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तेल की कीमतों में बढ़त से देश की इकोनॉमी में होती है उथल-पुथल, GDP से लेकर चालू खाता पर पड़ता है ज्यादा असर

Gulabi
25 Feb 2021 12:10 PM GMT
तेल की कीमतों में बढ़त से देश की इकोनॉमी में होती है उथल-पुथल, GDP से लेकर चालू खाता पर पड़ता है ज्यादा असर
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तेल के खेल में फंसी इकोनॉमी

अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल में तेजी का सिलसिला जारी है. बेंचमार्क कच्चा तेल ब्रेंट क्रूड 66 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर बना हुआ है और डब्ल्यूटीआई का भाव 63 डॉलर के ऊपर चल रहा है. जानकार बताते हैं कि तेल की मांग बढ़ने और उत्पादन में कटौती के चलते दाम में तेजी देखी जा रही है, जिससे आगे पेट्रोल और डीजल के दाम में बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है.


दरअसल कच्चे तेल के दाम बढ़ने से केवल पेट्रोल-डीजल के ही दाम नहीं बढ़ते बल्कि इकोनॉमी को भी इसका काफी नुकसाना झेलना पड़ता है. कच्चे तेल की कीमतें अगर 10 डॉलर प्रति बैरल बढ़ती है तो देश की जीडीपी को 0.4 फीसदी का नुकसान होता है. वहीं इसके चलते देश का चालू खाता घाटा भी बढ़ जाता है.

तेल के खेल में फंसी इकोनॉमी

दरअसल भारत फ्यूल के मामले में आत्मनिर्भर इसलिए बनना चाहता है. क्योंकि ये अब जरुरी हो चुका है. गोल्डमैन सैक्स, बैंक ऑफ अमेरिका समेत दुनिया की बड़ी एजेंसियों के मुताबिक कच्चे तेल की कीमतों में आगे भी तेजी के आसार है. एंजेल ब्रोकिंग के डिप्टी वाइस प्रेसीडेंट अनुज गुप्ता दुनिया में अब क्रूड ऑयल के दाम में लगातार इजाफा होने के संकेत मिल रहे हैं. जिससे रुपया टूटेगा और देश के विदेशी मुद्रा भंडार जोकि रिकॉर्ड स्तर पर है पर भी असर पड़ेगा. अगर ऐसा होता है तो देश की इकोनॉमी को भी नुकसान होगा.

क्यों तेल पर लगाम है जरुरी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर नितिन गड़करी तक बायोफ्यूल की बात कर रहे हैं. क्योंकि मौजूदा दौर में भारत जरुरत का 80 फीसदी कच्चा तेल बाहर से आयात करता है. केडिया कमोडिटी के अजय केडिया के मुताबिक देश का कुल इंपोर्ट बिल का अधिकांश हिस्सा कच्चे तेल का ही होता है. सरकार आयात कम करने के मिशन पर है. अब उनकी नजरें कच्चे तेल पर है. ऐसे में सरकार बायोफ्यूल का कांसेप्ट देख रही है. अगर ऐसा करने में सरकार कामयाब होती है तो देश की इकोनॉमी को पटरी पर लाया जा सकता है.

क्यों बढ़ रही है कच्चे तेल की कीमतें

लॉकडाउन के बाद दुनिया भर में आर्थिक गतिविधियां शुरू होने के चलते कच्चे तेल के डिमांड में तेजी आई है. वहीं ओपेक देशों ने प्रोडक्शन पर कट लगाया हुआ है. लिहाजा कच्चे तल पर दोहरी मार पड़ रही है. वहीं कपनियां भी लॉकडाउन में हुए नुकसान की भरपाई वसूलने का काम तेजी से कर रही है. जिसकी वजह से जनवरी से अब तक अमेरिकी डब्ल्यूटीआई क्रूड ऑयल 48 डॉलर से 63 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया है.


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