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यहां वैज्ञानिक विधि से कर रहे है लाह की खेती, एक साल में कमाई इतने लाख रुपए

Apurva Srivastav
5 March 2021 3:16 PM GMT
यहां वैज्ञानिक विधि से कर रहे है लाह की खेती, एक साल में कमाई इतने लाख रुपए
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झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के रूमकूट गांव की रहने वाली रंजीता देवी की लाह की खेती (Lacquer Farming) ने जिंदगी बदल दी

झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के रूमकूट गांव की रहने वाली रंजीता देवी की लाह की खेती (Lacquer Farming) ने जिंदगी बदल दी. रंजीता उन महिलाओं में शामिल हैं, जो लाह की खेती से सालाना 3 लाख रुपए तक की आमदनी प्राप्त कर रही हैं. रंजीता कहती हैं, दूरस्थ क्षेत्र होने के कारण उनकी आजीविका मुख्यत: जंगल और वनोपज पर निर्भर है. उनके परिवार में पहले भी लाह की खेती की जाती थी, लेकिन अब वैज्ञानिक विधि से खेती करने से उपज बढ़ाने के बारे में जानकारी मिली और फिर उत्पादन बढ़ गया.

रंजीता ऐसी केवल एकमात्र महिला नहीं है, जिनकी जिंदगी लाह की खेती ने बदल दी है. झारखंड में 73 हजार से ज्यादा ग्रामीण परिवारों को लाह की वैज्ञानिक खेती से जोड़ा गया है, जिनमें अधिकतर अति गरीब एवं सुदूरवर्ती क्षेत्रों में रहने वाले ग्रामीण परिवार हैं.
2000 मीट्रिक टन हुआ लाह का उत्पादन
राज्य सरकार द्वारा ग्रामीण महिलाओं को लाह की वैज्ञानिक खेती से जोड़कर अत्याधुनिक प्रशिक्षण के जरिए आमदनी बढ़ोतरी के प्रयास किये जा रहे हैं. इस पहल से राज्य की वर्ष 2020 में करीब 2000 मीट्रिक टन लाह का उत्पादन ग्रामीण महिलाओं द्वारा किया गया है.

किसानों को उपलब्ध कराई जा रही ये सुविधाएं
झारखंड सरकार भी लाह की खेती को कृषि का दर्जा देने में जुटे हैं, जिससे राज्य की ग्रामीण महिलाओं को वनोपज आधारित आजीविका से जोड़कर आमदनी बढ़ोतरी का कार्य हो सके. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी कहते हैं कि भारत आत्मनिर्भर देश तभी बनेगा, जब ग्रामीण क्षेत्र का सशक्तिकरण होगा.
सोरेन कहते हैं, राज्य सरकार लाह की खेती को कृषि का दर्जा देगी. इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य भी तय करेगी. किसानों को स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बनाना सरकार का संकल्प है. इस बाबत कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिसके जरिए किसानों को अनुदान, लोन और अन्य जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही है.

एक साल में कमाई 3 लाख रुपए
रंजीता कहती हैं, जे.एस.एल.पी.एस के माध्यम से लाह की आधुनिक खेती से सम्बंधित प्रशिक्षण प्राप्त किया. सरकार की ओर से लाह का बीज भी उपलब्ध कराया गया. पिछले वर्ष रंजीता ने 300 किलो बिहन (बीज) लाह के रूप में लगाया, जिससे उन्हें 15 क्विंटल लाह की उपज प्राप्त हुई और उससे उन्हें 3 लाख रुपए की आमदनी हुई.
ग्रुप के जरिए हो रही लाह की सामूहिक खेती
गोईलकेरा प्रखंड की महिला शोभा देवी कहती हैं कि लाह की खेती में लागत नाममात्र है, लेकिन उससे कई गुना ज्यादा उपज एवं मुनाफा प्राप्त हो रहा है. महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना के तहत महिला किसानों को लाह उत्पादन, तकनीकी जानकारी, प्रशिक्षण और बिक्री हेतु बाजार उपलब्ध कराया जा रहा है. समूहों के माध्यम से लाह की सामूहिक खेती, बिक्री हो रही है. किसानों को उचित बाजार उपलब्ध कराने के लिए राज्य भर में 460 संग्रहण केंद्र और 25 ग्रामीण सेवा केंद्र चलाए जा रहे हैं. हालांकि अभी भी लाह के लिए बहुत कुछ किया जाना शेष है.

पलाश के फूल से बनाया गुलाल
लाह को खेती का दर्जा देने के लिए संघर्ष कर रहे पलामू जिला के कुंदरी निवासी कमलेश सिंह कहते हैं कि कुंदरी वन क्षेत्र में ही लाह के लाखों पलाश के पेड़ हैं, लेकिन इसका सही उपयोग नहीं हो रहा है. वे कहते हैं कि पलाश के फूल से पिछले वर्ष गुलाल बनाया गया था, लेकिन इस वर्ष इसके लिए पहल नहीं की गई.
उन्होंने कहा कि अगर लाह को खेती का दर्जा मिल जाता है, तो प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर बनने को झारखंड में साकार किया जा सकता है. उन्होंने झारखंड सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की भी सराहना की. उन्होंने कहा कि प्र्रकृति ने झारखंड को आत्मनिर्भर बनने के लिए काफी कुछ दिया है लेकिन सरकार ही रूठी है.


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