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बीते एक साल में ट्रैक्टर कंपनियों ने बड़े रिकॉर्ड बनाए है.
बीते एक साल में ट्रैक्टर कंपनियों ने बड़े रिकॉर्ड बनाए है. देश की बड़ी ट्रैक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी एस्कॉर्ट्स ने सेल्स के आंकड़े जारी किए है. मार्च 2021 में 12,337 यूनिट बेची है. इस दौरान कंपनी की सेल्स 126.6 फीसदी बढ़ी है. इससे पहले साल मार्च 2020 में कंपनी ने 5444 यूनिट बेची थी. वहीं, फाइनेंशियल ईयर 2020-21 में कंपनी ने 82,252 के मुकाबले 1,01,848 ट्रैक्टर बेचे हैं.
इसी तरह सोनालिका ट्रैक्टर्स ने भी एक साल में 1,39,526 ट्रैक्टर बेचे है. इस दौरान कंपनी की बिक्री 41 फीसदी है. दोनों कंपनियों का कहना है. पहली बार कंपनियों की सेल्स 1 लाख के पार पहुंची है.
क्यों बढ़ी बिक्री?
डबलिंग फार्मर्स इनकम कमेटी के अध्यक्ष डॉ. अशोक दलवई के मुताबिक किसी भी देश में ट्रैक्टर बिक्री इस बात का सबूत होता है कि वहां कृषि क्षेत्र की ग्रोथ हो रही है और किसान खुशहाल हैं.ट्रैक्टर इंडस्ट्री की ग्रोथ लगातार मजबूत बनी हुई है तो इसकी एक बड़ी वजह रबी फसल बुवाई क्षेत्र में वृद्धि और मजदूरों का गांवों की ओर से शहरों की ओर पलायन है. इसलिए कृषि क्षेत्र में मशीनीकरण बढ़ रहा है.
अप्रैल-जून 2020 की तिमाही में जीडीपी (GDP) ग्रोथ माइनस 23.9 फीसदी दर्ज की गई थी. इतने बुरे दौर में भी एग्री सेक्टर की ग्रोथ 3.4 फीसदी यानी पॉजिटिव रही थी. कोरोना लॉकडाउन के समय जब सबकुछ बंद था तब भी खेती चालू थी.एग्री इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर एवं राजीव गांधी सेंट्रल यूनिवर्सिटी अरुणाचल प्रदेश के वाइस चांसलर साकेत कुशवाहा का कहना है कि खेती करने का सबसे बड़ा आधुनिक हथियार ट्रैक्टर है. इसलिए जब इसका दायरा बढ़ेगा तब बिक्री भी बढ़ेगी.
किस काम आता है ट्रैक्टर
किसान भाई ट्रैक्टर से जमीन को जोतकर खेती के लिए तैयार करते हैं. यह खेतों में बीज डालने, पौध लगाने, फसल लगाने, फसल काटने और थ्रेसिंग सहित कई काम में आता है.
इकोनॉमिक ग्रोथ का पावर हाउस बन सकता है एग्री सेक्टर
कृषि अर्थशास्त्री देविंदर शर्मा ने कहा, "कोरोना काल में भी ट्रैक्टर बिक्री का आंकड़ा बताता है कि एग्रीकल्चर सेक्टर को नजरंदाज करना किसी भी सरकार के लिए ठीक नहीं है. लेकिन सच तो यह है कि 2011-12 से 2017-18 के बीच एग्रीकल्चर सेक्टर में पब्लिक सेक्टर इन्वेस्टमेंट सिर्फ 0.4 फीसदी है. यह रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) का आंकड़ा है."
"हमारे देश की ब्यूरोक्रेसी और बैंकिंग व्यवस्था कृषि क्षेत्र को बोझ मानती है. सबसे पहले इस धारणा को तोड़ने, न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी अधिकार बनाने और किसानों को आर्थिक सपोर्ट करने की जरूरत है. ऐसा हो जाए तो एग्रीकल्चर सेक्टर इकोनॉमिक ग्रोथ का पावर हाउस बन सकता है."
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