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अगर हेल्थ इंश्योरेंस होने के बावजूद बीमा कंपनी नहीं दे रही क्लेम, तो जरूर पढ़ें ये खबर

Gulabi
21 Nov 2021 10:49 AM GMT
अगर हेल्थ इंश्योरेंस होने के बावजूद बीमा कंपनी नहीं दे रही क्लेम, तो जरूर पढ़ें ये खबर
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तरह-तरह के जोखिम से भरी इस जिंदगी में इंसान अलग-अलग इंश्योरेंस कंपनी के भरोसे अपना समय काट रहा है
तरह-तरह के जोखिम से भरी इस जिंदगी में इंसान अलग-अलग इंश्योरेंस कंपनी के भरोसे अपना समय काट रहा है. देशभर में करोड़ों लोग हर साल प्रीमियम के रूप में इंश्योरेंस कंपनी के पास मोटी रकम जमा कराते हैं, ताकि मुसीबत पड़ने पर उसका सामना किया जा सके. लेकिन.. जरा सोचिए, जिस इंश्योरेंस कंपनी पर आपने भरोसा जताया और प्रीमियम के नाम पर आप हर साल उसे मोटी रकम देते रहे, वह समय आने पर आपकी मदद करने से मुकर जाए तो आप पर क्या बीतेगी?
ये बहाना मारकर क्लेम देने से मना कर देती हैं इंश्योरेंस कंपनियां
जी हां, कोरोना वायरस के कहर के बीच ऐसे तमाम लोगों के साथ इसी तरह की मुसीबत आ खड़ी हुई, जिन्होंने अपना सुरक्षा बीमा कराया था और जरूरत पड़ने पर अस्पताल में भर्ती होकर अपना इलाज भी कराया. लेकिन जब क्लेम की बात आई तो इंश्योरेंस कंपनी ने फिजूल की बातें कहकर मेडिकल क्लेम देने से साफ मना कर दिया.
आमतौर पर ऐसे मामलों में इंश्योरेंस कंपनियां कहती हैं कि उनके ग्राहकों ने गैर-जरूरी परिस्थितियों में भी अस्पताल में भर्ती होकर अपना इलाज कराया और मोटा बिल बनवा लिया.
बीमा लोकपाल के पास की जा सकती है शिकायत
अगर आपने भी मुसीबत से बचने के लिए अपना या अपने परिवार के सदस्यों का हेल्थ इंश्योरेंस करवा रखा है तो आपको ऐसी परिस्थितियों से बचने के लिए अपने अधिकारों को जानना बहुत जरूरी है. यदि आपके साथ भी इंश्योरेंस कंपनी ऐसा ही कर रही है या भविष्य में ऐसा करे तो हिम्मत हारने के बजाए उनके खिलाफ आवाज उठानी ही होगी.
इंश्योरेंस कंपनी की मनमानी पर नकेल कसने के लिए सरकार ने बीमा लोकपाल का गठन किया है. दरअसल, बीमा लोकपाल ऐसे ही मामलों की जांच करता है. यदि लोकपाल को ग्राहक की शिकायत जायज लगती है तो इंश्योरेंस कंपनी के खिलाफ कार्रवाई भी की जाती है.
आखिर क्यों होती हैं ऐसी दिक्कतें
ये जानना बहुत जरूरी है कि आप जब भी किसी हेल्थ इंश्योरेंस का इस्तेमाल करते हैं तो इसमें TPA (थर्ड पार्टी एडमिनिस्ट्रेटर) की भूमिका सबसे अहम होती है. अस्पताल में भर्ती होने के बाद बीमा ग्राहकों को टीपीए को ही सूचना देनी होती है. दरअसल, टीपीए ही ग्राहक और इंश्योरेंस कंपनी के बीच मध्यस्थ का करता है.
टीपीए का मुख्य काम मेडिकल क्लेम और सेटलमेंट कराना होता है. इसके लिए बीमा कंपनियां टीपीए को भुगतान भी करती हैं. ऐसे में टीपीए की कोशिश रहती है कि क्लेम की राशि को कम से कम किया जा सके. यही वजह है कि मेडिकल क्लेम से जुड़े कई मामलों में टीपीए के कारण ही लोगों को इलाज का पैसा वापस नहीं मिल पाता है.
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