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इस आईपीओ में निवेश करने पर कहां-कहां है रिस्क जानिए डिटेल

Teja
15 Feb 2022 6:21 AM GMT
इस आईपीओ में निवेश करने पर कहां-कहां है रिस्क जानिए डिटेल
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देश के सबसे बड़े आईपीओ को लेकर सेबी के सामने दस्तावेज जमा किया जा चुका है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | देश के सबसे बड़े आईपीओ को लेकर सेबी के सामने दस्तावेज जमा किया जा चुका है. एलआईसी आईपीओ (LIC IPO) की चर्चा चारों तरफ है. इस आईपीओ में पॉलिसी होल्डर्स को स्पेशल रिजर्वेशन दिया गया है. सरकार भी इस आईपीओ के मेगा सक्सेस के लिए रिटेल निवेशकों के साथ-साथ ग्लोबल इंवेस्टर्स से लगातार अपील कर रही है. बाजार भी इस आईपीओ का बेसब्री से इंतजार कर रहा है. जानकारी के लिए बता दें कि सरकार लाइफ इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन (Life Insurance Corporation) में 5 फीसदी हिस्सेदारी बेचना चाहती है. माना जा रहा है कि यह आईपीओ 60-90 हजार करोड़ रुपए के बीच होगा. अगर आप भी इस आईपीओ में निवेश करना चाहते हैं तो किसी तरह के रिस्क फैक्टर को भी समझना जरूरी है. आइए इसके बारे में विस्तार से समझते हैं.

सेबी के पास जमा आईपीओ दस्तावेज (DRHP) में कई तरह के रिस्क फैक्टर्स का भी जिक्र किया गया है. यह रिस्क इंश्योरेंस बिजनेस से जुड़ा हुआ है. इनमें कुछ इंटर्नल रिस्क हैं तो कुछ एक्सटर्नल रिस्क हैं. पहले इंटर्नल रिस्क फैक्टर के बारे में जानकारी हासिल करते हैं.
कोरोना महामारी के कारण लगाई गई पाबंदियों के कारण LIC के ऑपरेशनल कामकाज पर भी असर हुआ है. इसके कारण एलआईसी का इन्वेस्टमेंट घट गया है.दिसंबर तिमाही में एलआईसी की शेयर बाजार में हिस्सेदारी (LIC shareholdings) घटकर रिकॉर्ड लो पर आ गई है. LIC शेयर होल्डिंग की मार्केट वैल्यु घटकर महज 3.67 फीसदी रह गई है. कंपनी के एजेंट पाबंदियों के कारण ठीक से प्रोडक्ट बेच नहीं पा रहे हैं.
कोरोना के कारण लाखों लोगों की जान गई है. ऐसे में देश के सबसे बड़े इंश्योरर को बड़े पैमाने पर डेथ क्लेम का फायदा देना पड़ा है. वित्त वर्ष 2018-19 डेथ क्लेम अमाउंट 171288 मिलियन, वित्त वर्ष 2019-20 में 175279 मिलियन, वित्त वर्ष 2020-21 में 239268 मिलियन और चालू वित्त वर्ष में 1 अप्रैवल से 30 सितंबर 2021 के बीच यह क्लेम 217341 मिलियन रहा. यह टोटल इंश्योरेंस क्लेम का 6.79 फीसदी, 6.86 फीसदी, 8.29 फीसदी और 14.47 फीसदी है.
कोरोना के कारण इंश्योरेंस को लेकर डिमांड में शानदार तेजी दर्ज की गई. इस संकट के समय एलआईसी के एंप्लॉयी और एजेंट्स ने ब्रांड के नाम का दुरुपयोग किया. कुल मिलाकर LIC के ब्रांड को गहरा धक्का पहुंचा है.
एलआईसी सालों से परंपरागत रूप से काम कर रही है. इसके कारण रिस्क मैनेजमेंट टूल उतने कारगर नहीं रह गए हैं. बदलते वक्त में रिस्क इवैल्युएशन और रिस्क मैनेजमेंट का तरीका बदल गया है. एलआईस ने इसको लेकर बहुत बड़े बदलाव को स्वीकार नहीं किया है.
लाइफ इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन IDBI और LIC हाउसिंग फाइनेंस की पैरेंट कंपनी है. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने कहा कि अगले महीने के भीतर दोनों में किसी एक को अपने हाउसिंग फाइनेंस बिजनेस को बंद करना होगा. RBI ने LIC IPO को इसी शर्त पर मंजूरी दी है. यह एक बड़ा सेटबैक है.
भारत की मैक्रो इकोनॉमी कमजोर हो रही है. LIC का कारोबार पूरी तरह भारतीय बाजार पर निर्भर है. ऐसे में अगर इकोनॉमी में सुस्ती आती है तो इसका असर एलआईसी के कारोबार पर भी होगा.
भारत की अर्थव्यवस्था और स्टॉक मार्केट पर यूरोप, अमेरिका और एशिया के अन्य देशों के बाजार और इकोनॉमिक स्थिति का सीधा असर होता है. अमेरिका समेत पूरा विश्व इस समय महंगाई से परेशान है. फेडरल रिजर्व समेत तमाम सेंट्रल बैंक इंट्रेस्ट रेट बढ़ाने पर विचार कर रहे हैं. इसके कारण बाजार में करेक्शन की संभावना है और इसका असर इस आईपीओ पर भी होगा.
DRHP में कहा गया है कि अगर रूल्स और रेग्युलेशन में किसी तरह का बदलाव किया जाता है तो इसका असर कारोबार पर होगा. आने वाले समय में भारत या दुनिया में अगर किसी तरह का फाइनेंशियल रेग्युलेशन आता है तो इसका असर दिखाई देगा. कॉर्पोरेट टैक्स के मोर्च पर किसी तरह के एक्शन का असर होगा.
भारत की इकोनॉमी परेशानियों से जूझ रही है. ऐसे में सॉवरेन डेट की रेटिंग घटाई जा सकती है. टैक्स और फिस्कल पॉलिसी में बदलाव, विदेशी मुद्रा भंडार का इसपर सीधा असर होगा.
एलआईसी में 5 फीसदी हिस्सेदारी बेचने की तैयारी है. 95 फीसदी हिस्सेदारी तब भी प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया के पास होगी जिसे मिनिस्ट्री ऑफ फाइनेंस देखता है. ऐसे में सरकार से जुड़े सभी फैक्टर्स का इसर पर असर होता है.


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