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रक्षा मंत्रालय ने समुद्र में केबल बिछाने की अवधि को बढ़ाकर किया एक साल, गहराइयों में बिछा होता है इंटरनेट का जाल

Admin4
27 May 2022 6:05 PM GMT
रक्षा मंत्रालय ने समुद्र में केबल बिछाने की अवधि को बढ़ाकर किया एक साल, गहराइयों में बिछा होता है इंटरनेट का जाल
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। नई दिल्ली: रक्षा मंत्रालय ने दूरसंचार कंपनियों को समुद्री केबल (Underground Cables Network) बिछाने और उसके रखरखाव के लिए दी गई मंजूरी की अवधि को छह महीने से बढ़ाकर एक साल कर दिया है। दूरसंचार विभाग ने शुक्रवार को जारी एक परिपत्र में यह जानकारी दी। इसके मुताबिक, कारोबारी सुगमता के लिए दूरसंचार विभाग ने मंजूरी की अवधि को छह महीने से बढ़ाकर एक साल करने के लिए रक्षा मंत्रालय से संपर्क साधा था जिस पर सहमति मिल गई है।

पहले दूरसंचार कंपनियों को हर छह महीने पर समुद्री केबल बिछाने एवं उसके रखरखाव के लिए जहाजों के इस्तेमाल की मंजूरी लेनी पड़ती थी। इंटरनेट एवं अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार सेवाओं के निर्बाध संचालन में समुद्री केबल की अहम भूमिका होती है। समुद्र की गहराइयों में बिछे केबल के इस जाल से ही इंटरनेट चलता है। विभाग ने कहा, "रक्षा मंत्रालय ने तय स्थितियों के तहत समुद्र के भीतर केबल बिछाने में जहाजों की सुरक्षा स्वीकृति को एक साल या अनुबंध अवधि में से जो भी कम हो, तक करने के प्रस्ताव पर सहमति दे दी है
इंटरनेट कनेक्शन के लिए हम अपने चारों ओर जो केबल्स और तमाम तरह बॉक्स का जाल देखते हैं, वह पूरी दुनिया को कनेक्ट करने का महज एक छोटा सा हिस्सा है। इंटरनेट कनेक्शन, स्पीड और डेटा ट्रांसफर का असली जाल तो समुद्र में हजारों मीटर नीचे बिछा हुआ है। यह जाल पूरी दुनिया को एक-दूसरे से कनेक्ट करता है। केबल के जाल की इस तस्वीर से आप समझ सकते हैं कि दुनिया समुद्र के नीचे बिछे केबल्स के जरिए कैसे वर्चुअल कनेक्शन स्थापित करती है।
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समुद्र के नीचे इन केबल्स का एक बड़ा जाल बिछा है। 99% दुनिया में कम्युनिकेशन और डेटा ट्रांसफर समुद्र के नीचे बिछी कम्युनिकेशन केबल्स के जरिए ही होता है। इन केबल्स को सबमरीन कम्युनिकेशन केबल कहते हैं। अभी समुद्र के नीचे करीब 426 सबमरीन केबल्स हैं, जिनकी कुल लंबाई लगभग 13 लाख किलोमीटर है। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और फेसबुक जैसी बड़ी इंटरनेट कंपनियां इन्हें बिछाती हैं। तमाम टेलिकॉम प्रोवाइडर्स भी इसकी फंडिंग के हिस्सेदार होते हैं।
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ये केबल हजारों किलोमीटर लंबे होते हैं और एवरेस्ट (8,848 मीटर) जितनी गहराई से भी अधिक नीचे बिछे होते हैं। इन्हें एक खास नाव- 'केबल लेयर्स' के जरिए समुद्र की सतह पर बिछाया जाता है। 100-200 किमी. केबल ही आमतौर पर एक दिन में बिछाए जाते हैं। इनकी चौड़ाई 17 मिलीमीटर के आसपास होती है। सैटलाइट सिस्टम की तुलना सबमरीन ऑप्टिकल फाइबर केबल डाटा ट्रांसफर के लिए काफी सस्ते पड़ते हैं। इनका नेटवर्क भी ज्यादा फास्ट होता है।
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समुद्र के नीचे बिछी इन केबल्स को सबसे ज्यादा खतरा तो प्राकृतिक आपदाओं से होता है। वहीं इन केबल्स को समुद्री जीवों से भी खतरा होता है, लेकिन इसके लिए तमाम उपाय भी किए जाते हैं। हाई प्रेशर वाटर जेट तकनीक के जरिए इन केबल को समुद्र की सतह के अंदर गाड़ दिया जाता है, ताकि कोई समुद्री जीव या सबमरीन इन्हें नुकसान न पहुंचा सके। कई बार समुद्री शार्कों ने इन केबल्स को चबाने की कोशिश की है। इसके बाद केबल्स के ऊपर शार्क-प्रूफ वायर रैपर लगाना शुरू किया गया। इन केबल्स को समुद्र के अंदर गहराइयों में अत्याधिक गतिविधियां करने से भी नुकसान पहुंच सकता है।
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ऐसा नहीं है कि सिर्फ एक केबल कटने की वजह से ही संपर्क कट जाए, क्योंकि कंपनियों के पास एक केबल के बदले दूसरे केबल्स का बैकअप भी रहता है। हालांकि, इससे कम्युनिकेशन और इंटरनेट की स्पीड पर काफी असर पड़ता है। 2016 में तमिलनाडु में आए साइक्लोन वरदा ने समुद्र के नीचे बिछे इंटरनेट केबल्स को नुकसान पहुंचाया था, जिससे देश के कुछ हिस्सों में एयरटेल नेटवर्क की इंटरनेट स्पीड स्लो हो गई थी। कंपनी ने ग्राहकों को इस बारे में सूचना भेजी थी। 2013 में कुछ शरारती तैराकों ने यूरोप और अमेरिका से इजिप्ट पहुंचने वाले चार केबल्स को काट दिया था। इससे पूरे इजिप्ट की इंटरनेट स्पीड 60 फीसदी धीमी हो गई थी। केबल कहां से कटा इसका पता लगाने के लिए रोबोट्स को भेजा जाता है। एक केबल का जीवनकाल करीब 25 साल होता है। कुछ वक्त की परेशानी के बाद केबल को दुरुस्त कर लिया जाता है।
लंबी अवधि की अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार सेवाएं देने वाली कंपनियों को केबल बिछाने में जहाजों के इस्तेमाल के लिए मंजूरी लेनी जरूरी होती है। इसके अलावा चालक दल के सदस्यों के लिए गृह मंत्रालय से भी मंजूरी लेनी होती है। गृह मंत्रालय पहले ही एक साल की अवधि के लिए अपनी स्वीकृति दे चुका है।




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