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संगठन के महामंत्री तरुण जैन ने कहा हमने सरकार को दामों को काबू में करने के लिए खाद्य तेल और तिलहन पर से दाम काबू में आने तक जीएसटी (GST) हटाने की मांग की है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क :- अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ ने सरसों में तेजी का रुख बने रहने की प्रबल संभावना व्यक्त की है. सरसों की फसल आने में अभी भी लगभग सात माह का समय बाकी है, जबकि हर माह लगभग पांच लाख टन सरसों की खपत होती है. संगठन के अध्यक्ष शंकर ठक्कर ने कहा कि सरकारी एजेंसियों के पास सरसों देखने के लिए भी उपलब्ध नहीं है. लगभग सारा सरसों किसानों (Farmers) के पास ही है. मात्र 5 से 7 लाख टन सरसों ही मिलर्स या स्टॉकिस्टों के पास मौजूद है. किसानों को अभी भी 8000 से ऊपर के भाव का इंतजार है. ये हालात बता रहे हैं कि सरसों की कीमत (Mustard Price) कम नहीं होगी. ऐसे में संगठन ने जनता को राहत देने के लिए सरकार से खाद्य तेलों से जीएसटी हटाने की मांग की है.
ठक्कर ने कहा कि केंद्र सरकार के खाद्य तेलों तेल-तिलहन व दाल-दलहन में महंगाई रोकने के सभी प्रयास नाकाम होते जा रहे हैं. पहले पाम तेल (Palm Oil) पर आयात शुल्क पांच प्रतिशत कम किया गया और दाल-दलहन के लिए स्टॉक लिमिट लागू की गई, लेकिन न तो खाद्य तेलों के दाम में कोई बहुत गिरावट आई और न ही दाल दलहन के दाम सस्ते हुए. एकमात्र चना है जो अभी भी कुछ दबाव महसूस कर रहा है, क्योंकि चने की मांग के लिए अभी उपयुक्त समय नहीं आया है.
बढ़ रहा है पैकिंग का खर्च
ठक्कर ने कहा हमारे यहां खाद्य तेल आयात होने के बाद पैकिंग यूनिट में लेकर जाना होता है. डीजल-पेट्रोल (Diesel Petrol) के दाम बढ़े हुए हैं, इसलिए ट्रांसपोर्ट का खर्च भी ज्यादा होने लगा है. टीन प्लेट एवं प्लास्टिक भी महंगा हो चुका है, इसके लिए पैकिंग का खर्च बढ़ता जा रहा है. सरकार ने कुछ समय के लिए खाद्य तेलों (Edible oil) को खुले यानी लूज तेल बेचने की अनुमति दे देनी चाहिए. आयात होने वाले तेलों को पैकिंग कर लाने की भी अनुमति देनी चाहिए.
खाद्य तेलों के दाम करने के लिए क्या करे सरकार?
संगठन के महामंत्री तरुण जैन ने कहा हमने सरकार को दामों को काबू में करने के लिए खाद्य तेल और तिलहन पर से दाम काबू में आने तक जीएसटी (GST) हटाने की मांग की है. सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से नेपाल से शून्य प्रतिशत आयात शुल्क पर आ रहे तेलों को वितरित करना चाहिए. आयात शुल्क भी हटा देने की आवश्यकता है. संगठन का मानना है कि देर-सबेर सोयाबीन फिर तेजी के साथ आगे बढ़ेगी, क्योंकि इसकी फसल आने में अभी लगभग दो माह का वक्त बाकी है. इसका दाम 10,000 रुपये क्विंटल तक पहुंचा था, लेकिन अब 7500 और 8000 का रेट चल रहा है.
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