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मोदी सरकार की पवन हंस (Pawan Hans) को निजी हाथों में सौंपने की प्रक्रिया को बड़ा धक्का लगा है. हेलीकॉप्टर सेवा मुहैया कराने वाली इस सरकारी कंपनी का बिकना लगभग तय माना जा रहा था, लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि सरकार को पूरी प्रक्रिया को ही रद्द करना पड़ा. दरअसल, पवन हंस के लिए सबसे सफल बोली 'स्टार9 मोबिलिटी (Star9 Mobility)' कंसोर्टियम ने लगाई थी, मगर कंपनी के खिलाफ लंबित कानूनी मामले के चलते उसे अयोय घोषित कर दिया गया. इस वजह से सरकार को कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया रद्द करनी पड़ी.
इतनी है हिस्सेदारी
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सरकार ने आज यानी 3 जुलाई को एक बयान जारी कर बताया कि उसने पवन हंस में हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया रद्द कर दी है. बता दें कि पवन हंस सरकार और पब्लिक सेक्टर की कंपनी ONGC का एक ज्वाइंट वेंचर है. कंपनी में सरकार की 51 प्रतिशत हिस्सेदारी है, जबकि शेष हिस्सा ONGC के पास है. मोदी सरकार ने पिछले साल पवन हंस को स्टार9 मोबिलिटी प्राइवेट लिमिटेड के कंसोर्टियम को 211.40 करोड़ रुपए में बेचने का फैसला लिया था. इस कंसोर्टियम में बिग चार्टर प्राइवेट लिमिटेड, महाराजा एविएशन प्राइवेट लिमिटेड और अल्मास ग्लोबल ऑपर्च्यूनिटी फंड SPC शामिल हैं.
फंस गया ये पेंच
सबकुछ लगभग सेट था और पवन हंस के बिकने पर बस मुहर लगना बाकी थी. लेकिन इस साल मई में यह बात सामने आई कि कंसोर्टियम की प्रमुख पार्टनर अल्मास ग्लोबल ऑपर्च्यूनिटी फंड SPC के खिलाफ नेशलन कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) में एक मामला लंबित है. इसके बाद बिक्री प्रक्रिया को रोक दिया गया. वित्त मंत्रालय के निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (DIPAM) का कहना है कि सरकार ने NCLT और नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) के आदेशों की पड़ताल करने के बाद पवन हंस के लिए सफल बोली लगाने वाली स्टार9 मोबिलिटी को विनिवेश प्रक्रिया के लिए अयोग्य घोषित करने का फैसला लिया है. लिहाजा सफल बोलीकर्ता के अयोग्य घोषित होने के साथ ही रणनीतिक विनिवेश के लिए जारी प्रक्रिया निरस्त हो जाती है.
उठाया है काफी घाटा
सरकारी हेलीकॉप्टर कंपनी पवन हंस बीते कुछ सालों से गंभीर वित्तीय संकट से गुजरी है. देश की इकलौती सरकारी हेलीकॉप्टर सेवा प्रदान करने वाली इस तीन दशक से भी अधिक पुरानी कंपनी को वित्त वर्ष 2018-19 में लगभग 69 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था. इसके बाद 2019-20 में भी कंपनी को लगभग 28 करोड़ का घाटा उठाना पड़ा. इसी के चलते सरकार ने पवन हंस में अपनी पूरी हिस्सेदारी बेचने का फैसला किया था. हालांकि, फिलहाल के लिए कंपनी को बेचने की योजना खटाई में पड़ गई है.
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