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स्टेट अटॉर्नी जनरल की ओर से दायर कानूनी हलफनामे का जिक्र करते हुए रिपोर्ट में बताया गया है कि Google ने अपने फायदे के लिए प्रकाशकों और विज्ञापनों को गुमराह किया
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। दुनिया की परेशानी का पलभर में हल तलाशने वाली गूगल खुद परेशानी में घिर गई है और उसे कोई हल भी नजर नहीं आ रहा है. अमेरिका के 'द वॉल स्ट्रीट जनरल' में प्रकाशित एक रिपोर्ट में Google पर विज्ञापनदाताओं और प्रकाशकों को गुमराह करने का आरोप लगाया गया है. स्टेट अटॉर्नी जनरल की ओर से दायर कानूनी हलफनामे का जिक्र करते हुए रिपोर्ट में बताया गया है कि Google ने अपने फायदे के लिए प्रकाशकों और विज्ञापनों को गुमराह किया.
प्रक्रिया में मौजूद रहे सीक्रेट प्रोग्राम
कानूनी हलफनामे के अनुसार, Google ने सालों तक विज्ञापन देने वालों और प्रकाशकों को धोखे में रखा. कंपनी की प्रक्रिया में कुछ सीक्रेट प्रोग्राम मौजूद रहे हैं. इनकी वजह से कुछ कंपनियों की सेल कम दिखती है. इस वजह से विज्ञापनदाताओं को विज्ञापन के बदले ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती है. प्रक्रिया में इस कमी का फायदा सीधे Google को मिलता था. पब्लिशर्स को दिखने वाली कीमत और विज्ञापन देने वालों को जो कीमत चुकानी पड़ती है, दोनों में अंतर रहता है. कीमतों के इस अंतर का फायदा सीधे Google को मिलता रहा है.
Facebook के साथ की मिलीभगत
इसके अलावा, रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इस प्रक्रिया में बने पैसों का इस्तेमाल Google भविष्य में कीमतें बढ़ाने और मार्केट पर अपना एकतरफा राज कामय करने के लिए भी करती रही है. वहीं, यह आरोप भी लगाया गया है कि गूगल ने ऑनलाइन विज्ञापन बिक्री में हेरफेर करने के लिए प्रतिद्वंद्वी फेसबुक (Facebook) के साथ मिलीभगत की है. आरोपों के मुताबिक, दोनों कंपनियों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों (सीईओ) को समझौते की जानकारी थी और उन्होंने इस पर हस्ताक्षर किए थे.
Pichai और Zuckerberg की भागीदारी
दिसंबर 2021 में दायर किए गए मूल, संशोधित मुकदमे में गूगल पर 'प्रतिस्पर्धा-विरोधी आचरण' करने और सोशल नेटवर्किंग क्षेत्र की दिग्गज कंपनी फेसबुक के साथ मिलकर काम करने का आरोप लगाया गया है. लेकिन इसका असंशोधित संस्करण अल्फाबेट के सीईओ सुंदर पिचाई (Sundar Pichai) और फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग (Mark Zuckerberg) की भागीदारी के बारे में विवरण प्रदान करता है. बता दें कि फेसबुक ने अब अपना नाम बदलकर मेटा कर लिया है.
ईमेल में किया गया था सौदे का जिक्र
मुकदमे के अनुसार, फेसबुक की मुख्य संचालन अधिकारी (सीओओ) शेरिल सैंडबर्ग ने 2018 में सिलसिलेवार ईमेल के जरिए बातचीत में स्पष्ट किया था कि यह रणनीतिक रूप से एक बड़ा सौदा है. इस सौदे में फेसबुक के सीईओ भी शामिल थे. मुकदमे में फेसबुक के अधिकारियों के नाम अब भी संशोधित किए जा रहे हैं लेकिन उनके उपनाम स्पष्ट तौर पर दिख रहे हैं. जब दोनों पक्षों ने समझौते की शर्तों पर सहमति बना ली, तब टीम ने सीधे सीईओ जुकरबर्ग को संबोधित कर एक ईमेल भेजा. ईमेल में लिखा गया था 'हस्ताक्षर करने के लिए लगभग तैयार हैं और आगे बढ़ने के लिए आपकी स्वीकृति की आवश्यकता है'. शिकायत में कहा गया है कि जुकरबर्ग निर्णय लेने से पहले सैंडबर्ग और उनके अन्य अधिकारियों से मिलना चाहते थे.
कंपनियों ने बचाव में दिए ये तर्क
वहीं, गूगल के प्रवक्ता पीटर शोटेनफेल्स ने एक बयान में कहा कि मुकदमे में कई गलतियां हैं और कानूनी विशेषता का अभाव है. सितंबर 2018 में दर्ज एक शिकायत में कहा गया कि दोनों कंपनियों ने समझौते पर हस्ताक्षर किए. कभी गूगल के विज्ञापन व्यवसाय की प्रमुख रहीं सैंडबर्ग और पिचाई ने व्यक्तिगत रूप से समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. उधर, मेटा के प्रवक्ता क्रिस एसग्रो ने शुक्रवार को कहा कि गूगल के साथ कंपनी के विज्ञापन समझौते और इस तरह के अन्य मंचों के साथ ऐसे ही समझौतों से विज्ञापन के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ाने में मदद मिली है. एसग्रो ने कहा, 'ये व्यावसायिक संबंध मेटा को प्रकाशकों को उचित रूप से क्षतिपूर्ति करते हुए विज्ञापनदाताओं को अधिक मूल्य प्रदान करने में सक्षम बनाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप सभी के लिए बेहतर परिणाम मिलते हैं'.
'सीईओ की मंजूरी जरूरी नहीं होती'
गूगल के शोटेनफेल्स ने कहा कि मुकदमे में यह आरोप कि पिचाई ने फेसबुक के साथ समझौते को मंजूरी दी, यह ठीक नहीं है. हम हर साल सैकड़ों समझौतों पर हस्ताक्षर करते हैं जिनके लिए सीईओ की मंजूरी की आवश्यकता नहीं होती और यह समझौता भी इससे अलग नहीं था. गौरतलब है कि यह मुकदमा टेक्सास अटॉर्नी जनरल केन पैक्सटन के नेतृत्व में दायर किया गया है, जिसमें अलास्का, अर्कांसस, फ्लोरिडा, इडाहो, इंडियाना, केंटुकी, लुइसियाना, मिसिसिपी, मिसौरी, मोंटाना, नेवादा, नॉर्थ डकोटा, प्यूर्टो रिको, दक्षिण कैरोलिना, साउथ डकोटा और यूटा के अटॉर्नी जनरल भी शामिल हैं.
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