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सैलरी बढ़ी तो Tax का बोझ कैसे करें कम? इन 5 शानदार स्कीम्स में ज्यादा रिटर्न पाने के लिए करें निवेश
Renuka Sahu
20 May 2022 4:02 AM GMT
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फाइल फोटो
मई का यह महीना सैलरी हाइक और प्रमोशन का चल रहा है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। मई का यह महीना सैलरी हाइक और प्रमोशन (Salary hike and promotion) का चल रहा है. हर सेक्टर के सभी संस्थानों में इस समय एनुअल सैलरी ग्रोथ का प्रोसेस चल रहा है. सैलरी बढ़ने से आपकी लाइफस्टाइल में तो बदलाव आता ही है, लेकिन साथ में टैक्स (Tax liability) का बोझ भी बढ़ता है. सैलरी में बढ़ोतरी के साथ ही नए प्रोफेशनल्स के लिए फ्यूचर फाइनेंशियल प्लानिंग (Investment tips) की भी शुरुआत होती है. अगर यह प्लानिंग ठीक से नहीं की जाती है तो आपका भविष्य सुरक्षित नहीं है. दूसरी तरफ महंगाई का आंकड़ा 7 फीसदी तक पहुंच चुका है. ऐसे में अगर टैक्स सेविंग और फ्यूचर फाइनेंशियल प्लानिंग ठीक से नहीं की गई तो नेट आधार पर आपकी जमा पूंजी साल दर साल घटती जाएगी. आइए जानते हैं कि सैलरी हाइक का कैसे मैक्सिमम फायदा उठाया जाए.
फाइनेंशियल एक्सपर्ट्स की यह सलाह होती है कि निवेश के लिहाज से सेक्शन 80सी बहुत महत्वपूर्ण है. इसकी लिमिट 1.5 लाख रुपए है. इस टैक्स सेविंग सेक्शन का दायरा काफी बड़ा है. फिक्स्ड डिपॉजिट निवेश का परंपरागत साधन है. हालांकि, इसपर काफी कम रिटर्न मिलता है. इसके मुकाबले पब्लिक प्रोविडेंट फंड, नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट जैसे स्मॉल सेविंग स्कीम्स पर रिटर्न ज्यादा मिलता है.
पब्लिक प्रोविडेंट फंड और नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट
पब्लिक प्रोविडेंट फंड (Public Provident Fund ) पर वर्तमान में 7.1 फीसदी का सालाना रिटर्न मिलता है. इंट्रेस्ट रेट का फैसला तिमाही आधार पर होता है. नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट (National Savings Certificate) पर 6.8 फीसदी का रिटर्न मिलता है. दोनों स्कीम सेक्शन 80सी के अंतर्गत आती है. इस स्कीम की मैच्योरिटी 5 सालों की होती है. इंट्रेस्ट आपको नहीं मिलता है, वह दोबारा निवेश कर दिया जाता है. शुरुआती चार सालों तक इंट्रेस्ट पर किसी तरह का टैक्स नहीं लगता है. हालांकिं, पांचवें साल की जो इंट्रेस्ट इनकम होती है वह आपकी टोटल इनकम में शामिल हो जाएगी और टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्सेबल होगी.
इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम्स
अगर कोई अग्रेसिव इन्वेस्टर है और ज्यादा रिटर्न की चाहत रखता है तो उसके लिए ELSS शानदार स्कीम है. यह एक ऐसी स्कीम है जिसमें 80 फीसदी तक इक्विटी में निवेश किया जाता है. इसमें रिटर्न भी ज्यादा मिलता है और निवेश के परंपरागत साधन के मुकाबले रिस्क भी ज्यादा है. इसके लिए मिनिमम 3 सालों का लॉक-इन पीरियड होता है और इसमें निवेश करने पर सेक्शन 80सी के तहत डिडक्शन का लाभ मिलता है. निवेश की अवधि ज्यादा होने के कारण नेगेटिव रिटर्न की संभावना कम होती है. फाइनेंशियल एक्सपर्ट्स ELSS में SIP की मदद से निवेश की सलाह देते हैं. ELSS से होने वाली कमाई जिसे कैपिटल गेन टैक्स कहते हैं, 1 लाख तक फ्री है.
नेशनल पेंशन सिस्टम
चूंकि सेक्शन 80सी का दायरा बहुत बड़ा है, इसमें प्रोविडेंट फंड, वॉलेंट्री प्रोविडेंट फंड, होम लोन का प्रिंसिपल अमाउंट, बच्चों की ट्यूशन फीस जैसी तमाम चीजें कवर होती हैं तो 1.5 लाख की लिमिट आसानी से पहुंच जाती है. अगर आपकी भी लिमिट पहुंच चुकी है तो NPS यानी नेशनल पेंशन सिस्टम निवेश का शानदार विकल्प है. यह एक रिटायरमेंट स्कीम है. अपने रिस्क के हिसाब से अलग-अलग असेट क्लास जैसे इक्विटी, गवर्नमेंट बॉन्ड, कॉर्पोरेट बॉन्ड, सिक्यॉरिटीज में निवेश किया जा सकता है. इक्विटी में निवेश की मैक्सिमम लिमिट 75 फीसदी है. NPS में निवेश करने पर सेक्शन 80CCD(1B) के तहत एक वित्त वर्ष में 50 हजार रुपए का एडिशनल डिडक्शन मिलता है.
वॉलेंट्री प्रोविडेंट फंड
निवेश के लिहाज से VPF यानी वॉलेंट्री प्रोविडेंट फंड सबसे शानदार स्कीम है. इसका फायदा केवल सैलरीड इंडिविजुअल उठा सकते हैं. इसपर सालाना 8.1 फीसदी का रिटर्न मिल रहा है. EPF के लिए जमा राशि के अलावा अगर उस फंड में जमा किया जाता है तो उसे वॉलेंट्री प्रोविडेंट फंड कहते हैं. VPF में मैक्सिमम बेसिक सैलरी का 100 फीसदी जमा किया जा सकता है. इसमें निवेश करने पर सेक्शन 80 सी के तहत डिडक्शन का लाभ मिलता है. इसे कम से कम 5 सालों के लिए चलाना होगा. 2.5 लाख तक EPF, VPF में निवेश करने पर इंट्रेस्ट इनकम टैक्स फ्री होती है. उससे ज्यादा निवेश करने पर इंट्रेस्ट इनकम पर टैक्स लगता है.
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