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लोन पर घर खरीदने से पहले जरूर पढ़े ये खबर, किराये की तुलना में महंगी पड़ती है EMI
Nilmani Pal
12 Jan 2022 2:39 AM GMT
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अपना घर खरीदना ज्यादातर लोगों का सपना होता है. यह इकोनॉमिकल से ज्यादा इमोशनल फैसला होता है. अगर आपको ये बताया जाए कि अपना घर खरीदने से बेहतर किराये पर रहना है, तो यह सुनने में अटपटा लग सकता है. हालांकि यह सच है और इसका गणित भी एकदम सिंपल है. आज हम आपको यही गणित बताने जा रहे हैं. एक्सपर्ट इस बारे में क्या कहते हैं हम यह भी आपको बताएंगे. अपने घर के सपने की कॉस्ट कई चीजों पर निर्भर करती है. मसलन आप घर बना रहे हैं या बना-बनाया खरीद रहे हैं. इसके अलावा लोकेशन (Location), पब्लिक ट्रांसपोर्ट (Public Transport), मेडिकल फैसिलीटीज (Medical Facilities) समेत कई सारे फैक्टर कॉस्ट पर असर डालते हैं. समझने में आसानी के लिए एक उदाहरण रख लेते हैं.
मान लेते हैं कि आप किसी मल्टीस्टोरी अपार्टमेंट (Multistory Apartment) में 2बीएचके फ्लैट (2BHK Flat) खरीदने की सोच रहे हैं. आपके शहर में बन रही नई रेसिडेंशियल सोसायटीज (Residential Society) में इसकी कीमत 35 लाख रुपये है, यह भी मान लेते हैं. अब अगर आप यह खरीदने जाते हैं तो आपको 5-6 लाख रुपये डाउनपेमेंट (Downpayment) करने की जरूरत पड़ेगी. इसके अलावा Stamp Duty, Registration Charges और ब्रोकरेज आदि के लिए भी आपको कैश रखना पड़ेगा. कुल मिलाकर आपको 10 लाख रुपये पॉकेट से खर्च करने पड़ेंगे. क्योंकि 35 लाख का घर बाकी खर्च मिलाकर 38-40 लाख रुपये का पड़ेगा. बाकी बचे 30 लाख रुपये के लिए आपको बैंक से फाइनेंस (Bank Finance) मिल जाएगा. अगर क्रेडिट स्कोर (Credit Score) समेत कुछ अन्य पैमानों पर आप खरे उतरे तो आपको 8 फीसदी के आस-पास के ब्याज पर होम लोन मिल सकता है. 8 फीसदी ब्याज के हिसाब से 20 साल के लिए 30 लाख रुपये के होम लोन पर ईएमआई बनती है करीब 25 हजार रुपये. आपको 10 लाख रुपये खर्च करने के बाद हर महीने ईएमआई के रूप में करीब 25 हजार रुपये भरने पड़ेंगे.
अब दूसरी स्थिति को देखते हैं. अगर आप वही फ्लैट किराये (Flat On Rent) पर लेते हैं, तो वह आपको 10 हजार रुपये पर मिल सकता है. इस तरह देखें तो हर महीने आपके पास सेविंग (Saving) के लिए 15 हजार रुपये बच जाते हैं. अब अगर इस 15 हजार रुपये को अच्छी स्ट्रेटजी बनाकर इन्वेस्ट किया जाए तो करोड़ों का फंड तैयार किया जा सकता है. बेहतर रिटर्न के लिए आज के समय में वैसे भी कई शानदार इंस्ट्रुमेंट उपलब्ध हैं. कम मेहनत पर ज्यादा रिटर्न (Return) देने के मामले में एसआईपी (SIP) को अच्छा इंस्ट्रुमेंट माना जाता है. एसआईपी के लिए 10-12 फीसदी का रिटर्न आम है. अगर आप 12 फीसदी रिटर्न वाली एसआईपी में 20 साल के लिए हर महीने 15 हजार रुपये लगाते हैं तो आप बैंक को ब्याज देने के बजाय 36 लाख रुपये इन्वेस्ट करते हैं. 20 साल बाद यह आपके पास करीब 1.50 करोड़ रुपये का फंड बना देगा. एसआईपी के मामले में 15 फीसदी रिटर्न कोई बड़ी बात नहीं है. अगर ऐसी किसी एसआईपी में आपने पैसे लगाएं तो 20 साल बाद आपके पास करीब 2.28 करोड़ रुपये का फंड तैयार हो जाता है.
