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गाड़ियों पर बढ़ा वेटिंग पीरियड
अगर आपने कोई कार बुक की है, तो हो सकता है कि उसकी डिलीवर के लिए आपको लंबा इंतजार करना पड़े. हालांकि ऐसा करने वाले आप अकेले नहीं है, क्योंकि ऑटो इंडस्ट्री के सामने एक नई समस्या खड़ी हो गई है. जिसका नाम है 'क्रिटिकल इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट' की कमी.
जिसकी वजह से गाड़ियों का वेटिंग पीरियड बढ़ गया है.
गाड़ियों पर बढ़ा वेटिंग पीरियड
लॉकडाउन के बाद से कई कंपनियों ने अपनी कारें लॉन्च की हैं, लॉन्चिंग का सिलसिला अब जारी है. लेकिन लंबे वेटिंग पीरियड ने ग्राहकों का मूड ऑफ कर दिया है. पहले गाड़ी पर औसत वेटिंग पीरियड 1 महीने होता था जो ज्यादा से ज्यादा 6 हफ्ते या 2 महीने तक खिंच जाता था, लेकिन अब औसत वेटिंग पीरियड 2 से 4 महीने तक पहुंच चुका है.
किस कार पर कितना इंतजार
कुछ खास मॉडल की बात करें तो महिंद्रा थार के लिए वेटिंग पीरियड 8-9 महीने तक का है, हुंडई क्रेटा के लिए आपको 3 से 7 महीने का इंतजार करना पड़ेगा, निसान मैग्नाइट पर 8 महीने तक की वेटिंग है, मारुति की अर्टिगा पर 6-8 महीने, किआ सोनेट पर 5 महीने, टोयोटा फॉर्च्यूनर पर 4 महीने तक का लंबा वेटिंग पीरियड है. दूसरी तरफ महिंद्रा XUV 300 और किआ सेल्टोस उपलब्ध ही नहीं है.
कंपोनेंट की कमी से सभी कंपनियां परेशान
ऐसा नहीं कि 'क्रिटिकल इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट' की कमी की वजह से सिर्फ कुछ कंपनियां परेशान है, बल्कि इसका असर करीब करीब सभी ऑटो कंपनियों पर दिख रहा है. ज्यादा वेटिंग पीरियड ज्यादा होने का मुख्य कारण प्रोडक्शन कैलेंडर में बदलाव आना बताया जा रहा है. प्रोडक्शन कैलेंडर में बदलाव सेमीकंडक्टर, चिप्स की शॉर्टेज की वजह से तो है ही, साथ ही साथ कंटेनर की डिलीवरी में ज्यादा टाइम पीरियड होने की वजह से भी शॉर्टेज हो रही है.
क्रिटिकल इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट का क्या काम?
दरअसल एक कार में कई तरह के फीचर्स होते हैं, जैसे- ABS, इंफोटेनमेंट सिस्टम, AC, लाइटिंग. इनमें क्रिटिकल इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट का इस्तेमाल होता है. चिप्स में शॉर्टज जाने का एक और कारण व्हाइट गुड्स में वर्क फ्रॉम होम की वजह से लैपटॉप, टीवी, गेमिंग कंसोल्स की डिमांड बढ़ गई है. ज्यादा डिमांड बढ़ने से चिप्स और सेमीकंडक्टर बनाने वाली कंपनियां डिमांड में बूस्ट को नहीं संभाल पा रही हैं. इंडस्ट्री का मानना है की यह समस्या एक चिंता का विषय है.
'पता नहीं कब खत्म होगी ये मुश्किल'
SIAM के DG राजेश मेनन का कहना है कि 'सेमीकंडक्टर की शॉर्टेज से कुछ कंपनियों के प्रोडक्शन शेड्यूल पर असर पड़ा है. सेमीकंडक्टर इंजन के ECU में और ABS आदि में इसका इस्तेमाल होता है. शॉर्टेज की सप्लाई से प्रोडक्शन शेड्यूल पर काफी असर पड़ रहा है. हर कंपनी अलग-अलग स्ट्रैटेजी का इस्तेमाल कर रही है, लेकिन तब भी इंडस्ट्री को काफी दिक्कतें आ रही हैं. यह कहना अभी मुश्किल होगा कि इस समस्या का हल कब होगा.'
'तय वक्त पर गाड़ी की डिलीवरी नहीं हो रही'
जहां एक तरफ ऑटो इंडस्ट्री इस समस्या से जूझ रही है. दूसरी तरफ डीलरशिप को कस्टमर बनाए रखने में भी मुश्किल हो रही है. फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल्स डीलर्स एसोसिएशन यानी FADA के प्रेसिडेंट विंकेश गुलाटी का कहना है कि 'कस्टमर को जिस तारीख पर गाड़ी देने का वादा किया गया है, उस पर डिलीवरी नहीं हो पा रही है, हम कस्टमर को ये भी नहीं बता पार रहे हैं उसे डिलीवरी कब मिलेगी'
उनका कहना है कि 'ये समस्या तब आई जब हम कोविड-19 की मार से निकले हैं. उम्मीद कर रहे थे कि पिछले कुछ महीनों में जो समस्या इंडस्ट्री ने झेली है उसको रिकवर करने में आसानी होगी, लेकिन अब नई परेशानी हमारे सामने खड़ी है, डीलर्स को कस्टमर को हैंडल करने में समस्या झेलनी पड़ रही है'
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