मार्केट डोमिनेशन में घाटा उठाना पड़ सकता है. इसके जवाब में एपल ने कहा है कि, थर्ड पार्टी रिपेयरर्स फोन बनाने के दौरान कम क्वालिटी पार्ट्स का इस्तेमाल कर सकते हैं जिसके बाद डिवाइस को आसानी से हैक भी किया जा सकता है.
अमेरिका में एपल इंडिपेंडेंट रिपेयर प्रोवाइडर प्रोग्राम उन प्रोवाइडर्स को पार्ट्स और रिसोर्स का एक्सेस देता है जिससे वो डिवाइस को फिक्स कर सकते हैं. 32 देशों के इंडिपेंडेंट रिपेयर शॉप्स अब इस प्रोग्राम में अप्लाई कर सकते हैं लेकिन अमेरिका के बाहर फिलहाल इस स्कीम को अब तक लागू नहीं किया गया है.
ग्राहकों पर होगा असर
आईफोन 12 की अगर बात करें तो कंपनी ने इस फोन को इस तरह बनाया है जिससे ग्राहक थर्ड पार्टी की मदद से फोन को नहीं बनवा सकते. ऐसे में इन ग्राहकों के पास कंपनी का खुद का सर्विस सेंटर ही बचता है. एपल ने आईफोन 12 के लिए रिपेयर चार्जेस को 40 प्रतिशत तक बढ़ दिया है. कंपनी स्क्रीन को बदलने के लिए जहां 359 डॉलर ले रही है तो वहीं बैटरी के लिए कंपनी 109 डॉलर चार्ज करती है. ये कीमत आउट ऑफ वारंटी यूजर्स के लिए है जो बेहद ज्यादा महंगा है वहीं आप इसे बाहर से ठीक करवाते हैं तो ये आसानी से ठीक हो सकता है.
एपल का कहना है कि, हमारे फोन के कई पार्ट्स ऐसे होते हैं जिसे ठीक करने के लिए हमारे पास ही स्पेशल टूल होते हैं. ऐसे में अगर उन स्मार्टफोन्स को आप थर्ड पार्टी से बनवाते हैं तो ये उनके लिए ये काफी मुश्किल होता है और गड़बड़ी के ज्यादा मौके होते हैं. बता दें कि ऐसा सिर्फ एपल के साथ नहीं है. सैमसंग ने भी थर्ड पार्टी रिपेयर सेंटर के लिए फ्लैगशिप फोन को ठीक करना मुश्किल कर रखा है.
राइट टू रिपेयर कानून का आना है जरूरी
theconversation की एक रिपोर्ट के अनुसार राइट टू रिपेयर कानून जब तक सभी देशों में नहीं आता है तब तक यूजर्स को एपल और सैमसंग जैसी कंपनियों को मोबाइल ठीक करने के लिए ज्यादा पैसे चुकाने होंगे. वहीं अगर ये यूजर्स ऐसा नहीं करते हैं और थर्ड पार्टी से अपना फोन बनवाते हैं तो इन यूजर्स के डिवाइस की वारंटी खत्म हो सकती है और थर्ड पार्टी इनकी मैन्युफैक्चरर सॉफ्टेवेयर कॉपीराइट्स के साथ भी खिलवाड़ कर सकती है. ऐसे में ग्राहकों को तभी फायदा पहुंच सकता है अगर बड़ी कंपनियां यूजर्स को अपने डिवाइस को थर्ड पार्टी से बनवाने की परमिशन देंगी या फिर अपने सर्विस सेंटर की कीमत को कम करेंगी.
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