इस हर महीने की ईएमआई के अलावा आपके पास इन्वेस्ट करने के लिए 10 लाख रुपये की एकमुश्त रकम भी है, जो आप डाउनपेमेंट से लेकर कागजी कामों पर पॉकेट से खर्च करने वाले थे. अगर इस 10 लाख रुपये को लम्पसम्प स्कीम में इन्वेस्ट किया गया तो 20 साल बाद आपके पास इससे भी करोड़ों की रकम तैयार हो जाएगी. यह इन्वेस्टमेंट 20 साल में 12 फीसदी के हिसाब से करीब 97 लाख रुपये और 15 फीसदी के हिसाब से 1.64 करोड़ रुपये हो जाएगा. दूसरी ओर अगर आप घर खरीदते हैं तो आपको कर्ज से फ्री होने में 20 साल लगेंगे. भारत में रियल एस्टेट का रेट सालाना 5-6 फीसदी की दर से बढ़ता है. इस आधार पर देखें तो आपको जो घर अभी 35 लाख रुपये में मिल रहा है, वह आपको 20 साल बाद 1.12 करोड़ रुपये में मिल जाएगा. अगर आप अभी घर खरीदते हैं तो इस मामले में उसकी वैल्यू इस हिसाब से नहीं बढ़ेगी. 20 साल बाद 1.12 करोड़ रुपये बिलकुल उसी लोकेशन में उसी तरह के नए घर की होगी, पुराने घर की नहीं. कोई भी प्रॉपर्टी जैसे-जैसे पुरानी होती है, उसकी वैल्यू भी कम होते जाती है. एक दम नए घर की तुलना में ठीक वैसा ही पुराना घर सस्ता हो जाता है.
पहले फैसले की स्थिति में 20 साल बाद आपके पास करीब 4 करोड़ रुपये का फंड जमा हो सकता है. यह 15 फीसदी रिटर्न के हिसाब से है. अगर आपको 12 फीसदी भी रिटर्न मिला, तो 20 साल बाद आपके पास करीब 2.5 करोड़ रुपये का मोटा फंड होगा. इस तरह किराये के घर में रहते हुए होशियारी से इन्वेस्ट करना नया घर खरीदने की तुलना में कई गुना फायदेमंद हो सकता है. 20 साल बाद आप ठीक वैसा ही घर खरीदकर फायदे में रह सकते हैं. इतना ही नहीं बल्कि इस तरीके को अपनाकर आप 20 साल बाद ठीक वैसा ही 2-3 घर खरीद सकते हैं.
इस बारे में टैक्स और इन्वेस्टमेंट एक्सपर्ट बलवंत जैन बताते हैं कि इन्वेस्टमेंट के हिसाब से रियल एस्टेट कभी भी होशियारी का फैसला नहीं हो सकता है. अपना घर खरीदना इमोशनल फैसला हो सकता है, इकोनॉमिकल नहीं. अगर आपने यह तय नहीं किया है कि आपको कहां सेटल होना है, तो ऐसे में घर खरीदकर झंझट ही बढ़ेगा. रियल एस्टेट का इंवेस्टमेंट लिक्विड भी नहीं होता है. अचानक जरूरत पड़ने पर घर या कोई अन्य प्रॉपर्टी शायद ही काम आ पाए. मान लीजिए कि आपको 5 लाख रुपये की अचानक जरूरत पड़ जाती है. आप दूसरे माध्यमों में टोटल इन्वेस्टमेंट से 5 लाख अलग निकाल सकते हैं, इससे आपका रिटर्न भर कुछ कम होगा. घर के मामले में यह संभव नहीं होगा. अगर आप बेचने का फैसला करते हैं तो इस बात को जरूर में ध्यान रखें कि रजिस्ट्रेशन और Stampy Duty समेत कागजी कामों पर खर्च होने वाला पैसा कभी वापस नहीं मिलता है. ये पैसे इस तरह के इन्वेस्टमेंट हैं, जो आपको हर निर्णय के साथ खर्च करने होंगे और इसका कोई रिटर्न नहीं मिलेगा.
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