जनता से रिश्ता वेबडेस्क। WTO Summit 2022: जेनेवा में रविवार से 164 सदस्यों वाले विश्व व्यापार संगठन (WTO) की मंत्रिस्तरीय बैठक शुरू हो रही है. इस सम्मेलन से पहले ही भारत ने संगठन के तीन मसौदों, मछली पकड़ने, कृषि और कोविड वैक्सीन पेटेंट पर अपनी असहमति जाहिर की है. और सबसे खास बात कि इस मुद्दे पर विकसित देशों के खिलाफ भारत का साथ देने 80 देश सामने आए हैं. आइए जानते हैं इन मुद्दों के बारे में.
मछली पकड़ने के मसौदे पर भारत को आपत्ति
भारत की पहली आपत्ति मछली पकड़ने के मसौदे पर है. संगठन पिछले 20 सालों से अवैध, अनियमित मछली पकड़ने पर सब्सिडी को खत्म करने और स्थायी मछली पकड़ने को बढ़ावा देने का दबाव बना रहा है. लेकिन भारत इसका विरोध कर रहा है क्योंकि मछली पकड़ना भी कृषि की तरह लोगों के लिए आजीविका का मुद्दा है.
WTO के इस मसौदे पर बात करते हुए संगठन में भारत के एंबेसडर गजेंद्र नवनीत ने कहा, 'ये दूसरे देशों द्वारा बनाई गई समस्या है और भारत जैसे देशों को उनके द्वारा फैलाई गई गंदगी की जिम्मेदारी लेने के लिए कहा जा रहा है. भारत मछुआरों के लिए एक सुरक्षा जाल चाहता है क्योंकि भारत जैसे देश में मछुआरे पानी में दूर तक मछली पकड़ने नहीं जा पाते हैं.'
कृषि से संबंधित मसौदा
भारत की दूसरी आपत्ति कृषि के मसौदे पर है. रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण दुनिया भर में खाद्यान्नों की कमी हो गई है. ऐसी स्थिति में WTO की बैठक में कृषि एक बड़ा मुद्दा होने जा रहा है. भारत कृषि से संबंधित मसौदे पर इसलिए आपत्ति जता रहा है क्योंकि ये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत को गरीबों को दी जा रही सब्सिडी खत्म करनी होगी.
दरअसल, खाद्य सब्सिडी बिल 1986-88 के आधार पर WTO ने निर्धारित किया है कि गरीबों को सब्सिडी उत्पादन मूल्य का 10 प्रतिशत ही दी जाए. भारत इसके खिलाफ है और चाहता है कि खाद्य सब्सिडी गणना के फॉर्मूले में संशोधन किया जाए, जो कि 30 साल पुराने बेंचमार्क पर आधारित है. WTO के कृषि मसौदे के खिलाफ भारत को 125 देशों में से 82 देशों का समर्थन हासिल है.
कोविड टीकों से संबंधित मसौदे पर आपत्ति
भारत को तीसरी आपत्ति कोविड टीकों के मसौदे पर है. भारत चाहता है कि गरीब देशों को महामारी से निपटने में मदद करने और टीकों के व्यापक निर्माण के लिए पेटेंट नियमों को आसान बनाने की जरूरत है. बड़ी संख्या में विश्व व्यापार संगठन के सदस्य देश इस बात से सहमत हैं. लेकिन, विकसित देशों और बड़ी दवा कंपनियों का तर्क है कि कोविड -19 टीकों के लिए IPR को हटा देने से वैश्विक आपूर्ति की कमी को दूर करने में मदद नहीं मिलेगी.