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भारत का 5वां और किसानों के संबंध में पहला स्थान है, आर्गेनिक फार्मिंग से जुड़े 44.33 लाख किसान कर रहे है खेती

Admin4
8 Aug 2021 6:39 PM GMT
भारत का 5वां और किसानों के संबंध में पहला स्थान है, आर्गेनिक फार्मिंग से जुड़े 44.33 लाख किसान कर रहे है खेती
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विश्व में प्रमाणित जैविक क्षेत्र के संबंध में भारत का 5वां और किसानों के संबंध में पहला स्थान है. देश में 44.33 लाख किसान आधिकारिक तौर पर जैविक खेती कर रहे हैं. एपिडा के मुताबिक 2020-21 के दौरान 7078.5 करोड़ रुपये के आर्गेनिक प्रोडक्ट का एक्सपोर्ट किया.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क :- रासायनिक खादों और कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल लोगों के बीमार होने का बड़ा कारण बनकर उभर रहा है. अमेरिका, यूरोपीय और खाड़ी देशों ने तो इसीलिए कीटनाशकों के अवशेष वाले बासमती चावल लेना बंद कर दिया है. अब वो हमारे यहां से आर्गेनिक कृषि उत्पाद मंगा रहे हैं. दूसरी ओर, भारत में रसायनों के इस्तेमाल पर कोई कंट्रोल नहीं है. जबकि प्रधानमंत्री खुद कई बार रासायनिक खादों पर अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं. उनका रुझान आर्गेनिक और प्राकृतिक खेती की ओर है. इसे देखते हुए सरकार ने इस साल यानी 2021-22 में जैविक खेती के संवर्धन के लिए 650 करोड़ रुपये की रकम अप्रूव की है.

अपने देश में एक दौर ऐसा भी था जब जैविक खादों के जरिए ही खेती होती थी. लेकिन खाद्यान्न की बढ़ती जरूरत ने हमें कृत्रिम फर्टिलाइजर या रासायनिक खादों (chemical fertilizer) के इस्तेमाल के लिए मजबूर किया. इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट (IARI) के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ. युद्धवीर सिंह कहते हैं कि हरित क्रांति (1965-66) के बाद रासायनिक खादों के इस्तेमाल में तेजी से इजाफा हुआ, किसानों (Farmers) ने जमीन में किसी भी पोषक तत्व की कमी को पूरा करने के लिए यूरिया (Urea) का ही इस्तेमाल शुरू कर दिया. जैविक खेती के हिमायती स्वास्थ्य के लिए इसे ही सबसे बड़ा खतरा बताते हैं. कृषि वैज्ञानिक प्रो. रामचेत चौधरी कहते हैं कि अब हमारे पास खाद्यान्न बहुत है. इसलिए यह वक्त किसानों को गुणवत्ता पर फोकस करने के लिए तैयार करने का है.
भारत में जैविक खेती की दोबारा शुरुआत
रासायनिक खादों के अंधाधुंध इस्तेमाल के साइट इफेक्ट के तौर पर कई बीमारियों ने जन्म लिया. इसलिए दोबारा जैविक खेती की तरफ ध्‍यान गया. साल 2004-05 में जैविक खेती पर राष्‍ट्रीय परियोजना (NPOF-National Project on Organic Farming) की शुरूआत की गई. नेशनल सेंटर ऑफ आर्गेनिक फार्मिंग के मुताबिक 2003-04 में भारत में जैविक खेती सिर्फ 76,000 हेक्टेयर में हो रही थी, जो 2009-10 तक बढ़कर 10,85,648 हेक्टेयर हुई.
खेती योग्य 2.71 फीसदी जमीन पर आर्गेनिक फार्मिंग
अब सरकार इस पर काफी पैसा खर्च कर रही है, लोगों को ऐसी खेती के फायदे समझा रही है. इस मुहिम की वजह से इस समय (2020-21) 38.9 लाख हेक्टेयर में जैविक खेती हो रही है. जो कुल खेती योग्य जमीन (140 मिलियन हेक्टेयर) का 2.71 फीसदी है. हालांकि, जिले स्तर के अधिकारी अगर 'खाने-खिलाने' वाला चक्कर छोड़ दें तो इसमें और इजाफा हो सकता है.
