व्यापार

खुला राज: इस तरह अमेजन, वॉलमार्ट और मैकडॉनल्ड जैसी कंपनियों के मालिक बन रहे हैं अमीर

Neha Dani
21 Nov 2020 9:00 AM GMT
खुला राज: इस तरह अमेजन, वॉलमार्ट और मैकडॉनल्ड जैसी कंपनियों के मालिक बन रहे हैं अमीर
x
अमेजन, वॉलमार्ट और मैकडॉनल्ड जैसी कंपनियों के मालिक लगातार धनी कैसे होते जाते हैं,

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| अमेजन, वॉलमार्ट और मैकडॉनल्ड जैसी कंपनियों के मालिक लगातार धनी कैसे होते जाते हैं, इसका राज अब खुला है। मशहूर अखबार 'वॉशिंगटन पोस्ट' ने अमेरिका के गवर्नमेंट अकाउंटेबिलिटी ऑफिस (सरकारी उत्तरदायित्व कार्यालय) के आंकड़े छापे हैं, जिससे यह सामने आया है कि कैसे इन कंपनियों के कर्मचारी अपना गुजारा चलाने के लिए मेडिकएड (चिकित्सा सुविधा) और फूड स्टांप जैसे सरकारी कार्यक्रमों पर निर्भर रहते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि ये कंपनियां अपने कर्मचारियों को इतना भी वेतन नहीं देतीं कि उनके महीने का पूरा खर्च चल सके।

अमेरिकी सीनेट के सदस्य बर्नी सैंडर्स ने गवर्नमेंट अकाउंटेबिलिटी ऑफिस (जीएओ) के पास एक अर्जी देकर बड़ी कंपनियों और सरकारी सहायता कार्यक्रमों के बीच संबंध की जानकारी मांगी थी। जीएओ ने 11 राज्यों से इस संबंध में फरवरी के आंकड़े जुटाए। ये आंकड़े उन एजेंसियों से जुटाए गए, जो मेडिकएड और पूरक पोषक सहायता कार्यक्रम (जिन्हें आम बोल चाल में फूड स्टैंप्स कहा जाता है) चलाती हैं।

वॉलमार्ट उन टॉप चार कंपनियों में है, जिनके कर्मचारी इन सभी राज्यों में फूड स्टैंप्स और मेडिकएड की सुविधा ले रहे थे। मैकडॉनल्ड ऐसी टॉप पांच कंपनियों में है, जिनके कर्मचारी उन 11 में से 9 राज्यों में ये सुविधाएं ले रहे थे। अखबार में छपी रिपोर्ट में कई राज्यों के खास उदाहरण दिए गए हैं।

मसलन, जॉर्जिया राज्य में वॉलमार्ट के 3,959 कर्मचारियों ने गैर-वृद्धावस्था और गैर-विकलांग श्रेणी में मेडिकएड की सुविधा ली। इसी राज्य में मैकडॉनल्ड के 1,480 कर्मचारियों ने ये सुविधा ली। जिन अन्य बड़ी कंपनियों के कर्मचारियों ने ऐसी सुविधा ली है, उनमें अमेजन, डॉलर ट्री, डॉलर जेनरल, बर्गर किंग, फेडएक्स आदि भी शामिल हैं।

ये रिपोर्ट आने के बाद सीनेटर बर्नी सैंडर्स ने एक बयान में कहा कि ताजा सरकारी आंकड़ों से साफ हो गया है कि देश की कुछ सबसे बड़ी और सबसे ज्यादा मुनाफा कमाने वाली कंपनियों ने अपने कर्मचारियों का बोझ करदाताओं के ऊपर डाल रखा है।

ये कंपनियां सारा मुनाफ अपनी झोली में भर रही हैं, जबकि अपने कर्मचारियों और उनके परिजनों को सरकारी सहायता कार्यक्रमों के भरोसे छोड़ रखा है। सीनेटर सैंडर्स ने कहा कि ये कंपनियां किस तरह देश के संसाधन "लूट रही हैं", यह इससे ही जाहिर है कि कोरोना महामारी और लॉकडाउन के दौरान इनमें से एक कंपनी के मालिक की पारिवारिक संपत्ति 63 अरब डॉलर बढ़ गई।

मैकडॉनल्ड कंपनी ने एक बयान में कहा कि ऐसा लगता है कि जीएओ ने संदर्भ हटकर आंकड़े जुटाए हैं। कंपनी ने कहा कि यह देश के नेताओं की जिम्मेदारी है कि वे न्यूनतम वेतन तय करें। कंपनी के प्रवक्ता ने कहा कि मैकडॉनल्ड ने फैसला किया है कि इस साल से वह न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने के किसी कानून के खिलाफ लॉबिंग नहीं करेगी।

वॉलमार्ट कंपनी ने एक बयान में कहा कि वह देश में रोजगार देने वाली सबसे बड़ी कंपनी है। अगर कुछ कर्मचारी सरकारी सहायता कार्यक्रम के लाभ ले रहे हों, तो उसे रोकना उसके वश में नहीं है।

जानकारों ने ध्यान दिलाया है कि गुजरे वर्षों में आए बड़े आर्थिक बदलावों के कारण आर्थिक लाभ कंपनी मालिकों के हक में झुकते चले गए हैं। जिस रफ्तार से उत्पादकता बढ़ी है, उसी रफ्तार से कर्मचारियों की तनख्वाह नहीं बढ़ी है। अमेरिकी कानून के मुताबिक न्यूनतम मजदूरी 7.25 डॉलर प्रति घंटा है। ये रकम कई साल पहले तय हुई थी। उसके बाद मुद्रास्फीति के कारण इस रकम का असली मूल्य घटता चला गया।

बर्कले स्थित लेबर सेंटर के अध्यक्ष केन जैकॉब्स ने वॉशिंगटन पोस्ट से कहा कि मध्यम और निम्न स्तरीय कर्मचारियों के वास्तविक वेतन में 1970 के दशक के बाद इजाफा नहीं हुआ है। उत्पादकता बढ़ती गई है, लेकिन मुद्रास्फीति के कारण तनख्वाह का असली मूल्य जहां का तहां बना रहा है।

गौरतलब है कि जो बाइडन ने राष्ट्रपति चुनाव में वादा किया था कि वे विजयी हुए, तो न्यूनतम वेतन 15 डॉलर प्रति घंटा कर देंगे। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जब 20 जनवरी को बाइडन राष्ट्रपति संभालेंगे, उस समय पर तुरंत इस दिशा में कदम उठाने का दबाव रहेगा। ताजा आंकड़ों से ये दबाव और बढ़ गया है।


Next Story