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मैरिटल रेप को ना

Subhi
13 Jan 2022 2:59 AM GMT
मैरिटल रेप को ना
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दिल्ली हाईकोर्ट का यह सवाल वाजिब है कि आखिर किसी महिला के विवाहित या अविवाहित होने से उसकी गरिमा कैसे प्रभावित हो सकती है।

दिल्ली हाईकोर्ट का यह सवाल वाजिब है कि आखिर किसी महिला के विवाहित या अविवाहित होने से उसकी गरिमा कैसे प्रभावित हो सकती है। ऐसा कैसे हो सकता है कि किसी पुरुष द्वारा महिला की इच्छा के विरुद्ध उस पर खुद को लादे जाने से किसी अविवाहित महिला की गरिमा तो भंग हो, लेकिन विवाहित महिला की गरिमा अप्रभावित रहे? हाईकोर्ट ने यह सवाल बुधवार को मैरिटल रेप के अपराधीकरण से जुड़ी याचिकाओं की सुनवाई के दौरान किया। अपने देश के कानून में आज भी मैरिटल रेप को रेप नहीं माना जाता।

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इन्हीं से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान जब दिल्ली सरकार की ओर से यह दलील दी गई कि शादीशुदा महिलाओं के साथ अगर ज्यादती होती है तो उनके पास दूसरी धाराओं के तहत शिकायत करने का विकल्प उपलब्ध है तो कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर कहा कि सवाल शादीशुदा महिलाओं के पास उपलब्ध विकल्पों का नहीं, इस बात का है कि अविवाहित महिलाओं को भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के तहत रेप की शिकायत दर्ज कराने का अधिकार है, लेकिन विवाहित महिलाओं को इसके तहत कोई संरक्षण नहीं मिलता।

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कोर्ट ने कहा कि रिश्ते के आधार पर गरिमा के सवाल को कमतर नहीं किया जा सकता क्योंकि महिला तो महिला है चाहे वह अविवाहित हो या शादीशुदा। हालांकि इस मामले में कोर्ट ने अभी कोई फैसला नहीं दिया है, यह सिर्फ कोर्ट की टिप्पणी है, लेकिन फिर भी यह महत्वपूर्ण है। भारत जैसे पितृप्रधान समाज में आज भी महिला की अस्मिता को घर, परिवार और शादी की ही कसौटियों पर कसने की परिपाटी चली आ रही है। इसका असर आम लोगों की सोच पर तो दिखता ही है, पंचायतों और खापों के व्यवहार में भी नजर आता रहता है। पुलिस और न्यायपालिका का निचला हिस्सा भी अक्सर इस सोच के दुष्प्रभावों से ग्रस्त नजर आता है

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ऐसे में पति अगर पत्नी पर अपना सहज अधिकार मानने लगे और उसकी इच्छा के खिलाफ जबरन उससे संबंध बनाए तो अपनी गरिमा बचाने के लिए जूझती पत्नी को परिवार और समाज से संरक्षण मिलने की कम ही उम्मीद रहती है। ऐसे में यह अपेक्षा स्वाभाविक है कि कम से कम कानून उसके साथ खड़ा हो। लेकिन इस मामले में कानून भी निराश करता है। वहां भी यह दलील दी जाती है कि अगर शादीशुदा महिला को ज्यादा दिक्कत है तो पहले उसे तलाक ले लेना चाहिए। मगर इंसाफ के लिए किसी रिश्ते से बाहर आने की शर्त क्यों होनी चाहिए? सवाल यह है कि क्या रिश्ते में रहते हुए महिलाओं को कानून का संरक्षण हासिल नहीं हो सकता या नहीं होना चाहिए? दुनिया के 50 देश मैरिटल रेप को अपराध घोषित कर चुके हैं। हमें भी इस दिशा में कदम बढ़ाने में अब और देर नहीं करनी चाहिए।



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