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महाराष्ट्र: संकट में केला उत्पादक किसान, नहीं मिले सही भाव, तो कुल्हाड़ी से नष्ट कर दिए बाग

Gulabi
20 Dec 2021 5:33 AM GMT
महाराष्ट्र: संकट में केला उत्पादक किसान, नहीं मिले सही भाव, तो कुल्हाड़ी से नष्ट कर दिए बाग
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बेमौसम बारिश से न सिर्फ पारंपरिक खेती को नुकसान पहुचा हैं बल्कि फलों के बागों को भी बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ हैं
बेमौसम बारिश से न सिर्फ पारंपरिक खेती को नुकसान पहुचा हैं बल्कि फलों के बागों को भी बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ हैं.खेती के नुकसान के लिए प्राकतिक के साथ साथ प्रशासन भी जिम्मेदार है,लगातार बेमौसम बातिश से फसले खराब हो रही हैं. तो वही प्रशासन की गलत नीति का खामियाजा भी किसानों को भुगतना पड़ रहा है.किसानों को इस साल केले का आधा दाम भी नहीं मिल पा रहा हैं.एक ओर बेमौसम बारिश और जलवायु परिवर्तन से होने वाली क्षति, दूसरी ओर दर कम होने से किसान इन दिनों दोहरे संकट का सामना कर रहे हैं.
जिले में बागों पर करपा रोग का बढ़ता प्रकोप देख कर किसानों ने बागों को कुल्हाड़ी से काटने पर मजबूर हुए वही कुछ किसनों का कहना हैं. कि पिछले कुछ महीनों से केला का भाव 200 रुपये से 300 रुपये प्रति क्विंटल मिल रहा हैं जिससे हम अपना लागत तक नही निकाल पा रहे हैं जिसके चलते अब हम किसान बागों को नष्ट करने पर मज़बूर हो गए हैं.
क्या है केले की कीमत की हकीकत?
हर फल के दाम सरकारी स्तर पर तय होते हैं.इसी तरह केले का भाव एक हजार रुपए प्रति क्विंटल तय किया गया था. बाग के किसानों को उम्मीद थी कि इस साल अच्छी फसल होगी लेकिन प्रकृति की तरह सरकार की नीतियां भी बदल गईं,पिछले कुछ महीनों से 200 रुपये से 300 रुपये प्रति क्विंटल के भाव मिल रहे हैं किसानो को ऐसे में सवाल है कि साल भर खेती कर 300 रुपये का खर्च कैसे वहन किया जाए इसलिए किसान कटाई और परिवहन पर खर्च करने के बजाय केले के बाग पर कुल्हाड़ी चलाना पसंद करता हैं.
खरीदार और व्यापारी खेलते हैं
किसान माल की कीमत तय नहीं कर सकता, भले ही वह उपज पाने के लिए कड़ी मेहनत करे रेट मार्केट कमेटी तय करती हैं इसी तरह केले की कीमत 1000 रुपये प्रति क्विंटल तय की गई थी.लेकीन पचोरा तालुका के किसान संघ ने आरोप लगाया है कि खरीदार और व्यापारी यह कहते हुए दरों को कम करने की साजिश कर रहे हैं कि कोरोना के कारण वृद्धि की कोई आवश्यकता नहीं हैं इस दर पर प्रशासन का कोई नियंत्रण नहीं हैं इसलिए किसानों को केले को आवश्यक दरों पर बेचना पड़ रहा है इतने सारे किसानों ने बगीचे को बिना बेचे खेत से बाहर निकालने का फैसला किया हैं.
किसान आर्थिक संकट में नज़र रहे हैं
बारिश पहले ही खरीफ और रबी फसलों को नुकसान पहुंचा चुकी है, जिसमें बाग भी शामिल हैं इसके अलावा बेमौसम बारिश और बदलते मौसम से बाग-बगीचे प्रभावित हुए हैं खानदेश और मराठवाड़ा में भी बागों का रकबा बढ़ रहा है लेकिन लगातार हो रहे नुकसान से किसानों का मनोबल गिरता जा रहा है. कीमतों में गिरावट के कारण कई किसान निराश होके अपने बागों को काटना शुरू कर दिया हैं.
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