आर्गेनिक फार्मिंग में नहीं होती रासायनिक खाद और कीटनाशक की जरूरत. (प्रतीकात्मक फोटो)
आर्गेनिक कृषि उत्पादों का कुल एक्सपोर्ट
विश्व में प्रमाणित जैविक क्षेत्र के संबंध में भारत का 5वां और किसानों के संबंध में पहला स्थान है. देश में 44.33 लाख किसान आधिकारिक तौर पर जैविक खेती कर रहे हैं. एपिडा के मुताबिक 2020-21 के दौरान 7078.5 करोड़ रुपये के आर्गेनिक प्रोडक्ट का एक्सपोर्ट किया. अमेरिका, यूरोपीय संघ, कनाडा, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, स्विटजरलैंड और इजराइल आदि भारतीय जैविक कृषि उत्पादों के सबसे बड़े मुरीद हैं.
आर्गेनिक खेती के लिए योजनाएं
-इस खेती को प्रमोट करने के लिए केंद्र सरकार इस वक्त दो योजनाएं चला रही है.
-परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY-Paramparagat Krishi Vikas Yojana).
-पूर्वोत्तर क्षेत्र मिशन आर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट (MOVCD NER).
कितनी आर्थिक मदद
अगर आप आर्गेनिक खेती करना चाहते हैं तो परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत मदद मिलेगी. तीन साल में प्रति हेक्टेयर 50 हजार रुपये मिलेंगे.
-इसमें से किसानों को जैविक खाद, जैविक कीटनाशकों और वर्मी कंपोस्ट आदि खरीदने के लिए 31,000 रुपये (61 प्रतिशत) मिलता है.
-मिशन आर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट फॉर नॉर्थ इस्टर्न रीजन के तहत किसानों को जैविक खेती के लिए तीन साल में प्रति हेक्टेयर 32500 रुपये का अनुदान दिया जा रहा है.
क्यों जरूरी है सर्टिफिकेशन
अगर आपने जैविक खेती की है तो उसका सर्टिफिकेशन बहुत जरूरी है. आपका का जैविक उत्पाद तभी बिकेगा जब आपके पास इसका प्रमाण पत्र होगा कि आपकी फसल जैविक ही है. इसके सर्टिफिकेशन की एक प्रक्रिया है. इसके लिए आवेदन करना होता है. फीस देनी होती है. प्रमाण पत्र लेने से पहले मिट्टी, खाद, बीज, बोआई, सिंचाई, कीटनाशक, कटाई, पैकिंग और भंडारण सहित हर कदम पर जैविक सामग्री जरूरी है.
आपने उत्पादन के लिए आर्गेनिक चीजों का ही इस्तेमाल किया है इसके लिए इस्तेमाल की गई सामग्री का रिकॉर्ड रखना होगा. गाजियाबाद स्थित नेशनल सेंटर ऑफ आर्गेनिक फार्मिंग (National Centre of Organic Farming) मुख्य तौर पर सर्टिफिकेशन काम करता है. आर्गेनिक फूड की सैंपलिंग और एनालिसिस के लिए कुछ निजी संस्थाओं को भी काम दिया गया है. 'आर्गेनिक प्रोडक्ट' की औपचारिक घोषणा के साथ बेचा जा सकता है.
मध्य प्रदेश ने कायम की मिसाल, सिक्किम से सीखने की जरूरत
इस समय सबसे ज्यादा क्षेत्र में आर्गेनिक खेती मध्य प्रदेश में हो रही है. साल 2020-21 के दौरान अकेले मध्य प्रदेश से ही 2683.58 करोड़ रुपये के जैविक कृषि उत्पादों का निर्यात हुआ है.
