व्यापार
महंगाई तो बढ़ेगी लेकिन निर्यात को मिलेगा लाभ, 80 रुपये प्रति डालर के करीब पहुंचा रुपया
Kajal Dubey
15 July 2022 6:40 PM GMT
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भारतीय रुपया गिरकर लगभग 80 रुपये प्रति डॉलर के करीब पहुंच गया है। इससे महंगाई में वृद्धि होगी और बाजार में वस्तुएं महंगी हो जाएंगी। इससे आमजनों को जीवनयापन करने के लिए आवश्यक वस्तुओं को जुटाना महंगा हो जाएगा और लोगों को अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए सुविधाओं में कटौती करनी पड़ सकती है। लेकिन इसी के साथ, रुपये के गिरने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय उत्पाद सस्ते हो जाते हैं और यही कारण है कि रुपये की कमजोरी से निर्यात बाजार को लाभ मिलता है।
रुपये के गिरने से सबसे ज्यादा नुकसान भारत के व्यापार घाटे के बढ़ने के तौर पर सामने आता है। भारत को तेल आयात के रूप में प्रति वर्ष भारी रकम खर्च करनी पड़ती है। रुपये की कमजोरी के बाद सरकार को उसी मात्रा के तेल उत्पादों को खरीदने के लिए ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती है। तेल आयात महंगा होने के कारण घरेलू बाजार के उपभोक्ताओं को तेल की ज्यादा ऊंची कीमत चुकानी पड़ती है। इससे वस्तुओं के परिवहन लागत बढ़ जाती है। व्यापारी यह कीमत अंतिम उपभोक्ताओं से वसूलते हैं जिसके कारण खाद्यान्न-कपड़े से लेकर हर जरूरी वस्तुओं की कीमतें बढ़ने लगती हैं और उपभोक्ताओं पर महंगाई की मार पड़ती है।
लेकिन बढ़ता है व्यापार
केंद्र सरकार में पूर्व सचिव अजय शंकर ने अमर उजाला को बताया कि सामान्य समझ है कि मजबूत रुपया देश के मजबूत होने की निशानी है, जबकि कमजोर रुपया किसी देश के कमजोर होने की निशानी है। लेकिन यह धारणा बहुत सही नहीं है। चीन और जापान ने जानबूझकर अपनी मुद्राओं का अवमूल्यन होने दिया। इससे विश्व बाजार में उनके उत्पाद सस्ते हो गए और ये देश विश्व की सबसे बड़ी फैक्टरी बनकर उभरे। उनकी अर्थव्यवस्था को मजबूत होने में अन्य कारणों के साथ-साथ मुद्रा का अवमूल्यन होना भी एक बड़ा कारण है।
इस संदर्भ में देखें तो एक सीमा तक रुपये के गिरने में कोई बुराई नहीं है। इससे भारत का निर्यात बढ़ेगा, इससे बाजार में उत्पादन बढ़ेगा और रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी। लेकिन इस स्थिति का लाभ उठाने के लिए सरकार को विभिन्न राज्यों में इस तरह की परिस्थितियां बनानी होंगी जिससे उत्पादन बढ़े और देश को लाभ हो।
रुपये को रोकने की शक्ति नहीं
विश्व बाजार का अनुभव बताता है कि जब अंतरराष्ट्रीय बाजार के दबाव में किसी देश की मुद्रा गिरने लगती है, तो केंद्रीय बैंक इसे बहुत ज्यादा संभाल नहीं पाता है। भारत का रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया रुपये को गिरने से रोकने के लिए अब तक 41 बिलियन डॉलर के करीब विदेशी मुद्रा झोंक चुका है, लेकिन रुपया इसके बाद भी संभलने का नाम नहीं ले रहा है। अनुमान है कि यह आगे भी रुपये के गिरने को रोक पाने में नाकाम साबित हो सकता है। ज्यादा से ज्यादा वह इस गिरावट की रफ्तार कुछ कम करने में कामयाब हो सकता है।
क्यों गिर रहा है रुपया
विदेशी निवेशक जब अचानक भारतीय बाजार से रुपया वापस खींचने लगते हैं, तब रुपये की कीमतें तेजी से गिरने लगती हैं। केवल इसी वर्ष विदेशी निवेशकों ने दो बिलियन डॉलर से ज्यादा की रकम को भारतीय शेयर बाजार से निकाल लिया है। यह क्रम जारी है। अमेरिकन-यूरोपीय केंद्रीय बैंकों ने अपने यहां बैंक दरें बढ़ा दी हैं, निवेशकों को अब भारतीय बाजार से ज्यादा रिटर्न अमेरिकन बैंकों में दिखाई पड़ रहा है, लिहाजा वे यहां से पैसा निकालकर वापस अपने देश में लगा रहे हैं। इसका सीधा असर रुपये की कीमतों में दिखाई पड़ रहा है और रुपया लगातार टूट रहा है। यह आगे भी जारी रह सकता है।
इस तरह लगाएं महंगाई पर लगाम
रुपये के गिरने से निर्यात को बढ़ावा मिलेगा, लेकिन इसी के साथ महंगाई भी बढ़ने लगती है। जनता को इससे राहत देना जरूरी है, अन्यथा इसका सही लाभ नहीं मिल पाएगा। इसके लिए सरकार को पेट्रोल-डीजल को धीरे-धीरे जीएसटी के अंदर लाना चाहिए। इससे पेट्रोल-डीजल की कीमतें एक सीमा से ज्यादा महंगी नहीं होने पाएंगी, तेल कीमतों के न बढ़ने से महंगाई नहीं बढ़ेगी।
लेकिन केंद्र सहित ज्यादातर राज्य तेल को जीएसटी के अंदर लाने के लिए तैयार नहीं होते, क्योंकि पेट्रोल-डीजल से प्राप्त आय सीधे उनके खाते में जाती है औऱ उनका बड़ा खर्च इसी पैसे से निकलता है। सरकारों को अपना खर्च चलाने के लिए दूसरे मदों में टैक्स बढ़ाना चाहिए। इससे एक सेक्टर के लोगों पर भार बढ़ेगा, जबकि तेल कीमतों को जीएसटी में लाने से पूरे देश के हर सेक्टर को लाभ मिलेगा।
भारत अकेले चीन से प्रति वर्ष 98 बिलियन डॉलर के करीब का सामान आयात करता है। केवल इस व्यापार पर ही 10 फीसदी इंपोर्ट ड्यूटी लगाकर सरकार 10 बिलियन डॉलर के करीब रकम की कमाई कर सकती है। इसी प्रकार सरकार ने कोविड के समय कॉर्पोरेट टैक्स को घटाकर अमीर वर्ग को भारी राहत पहुंचाई थी, सरकार को उम्मीद थी कि जब अमीरों की जेब में ज्यादा पैसा रहेगा तो वे निवेश करेंगे और कोविड पीड़ित दौर में अर्थव्यवस्था में रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी।
लेकिन देखा गया कि अमीरों ने बाजार में मांग-मुनाफा न देखते हुए टैक्स के इस पैसे की बचत को नये निवेश में नहीं लगाया। सरकार को इस टैक्स को दोबारा लगाकर टैक्स बढ़ाना चाहिए, लेकिन पेट्रोल कीमतों के रूप में यह लाभ दूसरे वर्गों तक पहुंचाना चाहिए, जिससे महंगाई न बढ़े और उत्पादों की कीमतें सस्ती बनी रहें और इसका निर्यातकों को लाभ हो।
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