व्यापार

केंद्र से मुलाकात

Rani Sahu
6 Aug 2023 7:05 PM GMT
केंद्र से मुलाकात
x
By: divyahimachal
केंद्र से हिमाचल की मुलाकात का दस्तूर एक बार फिर प्रदेश के जख्मों और प्रदेश के सपनों को दिल्ली सरकार से बांट रहा है। स्वयं मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह ने यह बीड़ा उठाया है और इस बार प्राकृतिक आपदा के वीभत्स चेहरे से निजात पाने के लिए केंद्र से राज्य की संवेदनाओं की गुजारिश यही है कि यह नुकसान राष्ट्रीय तौर पर तस्दीक हो। अभी बारिश के मध्यांतर में ही दुखद सूचनाओं का अंबार हिमाचल की जिंदगी को अंधेरों में दबाए हुए है, तो आसमान से इनसान की जंग का यह मंजर भयभीत करता है। बेशक अपने-अपने कारणों से देश के कई हिस्से भयभीत होते रहते हैं, लेकिन हिमाचल को डराने हमेशा प्रकृति ही आती है। केंद्र के सामने मणिपुर या मेवात की जनता का भय इनसानी है, लेकिन इसके विपरीत हिमाचल का भय इसकी शराफत पर भारी है। हम शराफत से देश के खुशहाल आंकड़े बनाते हैं। शांति से मानवता के संदेश आगे बढ़ाते हैं। घर, पड़ोस और राष्ट्र की प्राथमिकताओं में फर्ज निभाते हैं। यहां देश की अशांति का प्रवेश वर्जित है, लेकिन आसमान बिजलियां गिराता है, तो पर्वत निरीह हो जाता है। इस तरह मुख्यमंत्री की मुलाकातों में केंद्र सरकार की अहमियत में सिर्फ इनसाफ चाहिए। अब तक हुए नुकसान की यूं तो व्याख्या करना मुश्किल है, फिर भी अब तक आठ हजार करोड़ की हानि में आगे बढऩे का संकल्प है। यह संकल्प उन सिसकियों को छुपाने और हाथ फैलाने का नहीं, बल्कि देश की अमानत में पर्वत की अस्मिता को बचाने का है।
भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी की तरह अगर मोदी सरकार के अन्य मंत्री भी प्रदेश का सर्वेक्षण कर लें, तो मालूम हो जाएगा कि उनके व्यक्तिगत इस्तेमाल में भी आने वाला पानी किस हद तक पहाड़ से हर साल छेड़छाड़ कर जाता है। दिल्ली से हिमाचल की आर्थिक विडंबनाएं मापी नहीं जाती, फिर भी देश के गृह मंत्री, वित्त मंत्री व रक्षा मंत्री से मिल कर सुखविंदर सुक्खू केंद्रीय मदद का भौगोलिक मानचित्र दुरुस्त करवा रहे हैं। मदद की हर इंच पर पर्वत की कोफ्त का अंदाजा लगाया जा सकता है। इस बार बाढ़ से पुनर्वास तक एक बड़े आर्थिक पैकेज की जरूरत है। लोग मणिपुर-मेवात में मरे होंगे, लेकिन वहां की आग में लोगों ने ही बारूद बिछाया था। हिमाचल में बारिश ने खुशियों का अस्तित्व मिटा कर कितने ही निर्दोष लोगों को गायब किया है, यह मार्मिक चिंता का विषय है। उम्मीद है मुख्यमंत्री की देश के प्रधानमंत्री से मुलाकात यह बता पाई होगी कि पहाड़ सिर्फ पानी और बरसात से ही आजिज नहीं, बल्कि यहां निर्माण के मानदंड भी सुरक्षित नहीं हैं। पहाड़ की बाढ़ मैदान की बर्बादी से कहीं भिन्न इसलिए भी है क्योंकि इसकी कोई सूचना और न ही पैमाना है।
आर्थिक रूप से संसाधन विहीन राज्य के लिए मौसम के कोड़े अति घातक हैं। कहां तो राज्य को अपने वित्तीय व आर्थिक संसाधन बढ़ाने की चुनौती है और कहां बसे बसाए घर और गांव टूट रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर प्राकृतिक आपदाओं से निपटने का मैकेनिज्म फिलहाल हिमाचल जैसे राज्यों की अनदेखी कर रहा है, जबकि बादलों का पीछा सिर्फ बरसात के लिए नहीं, उस बर्बादी के लिए भी होना चाहिए जो हर साल दर्द को स्थायी बना रही है। हिमाचल को त्वरित रूप से सामान्य परिस्थिति में आने के लिए केंद्र के हर विभाग के मार्फत न केवल मदद की जरूरत है, बल्कि पहाड़ी मनोबल को बचाने के लिए विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा करनी चाहिए। शांतिप्रिय राज्य का मौसम की वजह से उजडऩा, देश के लिए अच्छा उदाहरण नहीं हो सकता। कम से कम पर्यटन आर्थिकी के लिए ही केंद्र हिमाचल को विशेष राहत व अनुदान दे ताकि ये जख्म भर सकें।
Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story