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खेती में कम मेहनत में ज्यादा पैदावार
हमारे देश में खेती किसानी के क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव आ रहा है. मशीनीकरण ने कृषि क्षेत्र को बदल कर रख दिया है. पहले किसान जहां हर काम को हाथों से करते थे, अब वे मशीनों का उपयोग कर रहे हैं. इससे ना सिर्फ कृषि कार्य आसान हुए हैं बल्कि उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है.
ट्रैक्टर, थ्रेसर और अलग-अलग फसलों की बुवाई के लिए और यहां तक की निराई-गुड़ाई के लिए भी मशीनें मौजूद हैं. बहुत सी कंपनियां कृषि कार्यों के लिए ऑटोमैटिक रोबोट तैयार कर रही हैं. ये मजदूरों के मुकाबले ज्यादा क्षमता वाले हैं और काफी तेजी से काम को पूरा करते हैं.
केंद्र सरकार के इस मिशन का लाभ उठा सकते हैं किसान
हमारे देश में करीब 86 प्रतिशत किसान छोटे या सीमांत हैं. कम जमीन होने की वजह से कृषि मशीनें खरीदने की क्षमता इन किसानों में नहीं है. इसके अलावा, बहुत से इलाके इतने दुर्गम हैं कि उनमें मशीन उपलब्ध कराना अपने आप में बहुत मुश्किल काम है.
छोटे किसानों, कम कृषि शक्ति की उपलब्धता वाले क्षेत्रों और दुर्गम इलाकों तक कृषि मशीनीकरण की पहुंच बढ़ाने के लिए साल 2014-15 में कृषि मशीनीकरण पर एक उपमिशन यानी एसएमएएम शुरू किया गया. दरअसल मशीनीकरण, भूमि, जल ऊर्जा संसाधनों, जनशक्ति व बीज, उर्वरक और कीटनाशकों जैसे इनपुट को उपयोग के अनुकूल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
मशीनीकरण के इस उप मिशन से उपलब्ध कृषि योग्य जमीन की उत्पादकता बढ़ाई जा सकेगी. साथ ही, गांव में रहने वाले नौजवानों के लिए कृषि को अधिक लाभदायक और आकर्षक व्यवसाय बनाया जा सकेगा.
इन राज्यों में शुरू हो चुका है काम
कृषि मशीनीकरण, कृषि क्षेत्र के मजबूत विकास के लिए बेहद जरूरी है. एसएमएएम योजना के अंतर्गत मध्य प्रदेश में 200 कृषि यंत्रों और उपकरणों के वितरण व 90 कस्टम हायरिंग केंद्रों की स्थापना की जा रही है. उत्तर प्रदेश में भी 290 कस्टम हारयिंग केंद्रों और गांव स्तर पर 290 कृषि मशीनरी बैंक की स्थापना हो रही है.
इसी तरह उत्तराखंड में सब्सिडी पर 1685 मशीनों और उपकरणों का वितरण होना है. साथ ही 6 कस्टम हायरिंग केंद्रों के अलावा, गांव स्तर पर 35 कृषि मशीनरी बैंकों की स्थापना हो रही है. पश्चिम बंगाल में 25 कस्टम हायरिंग केंद्रों की स्थापना की योजना है. इसी तरह आंध्र प्रदेश में 525 हारयिंग केंद्रों और 34 उच्च तकनीकी केंद्रों की स्थापना हो रही है. तमिलनाडु, केरल, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, नगालैंड और त्रिपुरा में भी इसी तरह का काम हो रहा है.
खेती में मजदूरों का मिलना कम होता जा रहा है और जो भी मजदूर काम कर रहे हैं, उनकी मजदूरी निकालना किसानों के लिए मुश्किल होता जा रहा है. खेती में मशीनीकरण बढ़ने की यह भी एक वजह है.
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