म्यूच्यूअल : पहली अप्रैल से कुछ म्यूचुअल फंड कैटेगरी के टैक्स में हुए बदलावों के बारे में आप अच्छे से जानते-समझते होंगे। इनसे ज्यादातर लोगों के टैक्स में कोई बड़ा बदलाव नहीं होगा। कई लोगों का टैक्स तो कुछ कम ही होगा। खासतौर पर उनका जो कम इनकम टैक्स वाले दायरे में आते हैं। इस टैक्स को लेकर मेरी आलोचना की सबसे बड़ी वजह लागत महंगाई सूचकांक है, जिसे मैं सैद्धांतिक तौर पर गलत मानता हूं।
हालांकि, इस सूचकांक के हटने से कोई गरीब होने वाला नहीं है। स्लैब पर आधारित टैक्स का सिस्टम सही और प्रगतिशील होता है। ऐसा सिस्टम ये तय करता है कि जिनकी आमदनी ज्यादा है वो ज्यादा टैक्स दें। आदर्श यही है कि हमें उस मुनाफे पर समायोजन मिलना चाहिए जो आमदनी का हिस्सा बन जाता है।
टैक्स में बदलावों को लेकर म्यूचुअल फंड बेचने वालों ने जिस तरह की अवसरवादिता दिखाई और खरीदने का पैनिक खड़ा किया, उसने हतप्रभ किया है। कमोवेश, वो ऐसा करने में सफल रहे। डेट फंड कैटेगरी में 27 मार्च से 31 मार्च के दौरान पांच दिनों में 39,325 करोड़ रुपये इधर से उधर हो गए। जबकि इसी महीने के पहले हिस्से में ये रकम महज 4,430 करोड़ रुपये थी।
सच तो ये है कि अगर आप पहले से इन फंड्स में निवेश प्लान नहीं कर रहे थे, तो इस मौके पर करने का कोई मतलब नहीं था। खासतौर पर फंड बेचने वालों ने निवेशकों को उन फंड्स में पैसा लगाने पर जोर दिया, जिन पर टैक्स बढ़ने वाला था। इसके लिए ये सोचा ही नहीं गया कि ये फंड निवेशकों के लिए सही हैं या नहीं। इस सब में फंड बेचने वालों ने शॉर्ट-टर्म में मुनाफा कमाया और निवेशकों का निवेश प्लान व उनके निवेश की प्राथमिकताएं खतरे में डाल दीं।