दूसरी ओर, पूर्वोत्तर के राज्य सिक्किम से इस मामले में हमें काफी कुछ सीखने की जरूरत है. रासायनिक खादों के हिमायती कुछ कृषि वैज्ञानिक दावा करते हैं कि आर्गेनिक फार्मिंग संभव नहीं है. इसके बावजूद इस छोटे से राज्य ने खुद को जनवरी 2016 में ही 100 फीसदी आर्गेनिक एग्रीकल्चर स्टेट बना लिया था. उसने रासायनिक खादों और कीटनाशकों को चरणबद्ध तरीके से हटाया.
प्राकृतिक खेती में कितना क्षेत्र कवर हुआ
केंद्रीय कृषि मंत्रालय (Ministry of agriculture) के मुताबिक जीरो बजट प्राकृतिक खेती के तहत अब तक 4.09 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर किया गया है. इसमें वृद्धि के लिए सरकार तीन वर्ष के लिए प्रति हेक्टेयर 12,200 रुपये की आर्थिक मदद दे रही है.
जीरो बजट खेती प्रणाली का अध्ययन करने के लिए रबी, 2017 से मोदीपुरम (उत्तर प्रदेश), लुधियाना (पंजाब), पंतनगर (उत्तराखंड ) और कुरुक्षेत्र (हरियाणा) में बासमती चावल- गेहूं प्रणाली में शून्य बजट खेती पद्धति के मूल्यांकन पर प्रयोग शुरू किया गया है.
ऑर्गेनिक कार्बन घटने से बढ़ता है किसानों का खर्च.
रासायनिक खादों का खतरा क्या है?
इंडियन नाइट्रोजन ग्रुप की रिपोर्ट के अनुसार भारत में नाइट्रोजन प्रदूषण का मुख्य स्रोत कृषि ही है. पिछले पांच दशक में हर भारतीय किसान ने औसतन 6,000 किलो से अधिक यूरिया का इस्तेमाल किया है. यह काफी चिंता वाली बात है. यूरिया का 33 प्रतिशत इस्मेमाल चावल और गेहूं की फसलों में होता है. जबकि 67 प्रतिशत मिट्टी, पानी और पर्यावरण में पहुंचकर उसे नुकसान पहुंचाता है.
पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश के भूजल में नाइट्रेट की मौजूदगी विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानकों से बहुत अधिक मिली है. हरियाणा में यह सर्वाधिक 99.5 माइक्रोग्राम प्रति लीटर है. जबकि डब्ल्यूएचओ मानक 50 माइक्रोग्राम प्रति लीटर है.
फिजीशियन डॉ. सुरेंद्र दत्ता के मुताबिक जरूरत से अधिक यूरिया की वजह से पानी में नाइट्रेट की मात्रा बढ़ रही है. नाइट्रेट पानी को विषाक्त (Toxic) बना रहा है. भोजन अथवा जल में नाइट्रेट की ज्यादा मात्रा कैंसर उत्पन्न करने में सहायक होती है.
खेती के लिए भी खतरा
गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत का हरियाणा के कुरुक्षेत्र में गुरुकुल है, जहां वो करीब 200 एकड़ के फार्म में प्राकृतिक खेती करवाते हैं. आचार्य का दावा है कि फर्टिलाईजर व कीटनाशक का इस्तेमाल करने वाले किसानों के खेतों में ऑर्गेनिक कार्बन का स्तर 0.3- 0.4 से परसेंट से अधिक नहीं है, जबकि कुरुक्षेत्र के गुरुकुल में यह स्तर 0.8 फीसदी से ऊपर है. क्योंकि यहां प्राकृतिक खेती (Natural Farming) होती है.
आईएआरआई में माइक्रो बायोलॉजी डिपार्टमेंट के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ. युद्धवीर सिंह के मुताबिक स्वायल ऑर्गेनिक कार्बन (SOC) में सारे पोषक तत्वों का सोर्स होता है. इसकी कमी से पौधे का विकास रुक जाता है. उनमें रोगों से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है. कुछ साल पहले तक इंडो-गंगेटिक प्लेन में औसत आर्गेनिक कार्बन 0.5 फीसदी हुआ करता था, जो रासायनिक खादों (Chemical fertilizers) के साइड इफेक्ट से अब घटकर 0.2 फीसदी रह गया है.


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