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अब आलू से बनेगा प्लास्टिक! जानें प्रोजेक्ट के बारे में...

jantaserishta.com
4 May 2022 9:48 AM GMT
अब आलू से बनेगा प्लास्टिक! जानें प्रोजेक्ट के बारे में...
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पाटन: गुजरात सरकार आलू से प्लास्टिक निकलवाने की तैयारी कर रही है. पाटन की हेमचंद्राचार्य नार्थ गुजरात यूनिवर्सिटी के लाइफ साइंस विभाग के प्रोफेसर ने प्रकृति के हित में 3 साल का यह प्रोजेक्ट बनाया है. प्रोफेसर डॉ. आशीष पटेल द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह बात खुलकर सामने आई है कि आलू के स्ट्रार्च से बायो-प्लास्टिक का निर्माण हो सकता है. जिसके उपयोग का सकारात्मक प्रभाव रहने वाले जीव- जन्तुओं को होगा जो आज प्लास्टिक के कारण मौत के मुंह में जा रहे हैं. अध्ययन में यह भी पाया गया है कि एकल-उपयोग प्लास्टिक की जगह बायोप्लास्टिक के उपयोग से प्रकृति को फायदा होगा ही, लेकिन ये बायो-प्लास्टिक उपयोग के कुछ ही दिनों में स्वयं ही नष्ट हो जाएगा. इस प्रोजेक्ट के लिए गुजरात स्टेट बायोटैक्नोलॉजी मिशन की ओर से 47 लाख रुपए का अनुदान भी दिया है.

शोधकर्ताओं का कहना है कि आलू के स्टार्च से बायो प्लास्टिक बनेगा. गुजरात के पाटण स्थित हेमचंद्राचार्य नॉर्थ गुजरात यूनिवर्सिटी के लाइफ साइंस विभाग के परिसर में इस प्रोजेक्ट बनाने जुट गए हैं. अगले 10 दिन में बायो प्लास्टिक बन सकता है. उन्होंने कहा कि बायो प्लास्टिक के कई फायदे होंगे. एक तो यह मौजूदा प्लास्टिक से ज्यादा शुद्ध होगा. दूसरे यह प्रकृति में बहुत जल्द नष्ट भी हो सकेगा.
बायो-प्लास्टिक मक्का, गेहूं या गन्ने के पौधों या पेट्रोलियम की बजाय अन्य जैविक सामग्रियों से बने प्लास्टिक को संदर्भित करता है बायो-प्लास्टिक बायोडिग्रेडेबल और कंपोस्टेबल प्लास्टिक सामग्री है. इसे मक्का और गन्ना के पौधों से सुगर निकालकर तथा उसे पॉलिलैक्टिक एसिड (PLA) में परिवर्तित करके प्राप्त किया जा सकता है. इसे सूक्ष्मजीवों के पॉलीहाइड्रोक्सीएल्केनोएट्स (PHA) से भी बनाया जा सकता है. PLA प्लास्टिक का आमतौर पर खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग में उपयोग किया जाता है, जबकि PHA का अक्सर चिकित्सा उपकरणों जैसे-टांके और कार्डियोवैस्कुलर पैच (ह्रदय संबंधी सर्जरी) में प्रयोग किया जाता है.
बायो-प्लास्टिक या पौधे पर आधारित प्लास्टिक को पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक के विकल्प स्वरूप जलवायु के अनुकूल रूप में प्रचारित किया जाता है. प्लास्टिक आमतौर पर पेट्रोलियम से बने होते हैं. जीवाश्म ईंधन की कमी और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं पर उनका प्रभाव पड़ता है. अनुमान है कि 2050 तक प्लास्टिक वैश्विक CO2 उत्सर्जन के 15% उत्सर्जन के लिए ज़िम्मेदार होगा. पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक में कार्बन का हिस्सा ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देता है. दूसरी तरफ, बायो-प्लास्टिक्स जलवायु के अनुकूल हैं अर्थात् ऐसा माना जाता है कि बायो-प्लास्टिक कार्बन उत्सर्जन में भागीदार नहीं होता है.
पेड़ो की कटाई: बड़ी मात्रा में बायो-प्लास्टिक का उत्पादन विश्व स्तर पर भूमि उपयोग को बदल सकता है. इससे वन क्षेत्रों की भूमि कृषि योग्य भूमि में बदल सकती है. वन मक्के या गन्ने के मुकाबले अधिक कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करते हैं.
खाद्यान्न की कमी: मकई जैसे खाद्यान्नों का उपयोग भोजन की बजाय प्लास्टिक के उत्पादन के लिये करना खाद्यान्न की कमी का कारण बन सकता है.
औद्योगिक खाद की आवश्यकता: बायोप्लास्टिक को तोड़ने हेतु इसे उच्च तापमान तक गर्म करने की आवश्यकता होती है. तीव्र ऊष्मा के बिना बायो-प्लास्टिक से लैंडफिल या कंपोस्ट का क्षरण संभव नहीं होगा यदि इसे समुद्री वातावरण में निस्सारित करते हैं तो यह पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक के समान ही नुकसानदेह होगा.
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