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दुनिया के दूरदराज इलाकों में इंटरनेट कनेक्टिविटी पहुंचाने के लिए गूगल के पास नया प्रोजेक्ट है,
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। नई दिल्ली: दुनिया के दूरदराज इलाकों में इंटरनेट कनेक्टिविटी (Internet Connectivity) पहुंचाने के लिए गूगल (Google) के पास लून नाम का प्रोजेक्ट है, जिसमें हीलियम (Helium) से भरे गुब्बारे शामिल हैं और इसका काम दुनिया के दूरदराज इलाकों में इंटरनेट पहुंचाना है. इस प्रोजेक्ट के तहत गूगल हाई एल्टिट्यूड बैलूंस के जरिए रूरल एरिया में इंटरनेट कनेक्टिविटी प्रदान करता है.
हीलियम बैलून ने बनाया रिकॉर्ड
गूगल (Google) की सहायक कंपनी ने अक्टूबर में जानकारी दी थी कि प्रोजेक्ट लून के गुब्बारे ने 312 दिनों यानी करीब एक साल तक स्ट्रैटोस्फेरिक उड़ान का एक नया रिकॉर्ड बनाया है. इस दौरान इसने करीब 2.1 लाख किलोमीटर की दूरी भी तय की. अब लून कार्यकारी ने नेचर पत्रिका में समझाया है कि ये हीलियम गुब्बारे लगभग एक साल तक हवा में रहने के किस तरह सफल हुए.
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कैसे हवा में लटके रहते हैं बैलून
बता दें कि इन बैलून में हाईप्रेशर हीलियम गैस भरी होती है जो इसे आसमान में काफी ऊपर तक ले जा सके. हवा में जब बैलून निश्चित ऊंचाई तक आ जाता है दवाब कम होने के कारण बैलून हवा में लटका रहता है. हीलियम गैस से भरे हर गुब्बारे से मिलने वाले सिग्नल ग्राउंड पर 40 किलोमीटर के डायामीटर को कवर कर सकते हैं.
इन गुब्बारों पर मैनुअल कंट्रोल नहीं
लून के मुख्य प्रौद्योगिकी अधिकारी सॉल कैंडिडो ने बताया कि गुब्बारे हवा के एक अनुकूल प्रवाह को पकड़ने के लिए ऊपर या नीचे नेविगेट होते हैं. इस पर कोई मैनुअल कंट्रोल नहीं होता कि हीलियम के गुब्बारे कब ऊपर जाएंगे और कब नीचे आएंगे.
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