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लंदन, (आईएएनएस)| विकासशील देशों में इंटरनेट की पहुंच को एक बुनियादी मानवाधिकार माना जाना चाहिए, नहीं तो इसमें लगातार बढ़ती असमानता का खतरा है। एक नए शोध में यह बात कही गई है। ब्रिटेन में बमिर्ंघम विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के अनुसार, दुनिया भर के लोग शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, काम और आवास जैसे सामाजिक-आर्थिक मानवाधिकारों का प्रयोग करने के लिए इंटरनेट पर इतने निर्भर हैं कि ऑनलाइन पहुंच को अब एक बुनियादी मानव अधिकार माना जाना चाहिए।
पॉलिटिक्स, फिलॉसफी एंड इकोनॉमिक्स जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि विकासशील देशों में इंटरनेट का उपयोग शिक्षा प्राप्त करने, स्वस्थ रहने, घर खोजने और रोजगार हासिल करने या न करने के बीच अंतर कर सकता है।
बमिर्ंघम विश्वविद्यालय में वैश्विक नैतिकता के लेक्चरर डॉ. मेर्टन रेग्लिट्ज ने कहा, हमारे कई सामाजिक-आर्थिक मानवाधिकारों के लिए इंटरनेट का अद्वितीय और मौलिक मूल्य है, यूजर्स को नौकरी के आवेदन जमा करने, स्वास्थ्य पेशेवरों को चिकित्सा जानकारी भेजने, उनके वित्त और व्यवसाय का प्रबंधन करने, सामाजिक सुरक्षा के दावे करने और शैक्षिक आकलन प्रस्तुत करने की अनुमति देता है।
इंटरनेट की संरचना सूचनाओं के पारस्परिक आदान-प्रदान को सक्षम बनाती है जिसमें मानव जाति की संपूर्ण प्रगति में योगदान करने की क्षमता है - इंटरनेट तक पहुंच को मानव अधिकार घोषित कर संरक्षित और तैनात किया जाना चाहिए।
अध्ययन ने विकसित देशों में कई क्षेत्रों को रेखांकित किया जहां शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, कार्य और सामाजिक सुरक्षा जैसे सामाजिक-आर्थिक मानवाधिकारों का प्रयोग करने के लिए इंटरनेट का उपयोग आवश्यक है।
विकासशील देशों में लोगों के लिए, इंटरनेट का उपयोग भी स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करने या नहीं प्राप्त करने के बीच अंतर कर सकता है।
अध्ययन में कहा गया है, छोटे व्यवसाय ऑनलाइन क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म के माध्यम से भी पैसा जुटा सकते हैं। विश्व बैंक को उम्मीद है कि अफ्रीका में 2015 में यह 32 मिलियन डॉलर से बढ़कर 2025 में 2.5 बिलियन डॉलर हो जाएगा।
--आईएएनएस
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Rani Sahu
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