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पेट्रोल-डीजल के दामों ने बढ़ाई महंगाई, मोदी सरकार की कमाई में 4 गुना इजाफा

jantaserishta.com
12 April 2022 2:40 AM GMT
पेट्रोल-डीजल के दामों ने बढ़ाई महंगाई, मोदी सरकार की कमाई में 4 गुना इजाफा
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नई दिल्ली: 2009 में आमिर खान की एक फिल्म आई थी. नाम था- थ्री इडियट्स. इस फिल्म में राजू रस्तोगी (शरमन जोशी) की मां एक डायलॉग मारती हैं, 'पनीर तो एक दिन सुनार की दुकान पर इत्ती सी थैली में मिला करेगा.' आज जिस तेजी से पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ रहे हैं, उसे देखते हुए सोशल मीडिया पर ऐसी ही बातें अब पेट्रोल के लिए की जा रही हैं.

बीते 20 दिन में पेट्रोल और डीजल की कीमत 10 रुपये प्रति लीटर तक बढ़ गई है. पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के महंगे होने का तर्क दिया जा रहा है. तेल कीमतों में आग से आम आदमी की मुश्किलें भले बढ़ गई हों, लेकिन इससे सरकारी खजाना खूब भरता है, फिर चाहे वो केंद्र सरकार का हो या राज्य सरकारों का.
पेट्रोलियम मंत्रालय के अधीन आने वाले पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल (PPAC) के मुताबिक, 8 साल में पेट्रोल की कीमत 45% और डीजल की कीमत 75% तक बढ़ गई है. 1 अप्रैल 2014 को दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 72.26 रुपये और डीजल की कीमत 55.49 रुपये प्रति लीटर थी.
8 साल बाद 11 अप्रैल 2022 को दिल्ली में पेट्रोल 105.41 रुपये और डीजल 96.67 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गया है. इन 8 सालों में पेट्रोल-डीजल पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी से केंद्र सरकार की कमाई करीब चार गुना तक बढ़ गई है.
पीपीएसी के मुताबिक, 2014-15 में केंद्र सरकार ने एक्साइज ड्यूटी से 99 हजार 068 करोड़ रुपये कमाए थे. 2020-21 में उसकी 3.73 लाख करोड़ रुपये की कमाई हुई थी. 2021-22 में अप्रैल से सितंबर तक केंद्र सरकार ने एक्साइज ड्यूटी से 1.70 लाख करोड़ रुपये कमा लिए.
केंद्र सरकार इस समय पेट्रोल पर 27.90 रुपये और डीजल पर 21.80 रुपये की एक्साइज ड्यूटी वसूलती है. केंद्र की तरह ही राज्य सरकारें भी पेट्रोल-डीजल पर वैट, सेल्स और अलग-अलग तरह के टैक्स वसूलती हैं. यही वजह है कि रिफायनरी से निकलने के बाद हमारे पास आते-आते तक पेट्रोल-डीजल के दाम दोगुने हो जाते हैं.
पेट्रोल-डीजल पर टैक्स से राज्य सरकारों की कमाई भी बहुत होती है. 2014-15 में राज्यों ने 1.37 लाख करोड़ रुपये कमाए थे. 2020-21 में ये कमाई बढ़कर 2.02 लाख करोड़ रुपये के पार पहुंच गई. 2021-22 में अप्रैल से सितंबर तक ही राज्य सरकारों ने इस टैक्स से अपने खजाने में 1.21 लाख करोड़ रुपये भर लिए.
अब ये कीमत दोगुनी कैसे हो जाती है? इसे समझते हैं. होता ये है कि भारत अपनी जरूरत का ज्यादातर कच्चा तेल बाहर से खरीदता है. कच्चा तेल बाहर से आने के बाद रिफायनरी में जाता है. यहां से पेट्रोल और डीजल को अलग-अलग कर निकाला जाता है. इसके बाद ये तेल कंपनियों के पास जाता है. तेल कंपनियां अपना मुनाफा बनाती हैं और इसे पेट्रोल पंप तक पहुंचाती हैं. पेट्रोल पंप पर आने के बाद उसका मालिक अपना कमीशन जोड़ता है. ये कमीशन तेल कंपनियां ही तय करती हैं. उसके बाद केंद्र और राज्य सरकार की तरफ से जो टैक्स लगता है, उसे जोड़ा जाता है. सारा मुनाफा, कमीशन और टैक्स जोड़ने के बाद पेट्रोल-डीजल आम आदमी के पास आता है.
पहले पेट्रोल और डीजल की कीमतें केंद्र सरकार ही तय किया करती थी. लेकिन जून 2010 में मनमोहन सरकार ने पेट्रोल की कीमतें तय करने का अधिकार तेल कंपनियों को दे दिया. इसके बाद अक्टूबर 2014 में मोदी सरकार ने डीजल की कीमतें तय करने का जिम्मा भी तेल कंपनियों को ही सौंप दिया.
फिर अप्रैल 2017 में ये फैसला लिया गया कि अब से हर दिन पेट्रोल-डीजल के दाम तय होंगे. इसके पीछे ये तर्क दिया कि कच्चे तेल की कीमतें घटने का फायदा आम आदमी को भी पहुंचेगा और तेल कंपनियां भी फायदे में रहेंगी. हालांकि, इसका फायदा आम आदमी को कम और सरकारी खजाने को ज्यादा हुआ.
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