प्रतिकूल वैश्विक परिस्थितियों के बावजूद भारत चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में अपनी आर्थिक विकास दर सात प्रतिशत से ऊपर बनाए रखने में कामयाब रहा। पूरे वित्तीय वर्ष के लिए भी करीब सात फीसदी का आंकड़ा आने की उम्मीद है. यह दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे ऊंचा आंकड़ा है।
आम लोगों पर ऐसे होगा इसका असर:
जब जीडीपी बढ़ती है तो इसका लोगों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और सरकार के हाथ में अधिक पैसा आता है, जिससे सरकार को जनता की भलाई पर अधिक पैसा खर्च करने की अनुमति मिलती है। जब किसी देश की अर्थव्यवस्था तेज गति से बढ़ती है तो लोगों की आय क्षमता बढ़ती है, वे अच्छा पैसा कमाते हैं और उनका जीवन स्तर भी बढ़ता है।
रोजगार से सीधा संबंध:
जीडीपी वृद्धि और रोजगार के बीच सीधा संबंध है। जब अर्थव्यवस्था अच्छी तरह से बढ़ रही होती है, तो उद्योगों और कंपनियों का विस्तार होता है। बदले में, निवेश बढ़ता है और अधिक श्रमिकों को काम पर रखा जाता है, जिससे बेरोजगारी कम होती है। वहीं, जीडीपी में गिरावट या औसत वृद्धि के कारण रोजगार के नए अवसर कम हो रहे हैं और आय भी नहीं बढ़ रही है।
भारतीय अर्थव्यवस्था सही रास्ते पर:
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था सही रास्ते पर है और उज्ज्वल भविष्य की ओर बढ़ रही है। इससे देश में निवेश के मौके बढ़ेंगे और रोजगार ने नए अवसर भी मिलेंगे। विशेषज्ञों के मुताबिक, यूक्रेन युद्ध, इजराइल या यमन संकट और दक्षिण तथा पूर्व चीन सागर में जारी तनाव के कारण आपूर्ति-शृंखला में व्यवधान तथा आर्थिक अस्थिरता के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था बेहतर स्थिति में है। यही नहीं, कमजोर मानसून के कारण भी वृद्धि दर अनुमान को 6.5 फीसदी किया गया था लेकिन अर्थव्यवस्था में तेजी बरकरार है।
दूर हो रहीं बाधाएं:
अर्थशास्त्रियों के मुताबिक, सेवा निर्यात में मजबूत प्रदर्शन के कारण भारत के निर्यात में भी अच्छा प्रदर्शन होने की उम्मीद है। साथ ही मजबूत घरेलू गति ने उच्च खाद्य मुद्रास्फीति तथा कमजोर निर्यात से उत्पन्न बाधाएं दूर होती दिख रही है, जिसके चलते कई रेटिंग एजेंसियों ने वृद्धि अनुमान को बढ़ा दिया है। एसएंडपी ने वित्त वर्ष 2023-24 से लेकर 2025-26 तक देश की जीडीपी में सालाना 6.4 से 7.1 फीसद की वृद्धि का अनुमान जताया है।