किसानों के लिए अच्छी खबर: इस हफ्ते इन इलाकों में भारी बारिश की सम्भावना
जनता से रिश्ता बेवङेस्क | उत्तर भारत में तापमान बढ़ने लगा है. लेकिन मध्य भारत के कई राज्यों पर इस समय बारिश के लिए मौसमी स्थितियां अनुकूल बनी हैं. एक साथ कई मौसमी सिस्टम सक्रिय हो गए हैं जिसके कारण पूर्वी मध्य प्रदेश, दक्षिणी और दक्षिण-पूर्वी उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के कुछ इलाकों में बीते 24 घंटों में वर्षा दर्ज भी की गई है. अनुमान है कि 19 फरवरी तक ना तो पहाड़ों पर कोई व्यापक वर्षा या हिमपात की संभावना है और ना ही मैदानी इलाकों में. हालांकि इस दौरान एक के बाद एक कमजोर पश्चिमी विक्षोभ पश्चिमी हिमालयी राज्यों के पास से होकर गुजरेंगे जो हिमाचल प्रदेश, लद्दाख और उत्तराखंड में एक-दो स्थानों पर हल्की बारिश या बर्फबारी की गतिविधियां दे सकते हैं. ऐसे में कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि सरसों की फसल लगभग पकने की कगार पर है. लिहाजा बारिश के कारण इसे काफी नुकसान हो सकता है. वहीं गेहूं की फसल के लिए ये बारिश अच्छी होगी. गेहूं में फूल आना शुरू हो गए हैं और बारिश के पानी में नाइट्रोजन होता है जो कि इस स्थिति के लिए फायदेमंद है. हालांकि ज़्यादा बारिश फसल बर्बाद कर सकती हैं. मसूर की फसल को भी नुकसान हो सकता है.
अब कितनी हुई बारिश
उत्तर भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में 1 जनवरी से लेकर 15 फरवरी के बीच बारिश सामान्य से कम हुई है. इस दौरान लद्दाख में सूखे जैसे हालात रहे और 76% कम महज़ 4.6 मिलीमीटर वर्षा रिकॉर्ड की गई. जम्मू कश्मीर में 33% कम बारिश हुई है. लेकिन यहां पर बारिश का आंकड़ा 96.8 मिलीमीटर है. हिमाचल प्रदेश में भी 62% कम 52.2 मिलीमीटर बारिश हुई है जबकि उत्तराखंड में सामान्य से 45% कम 38.5 मिलीमीटर वर्षा रिकॉर्ड की गई है. आगामी बारिश में हम उम्मीद कर रहे हैं जम्मू कश्मीर और लद्दाख में बारिश में कमी की भरपाई हो जाएगी. जबकि उत्तराखंड में इसमें कोई विशेष अंतर नहीं आएगा.
इन इलाकों में हो सकती है बारिश
18 फरवरी से उत्तर प्रदेश के पूर्वी भागों में बारिश की संभावना कम हो जाएगी और मौसम साफ होने लगेगा. जबकि झारखंड छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के विदर्भ, मराठवाड़ा, मध्य महाराष्ट्र में बारिश की गतिविधियां कम से कम 19 फरवरी तक जारी रहेंगी.
मौसम विशेषज्ञों के अनुसार एक विपरीत चक्रवाती क्षेत्र ओडिशा के ऊपर बना हुआ है. साथ ही महाराष्ट्र के विदर्भ पर इस समय एक चक्रवाती हवाओं का क्षेत्र भी सक्रिय है. इस चक्रवाती सिस्टम से केरल तक एक ट्रफ बनी हुई है. इन सभी मौसमी सिस्टमों का संयुक्त प्रभाव देखने को मिल रहा है और उम्मीद है कि यह सिस्टम अगले 3 दिनों तक सक्रिय रहेंगे जिससे मध्य और पूर्वी भारत के कई शहरों में यह बारिश होने की संभावना है.
आपको बता दें कि पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र के विदर्भ तथा मराठवाड़ा के अधिकांश इलाकों में इस साल सर्दियों में औसत से कम वर्षा रिकॉर्ड की गई है. यह बारिश इस कमी की भरपाई कुछ हद तक कर सकती है. लेकिन इस बारिश से खेती और किसानों के लिए चिंता पैदा हो सकती है क्योंकि तेज़ हवाओं के साथ बारिश और ओलावृष्टि फसलों की वर्तमान स्थिति के लिए अनुकूल नहीं है बल्कि इससे फसलों को नुकसान पहुँच सकता है.
20 फरवरी को एक सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ उत्तर भारत में आएगा जिसके चलते न सिर्फ पर्वतीय राज्यों में बल्कि उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में भी कुछ स्थानों पर वर्षा की गतिविधियां देखने को मिल सकती हैं.
इस सिस्टम का प्रभाव सबसे पहले 20 फरवरी को जम्मू कश्मीर और गिलगित-बालटिस्तान, मुजफ्फराबाद और लद्दाख में दिखाई देगा उसके बाद 21 से 23 फरवरी के बीच पश्चिमी हिमालय राज्यों में अधिकांश स्थानों पर हल्की से मध्यम वर्षा और ऊंचाई वाले इलाकों में बर्फबारी होने की आशंका है.
इस दौरान कुछ स्थानों पर मध्यम से तेज बारिश या बर्फबारी से सामान्य जनजीवन भी प्रभावित हो सकता है. लेकिन आगामी बारिश का और बर्फबारी का ज़ोर मुख्यतः कश्मीर से लद्दाख तक रहेगा.
क्या होगा किसानों पर असर
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि सरसों की फसल लगभग पकने की कगार पर है तो बारिश के कारण इसे काफी नुकसान हो रहा है. वहीं गेहूं की फसल के लिए ये बारिश अच्छी है. गेहूं में फूल आना शुरू हो गए हैं और बारिश के पानी में नाइट्रोजन होता है जो कि इस स्थिति के लिए फायदेमंद है. जो गन्ने लग चुके हैं उनके लिए भी ये बारिश फायदेमंद है.
चने की फसल के लिए ये पानी ठीक नहीं है, ये फूल की स्थिति में है तो उसे कम पानी की ज़रूरत होती है, ज़्यादा पानी गिरने से फसल बर्बाद होने के आसार हैं. मसूर की फसल को भी नुकसान हो रहा है.